लाहौर: पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के चीफ़ और पाकिस्तान के साबिक़ पीएम इमरान ख़ान (Imran Khan) ने लिबर्टी चौक से लंबा मार्च शुरू किया. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ने लाहौर से इस्लामाबाद तक एक लंबा मार्च निकालने का ऐलान किया है. जिसमें पीटीआई वर्कर्स और लीडर भी शामिल होने पहुंचे हैं. मार्च में शामिल लोगों को ख़िताब करते हुए इमरान ख़ान ने कहा कि मैं अपने 26 साल के सियासी करियर की सबसे अहम रैली की शुरुआत कर रहा हूं.
"पाकिस्तान के फैसले वॉशिंगटन में नहीं होने चाहिए"
उन्होंने कहा कि मेरा मार्च सियासत के लिए नहीं है, चुनाव के लिए या ज़ाती फायदों के लिए नहीं है. हमारे फैसले वाशिंगटन या ब्रिटेन में नहीं होने चाहिए, पाकिस्तान के फैसले पाकिस्तान में ही होने चाहिए और पाकिस्तान के लोगों को करने चाहिए. इमरान ख़ान ने कहा कि मैं सिर्फ अपने देश और इदारों (संस्थानों) की ख़ातिर चुप हूं, मैं नवाज़ शरीफ़ की तरह भगोड़ा नहीं हूं, मैं इस देश में रहता हूं और इस पर मरता हूं, मुझे एक आज़ाद फौज चाहिए. उन्होंने कहा कि मैं कह तो बहुत कुछ सकता हूं लेकिन देश का नुक़सान नहीं चाहता.
यह भी पढ़िए: Gujrat Election: मुसलमानों पर कौन कितना मेहरबान? देखिए 1980-2017 तक के आंकड़े
"हमें सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ़ नहीं मिला"
इमरान ख़ान ने आगे कहा कि मैंने कभी कोई ग़ैरक़ानूनी मांग नहीं की. मैं सिर्फ आज़ाद और साफ-सुधरे चुनाव चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि लोगों को फैसला करने दिया जाए. तहरीक-ए-इंसाफ के चीफ़ ने कहा कि वह अदालतों से कहना चाहते हैं कि हम आईन (संविधान) और क़ानून के बीच चलेंगे. उन्होंने कहा, "मैं सुप्रीम कोर्ट से गुज़ारिश करना चाहता हूं कि 25 मई को आपने हमारे जम्हूरी हक़ूक़ (लोकतांत्रिक अधिकारों) की हिफ़ाज़त नहीं की, हम मारे गए, लोगों को उठाया गया, लेकिन हमें इंसाफ नहीं मिला. हम मार्च के दौरान पुरअम्न (शांतिपूर्ण) रहेंगे, लेकिन जो लोग मुजरिम हैं, जिन्होंने 18 क़त्ल किए आपको उन पर नज़र रखनी होगी.
क्या है मामला?
इमरान ख़ान और आर्मी चीफ जनरल बाजवा में तकरार चल रही है. इमरान ख़ान लगातार बाजवा को ग़द्दार कह रहे हैं, उनका कहना है कि फौज आज़ाद नहीं है. इमरान ख़ान के इल्ज़ामात का जवाब देने के लिए डायरेक्टर जनरल आईएसआई लेफ्टिनेंट नदीम अंजुम को मीडिया के सामने आना पड़ा. नदीम अंजुम ने इमरान ख़ान के तमाम इल्ज़ामात को सिरे से ख़ारिज कर दिया था. मामले की संजीदगी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ऐसा पहली बार हुआ जब ISI चीफ़ को खुलकर सामने आना पड़ा है. नहीं तो कहा जाता है कि ISI चीफ़ को मीडिया से दूर रहने की हिदायत होती है. इससे पहले किसी भी ISI चीफ को इस तरह प्रेस कांफ्रेंस नहीं करनी पड़ी.