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संस्थानों में जल्द नियुक्त होंगे 'प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’; UGC ने भेजा निर्देश

UGC directs institutions to start engaging Professors of Practice: यूजीसी ने बताया है कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में ’प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ की नियुक्ति के दिशा-निर्देश यूजीसी की वेबसाइट पर 30.09.2022 को अपलोड कर दिए गए हैं.   

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Hussain Tabish|Updated: Nov 14, 2022, 07:52 PM IST

नई दिल्लीः विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने मुल्कभर के  कुलपतियों, निदेशकों और प्राचार्यों सहित शैक्षणिक संस्थानों के प्रमुखों को पेशेवर विशेषज्ञों यानी ’प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ के तौर पर शामिल करना शुरू करने का निर्देश दिया है. यूजीसी ने अपने नोटिफिकेशन में कहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की सिफारिशों में से एक उच्च शिक्षण संस्थानों में समग्र और बहु-विषयक शिक्षा प्रदान करना है. इसके लिए शिक्षण-प्रशिक्षण  प्रक्रिया में अनुभवी चिकित्सकों/पेशेवरों/उद्योग विशेषज्ञों वगैरह की भागीदारी की जरूरत हो सकती है. वहीं, शिक्षक संघों ने यूजीसी के इस फैसले की आलोचना की है. उनका कहना है कि जब हजारों की तादाद में नौजवान पीएचडी और नेट परीक्षा पास कर बेरोजगार घूम रहे हैं, ऐसे में उन्हें नौकरी देने के बजाए सरकार उद्यौग जगत के लोगों और प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ के नाम पर अपने लोगों को यूनिवर्सिटीज में घुसपैठ कराना चाहती है. 

अनुभवी प्रोफेशनल्स को अध्यापन से जोड़ना चाहती है सरकार 
यूजीसी ने अपने पत्र में कहा, “उच्च शिक्षा संस्थानों को पेशेवर विशेषज्ञों को नियुक्त करने में सक्षम बनाने के लिए, यूजीसी ने ’ प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ नामक एक नया पोस्ट बनाया है और ऐसे प्रोफेसर्स को नियुक्त करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं.
यूजीसी ने बताया कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में ’प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ की नियुक्ति के दिशा-निर्देश यूजीसी की वेबसाइट पर 30.09.2022 को अपलोड कर दिए गए हैं. यूजीसी के अध्यक्ष प्रो. एम जगदीश कुमार बताया कि ’प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ शैक्षिक संस्थानों के लिए संस्थानों के संकाय सदस्यों की पढ़ाई के पूरक के तौर पर छात्रों में औद्योगिक कौशल लाने का एक अनूठा मौका देती है. यह पद उद्योग और अन्य व्यवसायों के अनुभवी लोगों को अध्यापन पेशे की तरफ आकर्षित कर सकती है, जो छात्रों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. 

क्या है 'प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ 
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियम के तहत जिन लोगों को मेडिकल, इंजीनियरिंग, प्रबंधन, लॉ और मीडिया जैसे प्रोफेशन में कम से कम 15 साल काम करने का अनुभव हो उन्हें सरकार बिन किसी नेट और पीएचडी की डिग्री के 3 साल के लिए प्रोफेसर पद पर नियुक्त कर सकती है. उनका कार्यकाल एक साल और यानी 4 साल तक बढ़ाया जा सकता है. यह पद किसी कॉलेज या संस्थान के कुल पद के 10 फीसदी पद से ज्यादा नहीं होगा. 

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