Muztar Khairabadi Shayari: मुजतर खैराबादी उर्दू के बेहतरीन शायर हैं. वह साल 1869 में उत्तर प्रदेश के ज़िला सीतापूर में पैदा हुए. उनका पूरा नाम सय्यद इफ्तिखार हुसैन मुजतर खैराबादी है. मुजतर खैराबादी की मां ने उन्हें तालीम दी. उनकी मां अरबी, फारसी और उर्दू की जानकार थीं. वह शायरां भी थीं. मुजतर खैराबादी अपनी शुरूआती शायरी अपनी मां को ही दिखाते थे. बाद में उन्होंने अमीर मीनाई को उस्ताद बनाया. मुज्तर ने टोंक, ग्वालियर, रामपूर, भोपाल और इंदौर के रजवाड़ों और रियासतों में नौकरियां कीं.
वो गले से लिपट के सोते हैं
आज-कल गर्मियाँ हैं जाड़ों में
याद करना ही हम को याद रहा
भूल जाना भी तुम नहीं भूले
आँखें न चुराओ दिल में रह कर
चोरी न करो ख़ुदा के घर में
हाल उस ने हमारा पूछा है
पूछना अब हमारे हाल का क्या
वक़्त आराम का नहीं मिलता
काम भी काम का नहीं मिलता
ज़ुल्फ़ को क्यूँ जकड़ के बाँधा है
उस ने बोसा लिया था गाल का क्या
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मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानी
बुज़ुर्गों की दुआ ने मार डाला
मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या तिरी रहमत
करीम तू ही बता दे हिसाब कर के मुझे
बुरा हूँ मैं जो किसी की बुराइयों में नहीं
भले हो तुम जो किसी का भला नहीं करते
इक हम हैं कि हम ने तुम्हें माशूक़ बनाया
इक तुम हो कि तुम ने हमें रक्खा न कहीं का
अगर तक़दीर सीधी है तो ख़ुद हो जाओगे सीधे
ख़फ़ा बैठे रहो तुम को मनाने कौन आता है
हमारे एक दिल को उन की दो ज़ुल्फ़ों ने घेरा है
ये कहती है कि मेरा है वो कहती है कि मेरा है
तुम अगर चाहो तो मिट्टी से अभी पैदा हों फूल
मैं अगर माँगूँ तो दरिया भी न दे पानी मुझे
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