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UAPA: क्या होता है UAPA कानून? और क्यों पड़ी इसकी जरूरत!

What is UAPA Act: PFI और उसके मुताल्लिक़ तंज़ीमों पर वज़ारते दाख़ला की जानिब से मुल्कभर में आईंदा पांच सालों के लिए पाबंदी आयद किए जाने के फैसले के बाद यूएपीए कानून यानी UAPA Act एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है. देश के सियासी गलियारों में इस कानून को लेकर अक्सर तनाज़े सामने आते रहते हैं. जब भी UAPA कानून के तहत गिरफ्तारी होती है, देशभर में एक नई बहस छिड़ जाती है. हाल ही में किसान आंदोलन के तहत 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा और सेलेब्रिटी ट्वीट विवाद के बाद इस कानून के तहत कुछ गिरफ्तारियां की गई थी, जिन्हें लेकर देश की सियासत में उबाल है. अपने इस वीडियो के ज़रिए आइए जानते हैं आखिर क्या है UAPA कानून भारतीय पार्लियामेंट ने 1967 में गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम यानी Unlawful Activities (Prevention) Act-UAPA को बनाया था. हालांकि, 2004, 2008, 2012 और 2019 में इस कानून में बदलाव किए गए. लेकिन 2019 की तरमीम में इसमें सख़्त तजावीज़ जोड़ी गई थीं, जिसके बाद से ही यह सवालों के कठघरे में है. हिज़्बे-इक्तेलाफ़ और कुछ इंसानी हुक़ूक़ कारकुनान इसे जम्हूरियत मुख़ालिफ़ बताते हैं तो इसके हामी इसे दहशतगर्दी के खिलाफ मुल्क़ की यक़जहती और साल्मियत को मज़बूती देने वाला बताते हैं. 2019 की तरामीम में एक अहम बात ये है कि इस कानून के तहत सरकार किसी तंज़ीम या तंज़ीमों को ही नहीं बल्कि किसी ख़ास शख़्स को भी दहशतगर्द क़रार दे सकती है. वाज़े हो कि मुल्क़ में ग़ैर-एलानिया तौर पर फैले हुए कई दहशतगर्दाना नेटवर्क की कमर तोड़ने के लिए इन तजावीज़ में तरमीम की गई थी.पहले के कानून के तहत दहशतगर्दाना तंज़ीमों से जुड़ाव रखने वाली तंज़ीमों पर तो पाबंदी लगाई जा सकती थी, मगर उनके संचालक या सदस्य बच निकलते थे. और कुछ वक्त बाद वे नए नाम से नई तंज़ीम बना लेते थे. इस ख़तरे को भांपते हुए 2019 में मरकज़ी सरकार ने 1967 के बने हुए गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम में सख़्त तजावीज़ जोड़ी गईं. जिसके बाद से दहशतगर्दाना तंज़ीमों से किसी भी तरह का जुड़ाव रखने वाली तंज़ीमों के साथ ही उनके ऑपरेटर और सदस्य भी पाबंदी के दायरे में आ गए। इसके साथ ही सुरक्षा एजेंसियां शक होने के हालात में उन्हें दहशतगर्द भी क़रार दे सकती हैं. हालांकि, इस तजवीज़ को लेकर बड़ी बहस छिड़ी थी। तजवीज़ के मुताबिक़ किसी पर शक होने से ही उसे दहशतगर्द क़रार किया जा सकता है. गौर करने की बात ये भी है कि इसके लिए उस शख़्स का किसी दहशतगर्दाना तंज़ीम से सीधा ताल्लुक़ दिखाना भी जरूरी नहीं है. वहीं, एक बार दहशतगर्द क़रार दिए जाने के बाद बाद ठप्पा हटवाने के लिए नज़रे-सानी कमिटी के पास अपेलाई करना होगा। हालांकि, वो बाद में अदालत में अपील कर सकता है.

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