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उर्दू में पढ़ाएं जाएंगे दोहे! भारत के इस बड़े संस्थान में पेश हुआ प्रस्ताव

Urdu in DU: दिल्ली यूनिवर्सिटी में अगर उर्दू पढ़ाने की मंजूरी मिलती है तो यहां कबीरदास जी के दोहे उर्दू में पढ़ाए जाएंगे. इस बात की जानकारी DU के अधिकारियों ने दी है.

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उर्दू में पढ़ाएं जाएंगे दोहे! भारत के इस बड़े संस्थान में पेश हुआ प्रस्ताव
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Siraj Mahi|Updated: Jul 24, 2024, 07:02 PM IST

Urdu in DU: दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) की कार्यकारी परिषद अगर पाठ्यक्रम में प्रस्तावित बदलाव को मंजूरी दे देती है, तो यूनिवर्सिटी में उर्दू विषय में पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स आध्यात्मिक संत कबीर दास के दोहे पढ़ते नजर आएंगे. अधिकारियों ने यह जानकारी दी. अधिकारियों ने कहा कि आर्ट वर्ग से प्रस्तावित संशोधन को अगर मंजूरी मिलती है, तो MA उर्दू के पहले सेमेस्टर के स्टूडेंट्स को 'कबीर वाणी' के दोहे पढ़ाए जाएंगे. 

उर्दू में दोहे
उन्होंने बताया कि इस मकसद से आर्ट वर्ग ने एम.ए. उर्दू के पहले साल के स्टूडेंट्स के पाठ्यक्रम में दो पाठ्यपुस्तकें शामिल करने का प्रस्ताव किया है. अधिकारियों ने कहा कि इन पाठ्यपुस्तकों में अली सरदार जाफरी की तरफ से लिखित कबीर वाणी और प्रभाकर मंचवे की तरफ से लिखित कबीर शामिल हैं. उन्होंने बताया कि अगर पाठ्यक्रम में बदलाव की मंजूरी मिल जाती है, तो अगस्त में शुरू होने वाले 2024-25 शैक्षणिक सत्र से ही इसे लागू किया जा सकता है. कार्यकारी परिषद विश्वविद्यालय का शीर्ष निर्णय निकाय है, जिसकी बैठक 27 जुलाई को होगी. इससे पहले विद्यार्थियों को पहले खंड के तहत मुल्ला वजही की तरफ से रचित ‘सब-रस’ (पहला भाग) पढ़ाया जाता था.

कबीर दास के बारे में
ख्याल रहे कि कबीर दास जी का उर्दू से कोई ताल्लुक नहीं है. वह 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि थे. उन्होंने असल अपने दोहों के जरिए बहुत ही प्रेक्टिल बातें कही हैं. इन्हें अब पत्थर पर लकीर की तरह माना जाता है. ज्यादातर स्कूलों में छोटे क्लास से ही बच्चों को कबीर के दोहे पढ़ाए जाते हैं और उन पर अमल करने की हिदायत दी जाती है. कबीर दास जी की रचनाएं हिंदी पट्टी वाले प्रदेशों में भक्ति आंदोलन पर असल डाला.

हिंदू मुस्लिम मानते थे
कबीर दास जी के दोहों को सिखों के गुरुग्रंथों में शामिल किया गया. कबीर दास जी ने अपने वक्त में समाज में फैली बुराइयों, कर्मकांडो और अंधविश्वासों की निंदा की. कबीर दास जी को हिंदू और मुसलमान दोनों मानते थे. हिंदी के साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर दास जी को मस्तमौला कहा है. 

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