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पाकिस्तान के सांप्रदायिक हिंसा में पिछले 18 सालों में मारे गए 5 हजार शिया मुसलमान

Rising threats againts Shias in Pakistan:  कनाडा स्थित एक थिंक टैंक इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप ने पाकिस्तान में होने वाले सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए शिया मुसलमानों पर एक रिपोर्ट पेश की है, जिसमें बताया गया है कि पिछले कुछ सालों में किस तरह एक समूह का देश के बहुसख्यंक समूह ने उत्पीड़न किया है. 

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Hussain Tabish|Updated: Sep 24, 2022, 11:11 PM IST

इस्लामाबादः पाकिस्तान इस वक्त एक साथ कई समस्याओं का सामना कर रहा है. प्राकृतिक आपदा, आर्थिक मंदी, घरेलू राजनीति अस्थिरिता और कानून व्यवस्था देश में बड़ी चुनौती बनी हुई है. धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और सांप्रदायिक तनाव भी सरकारों के लिए बड़ी चिंताओं में शामिल है. देश में सुन्नी समूह शियाओं, अहमदियों और गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा कर रहे हैं, जिन्हें सैन्य और एक विशेष राजनीतिक नेतृत्व का समर्थन प्राप्त है.
कनाडा स्थित एक थिंक टैंक इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप (प्ब्ळ) ने 5 सितंबर को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में भविष्यवाणी की है कि पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक मंदी के कारण सांप्रदायिक हिंसा में और इजाफा हो सकता है. आईसीजी रिपोर्ट का यह आकलन है कि सांप्रदायिक उग्रवाद अब देश के सुन्नी इस्लामवादी समूहों पर हावी होता जा रहा है, जिसमें अधिक उदार बरेलवी उप-पंथ के अनुयायी शामिल हैं. माना जाता है कि यह पाकिस्तान की आबादी का एक बहुमत हिस्सा है.

कट्टर इस्लामी समूह है हिंसा के लिए जिम्मेदार 
2020 में, प्रसिद्ध रक्षा विश्लेषक, डॉ. आयशा सिद्दीका ने कराची और सिंध और पंजाब के अन्य शहरी केंद्रों में सुन्नियों और शियाओं के बीच सांप्रदायिक तनाव के पुनरुद्धार के बारे में अपनी रिपोर्ट में कई अहम बातों का खुलासा किया है. उन्होंने बताया है कि पाकिस्तान ने कथित तौर पर 2001 और 2018 के बीच सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में लगभग 4,847 शियाओं की हत्या का गवाह बना है. इस साल सितंबर की शुरुआत में प्रकाशित आईसीजी रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में पनन रहे नए इस्लामवादी समूह, हाल के वर्षों में देश के सबसे खराब अंतर-सांप्रदायिक रक्तपात के लिए जिम्मेदार रहे हैं. 

शियाओं के खिलाफ सुन्नियां के फतवे 
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि मुस्लिम अल्पसंख्यक, विशेष रूप से शिया देश का सबसे कमजोर वर्ग है. इसे कई बार छोटी-मोटी बातों के लिए भी निशाना बनाया जाता है. कट्टरपंथी राजनीतिक ताकतें देश में अपना दबदबा हासिल करने के लिए शिया समुदायों पर भी ईशनिंदा के आरोपों लगाकर उन्हें अपना निशाना बना रहे हैं. सुन्नी उग्रवाद की उत्पत्ति का पता आजादी के तुरंत बाद पाकिस्तान में सुन्नी-शिया तनाव से लगाया जा सकता है. कई देवबंदी मौलवियों ने शिया जुलूसों पर हमले की अपील की और अपनी किताबों में शियाओं के खिलाफ फतवा दिया है. राष्ट्रपति जिया-उल-हक के कार्यकाल के दौरान, सुन्नी उग्रवाद उस वक्त खुलकर सामने आया था जब पाकिसतान की सेना सक्रिय रूप से अंजुमन सिपाह-ए-सहाबा पाकिस्तान नामक एक कट्टर शिया विरोधी समूह का समर्थन कर रही थी.

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