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क्या दादा से लेकर माँ की विरासत बचाने में कामयाब होंगे राहुल गांधी? जानें रायबरेली सीट का इतिहास

Rahul Gandhi: रायबरेली लोकसभा सीट से राहुल गांधी ने नामांकन पत्र दाखिल किया है. इस सीट की पहली बार प्रतिनिधित्व पूर्व कांग्रेस चीफ राहुल गांधी के दादा फिरोज गांधी ने किया था, जिन्होंने आजादी के बाद पहले दो इलेक्शन में इस पर कब्जा किया था.

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क्या दादा से लेकर माँ की विरासत बचाने में कामयाब होंगे राहुल गांधी? जानें रायबरेली सीट का इतिहास
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Taushif Alam|Updated: May 03, 2024, 03:22 PM IST

Rahul Gandhi: उत्तर प्रदेश के रायबरेली लोकसभा सीट से राहुल गांधी ने नामांकन पत्र दाखिल किया है. इस सीट की पहली बार प्रतिनिधित्व पूर्व कांग्रेस चीफ राहुल गांधी के दादा फिरोज गांधी ने किया था, जिन्होंने आजादी के बाद पहले दो इलेक्शन में इस पर कब्जा किया था. फ़िरोज़ गांधी ने रायबरेली में जो मजबूत नींव रखी, उसे बाद में उनकी बीवी और पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने पोषित और मजबूत किया, जो 1967, 1971 और 1980 में इस सीट से जीतीं, जिसके बाद गांधी परिवार के दोस्तों और परिवार के सदस्यों ने भी इस सीट से जीत हासिल की.

पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने साल 1980 के लोकसभा इलेक्शन में रायबरेली और तेलंगाना में मेडक लोकसभा से इलेक्शन लड़ी थी. हालांकि, इंदिरा गांधी ने दोनों सी पर चुनाव जीतीं, लेकिन उन्होंने तेलंगाना के मेडक सीट बरकरार रखने का फैसला किया. रायबरेली लोकसभा सीट पर 1984 में उप चुनाव हुआ जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले अरुण गांधी ने जीत दर्ज की थी. 

फिरोज गांधी से लेकर परिवार के सदस्यों ने किया है इस सीट की अगुआई
फ़िरोज़ गांधी के निधन के बाद 1960 के उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस के आरपी सिंह के पास थी, और 1962 में एक दूसरे कांग्रेस नेता बैज नाथ कुरील के पास थी. इंदिरा गांधी की चाची शीला कौल ने 1989 और 1991 में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया. साल 1999 में, गांधी परिवार के एक दूसरे मित्र, सतीश शर्मा ने रायबरेली लोकसभा की अगुआई की, जब तक कि सोनिया गांधी वहां स्थानांतरित नहीं हो गईं.

आपातकाल में हुई थी हार
एकमात्र बार जब कांग्रेस ने इस सीट का प्रतिनिधित्व नहीं किया, वह 1977 में आपातकाल के बाद हुआ था, जब जनता पार्टी के राज नारायण ने इंदिरा गांधी, जो उस समय प्रधानमंत्री थीं, और बीजेपी के अशोक सिंह को 1996 और 1998 में हराया था. हालाँकि चुनावी राजनीति में प्रवेश करने पर सोनिया गांधी ने 1999 में पड़ोसी लोकसभा सीट अमेठी से चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया, यह सीट पहले उनके शौहर राजीव गांधी के पास थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने 2004 में अपने बेटे राहुल के राजनीति में पदार्पण के लिए इसे खाली कर दिया.

2004 से सांसद हैं सोनिया गांधी
इसके बाद सोनिया गांधी ने 2004 से 2019 के बीच चार बार रायबरेली का इलेक्शन जीतीं, हालांकि हाल ही में उनकी जीत का अंतर कम होने लगा. राहुल को अमेठी के बजाय रायबरेली से मैदान में उतारने के पीछे पार्टी की गणना इस फैसले पर भी टिकी है कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष के लिए रायबरेली एक बेहतर, सुरक्षित सीट है, जो 2019 में बीजेपी की स्मृति ईरानी से लगभग 50,000 वोटों से अमेठी हार गए थे. इस आलोचना के बीच कि कांग्रेस ने अमेठी में ईरानी को वॉकआउट कर दिया है, सूत्रों ने कहा, पार्टी ने अपने विवेक से माना कि गांधी परिवार के लिए रायबरेली का ऐतिहासिक, भावनात्मक और चुनावी महत्व अमेठी से ज्यादा है. रायबरेली के लोगों को अपने विदाई संदेश में, सोनिया गांधी ने विश्वास जताया था कि जो सीट हमेशा उनके और गांधी परिवार के साथ रही है, वह भविष्य में भी उनके परिवार का समर्थन करना जारी रखेगी.

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