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"दो पत्नियों वाला मुस्लिम मर्द पहली पत्नी को साथ रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता"

Muslim man cannot force first wife to live with him: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि अगर एक मुस्लिम शख्स अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं है, तो कुरान के हिसाब से वह दूसरी महिला से शादी नहीं कर सकता है.

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अलामती तस्वीर
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Hussain Tabish|Updated: Oct 11, 2022, 11:07 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में पास एक आदेश में कहा है कि एक मुस्लिम शख्स अपनी पहली पत्नी की इच्छा के विरुद्ध दूसरी शादी करने के बाद अपनी पहली पत्नी को जबरदस्ती साथ में रखने का अदालत से आदेश नहीं ले सकता है. यानी पहली पत्नी को अपने साथ रखने / रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है. जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस राजेंद्र कुमार की बेंच ने परिवार अदालत कानून के तहत दायर अपील पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है.

चार शादी के साथ लागू हैं भरण-पोषण की शर्तें 
वादी ने परिवार अदालत द्वारा दिए एक आदेश को चुनौती दी थी जिसमें शख्स की पहली पत्नी को साथ रखने का आदेश जारी करने की मांग खारिज कर दी गई थी. बेंच ने कहा कि कुरान की आयत तीन के सूरा 4 का धार्मिक आदेश सभी मुस्लिमों पर लागू होता है, जिसमें कहा गया है कि एक मुस्लिम मर्द अपनी पसंद की चार महिलाओं से शादी कर सकता है. लेकिन अगर किसी शख्स को लगता है कि वह चार महिलाओं का भरण-पोषण करने में समर्थ नहीं है, तो वह सिर्फ एक महिला से शादी कर सकता है. 

पहली पत्नी को बिना बताए नहीं कर सकता दूसरी शादी 
अदालत ने कहा, अगर एक मुस्लिम शख्स अपनी पत्नी और बच्चों का भरण पोषण करने में सक्षम नहीं है, तो कुरान के हिसाब से वह दूसरी महिला से शादी नहीं कर सकता. अदालत ने कहा, “जब अपीलकर्ता ने अपनी पहली पत्नी को बिना बताए दूसरी शादी की तो उसका यह फैसला पहली पत्नी के साथ क्रूरता के दायरे में आता है. ऐसी परिस्थिति में अगर पहली पत्नी अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती तो उसे साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.” 

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