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ट्रेन के इंजनों में नहीं होते हैं शौचालय; जानिए, कैसे निपटती हैं इस मुश्किल से महिला लोको पायलट

No Toilets in Train engines: ट्रेन के इंजनों में शौचालय न होने के कारण महिला लोको पायलटों और उनके सहायकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, कई बार वह इस समस्या के कारण अपनी ड्यूटी  तक बदल देती हैं.

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अलामती तस्वीर
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Zee Media Bureau|Updated: Jul 17, 2022, 05:26 PM IST

नई दिल्लीः क्या आपको पता है कि ट्रेनों के इंजनों में शौचालय नहीं होते हैं. ऐसे में इसे चलाने वाले लोको पायलट और असिटेंट लोको पायलट को किन मुश्किल हालात का सामना करना पड़ता होगा, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. अगर पायलट और असिटेंट लोको पायलट महिला हो तो उनकी परेशानियों का अंदाजा लगाना भी मुश्किल होगा. इस वक्त देश के सिर्फ 97 ट्रेनों के इंजन में शौचालय की सुविधा है.
इंजन में शौचालय नहीं होने की वजह से महिला ट्रेन चालकों सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं, तो कुछ इसलिए पानी पीना कम कर देती हैं कि उन्हें पेशाब ने लगे. इन हालात में कुछ ऐसी भी हैं जो अपने सपनों से समझौता कर कार्यालय में बैठने का विकल्प चुनती हैं.

10-12 घंटे तक इंजन में बीतता है वक्त 
एक लोको पायलट कम से कम 10-12 घंटे चालक के रूप में इंजन में अपना वक्त बिताता है. इस बीच यात्रा के दौरान वे न तो खाना खाते हैं और न ही शौचालय जाते हैं. यह अमानवीय है.  जिन महिलाओं को लोको पायलट और सहायक लोको पायलट के रूप में भर्ती किया जाता है, वे या तो कार्यालयों में बैठती हैं या मुख्य रूप से शौचालय की कमी के कारण छोटी यात्राओं पर जाती हैं.

माहवारी के दौरान ले लेती हैं छुट्टियां
महिला लोको चालकों का कहना है कि इसकी वजह से उन्होंने ‘‘समझौता करना’’ सीख लिया है. सुविधाओं की कमी साफ तौर पर उनके पुरुष सहकर्मियों के लिए भी एक समस्या है, लेकिन महिला चालकों को माहवारी के दौरान अतिरिक्त मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और इस दौरान ज्यादातर महिला चालक शौचालय नहीं होने के कारण छुट्टी पर जाना पसंद करती हैं. 

मालगाड़ी की स्थिति है और भी खराब 
एक अन्य महिला लोको पायलट ने बताया कि इसमें यार्ड में इंतजार करना, यात्रा की तैयारी करना और फिर वास्तव में मालगाड़ी को 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पांच से सात घंटे के बीच कहीं भी चलाना शामिल है. इनमें से किसी भी स्थान पर महिलाओं के लिए कोई सुविधा नहीं है. अनहोनी की आशंका में मैं सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हूं. उनकी सहयोगी ने बताया कि मालगाड़ियों में शौचालय की सुविधा नहीं है, लेकिन यात्री ट्रेनों की स्थिति भी खराब है, क्योंकि उनके पास शौचालय का उपयोग करने के लिए दूसरे डिब्बे में चढ़ने का टाइम नहीं होता है.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को की जा चुकी है शिकायत 
‘इंडियन रेलवे लोको रनिंग मेन्स ऑर्गनाइजेशन’ के पूर्व सद्र आलोक वर्मा कहते हैं, ’’ इस मुद्दे पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से राब्ता किया था और कहा कि रेलवे लोको पायलटों, पुरुषों और महिलाओं दोनों को उनके मूल अधिकारों से महरूम कर रहा है.’’ वर्मा ने कहा, ‘‘इस पर आयोग को अपने जवाब में रेलवे ने कहा था कि वह सभी ट्रेनों में शौचालय लगवाएगा. हालांकि, एनएचआरसी के आदेश को लागू नहीं किया गया है.’’ 

रनिंग रूम में नहीं है महिला शौचालय 
‘ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टॉफ एसोसिएशन के महासचिव एम. एन. प्रसाद के मुताबिक, इंजनों में शौचालय बनवाने की लड़ाई लंबे अरसे से चली आ रही है. प्रसाद ने कहा, ‘‘यह सभी लोको पायलटों के लिए बुरा अनुभव है, लेकिन महिलाओं के लिए किसी बुरे सपने की तरह है. उन्होंने कहा हकीकत में उन स्टेशनों पर भी महिलाओं के लिए अलग शौचालय नहीं है जहां पुरुषों के लिए ‘‘रनिंग रूम’’ होता है.‘‘ रनिंग रूम’’ ऐसे स्थान होते हैं जहां लोको पायलट, सहायक लोको पायलट और माल गार्ड सहित चालक दल ड्यूटी के घंटों के बाद या पाली के बीच में अपने गृह स्टेशन के अलावा अन्य स्टेशनों पर आराम करते हैं.

देश के 14 हजार इंजानों में सिर्फ 97 में शौचालय 
अधिकारी कहते हैं, ’’ छह साल पहले तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने ‘बायो-टॉयलेट’ से लैस पहले लोकोमोटिव की शुरुआत की थी, लेकिन अब तक सिर्फ 97 इंजनों में ही ‘बायो-टॉयलेट’ लगाए गए हैं. भारतीय रेलवे के पास 14,000 से ज्यादा डीजल इलेक्ट्रिक इंजन हैं और 60,000 से ज्यादा लोको पायलटों में से लगभग 1,000 महिलाएं हैं, जिनमें से ज्यादातर कम दूरी की मालगाड़ियों को चलाती हैं. रेलवे ने एक बयान में कहा कि 2013 में रेल बजट की घोषणा और लगातार मांग के बाद ‘चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स’ (सीएलडब्ल्यू) द्वारा बनाए जा रहे इलेक्ट्रिक इंजनों में वाटर क्लोसेट (शौचालय) उपलब्ध कराने का फैसला लिया गया. रेलवे अधिकारियों ने कहा कि महिला लोको पायलटों को उनकी सुविधा के हिसाब से ड्यूटी सौंपी जाती है. 

विदेशों में क्या है व्यवस्था 
ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोप में लोको पायलटों को हर चार घंटे में 20-25 मिनट का ब्रेक देने का प्रावधान है. इन क्षेत्रों में, लोको पायलट प्रति सप्ताह 48 घंटे ड्यूटी करते हैं. भारत में यह संख्या 54 घंटे तक बढ़ जाती है. 

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