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Manipur News: फिर सुलगा मणिपुर, दो सशस्त्र समूहों के बीच भीषण गोलीबारी, 3 की मौत

Manipur Violence News: मैतेई और हमार आदिवासी समूहों ने शांति वार्ता के लिए एक बैठक की और सामान्य हालात लाने और घटनाओं को रोकने के लिए पूरी कोशिश करने का संकल्प लिया था, लेकिन फिर से मणिपुर में हिंसा की खबरें आई है. 

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Manipur News: फिर सुलगा मणिपुर, दो सशस्त्र समूहों के बीच भीषण गोलीबारी, 3 की मौत
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Zee Salaam Web Desk|Updated: Aug 09, 2024, 09:36 PM IST

Manipur Violence News: मणिपुर के तेंगौपाल जिले के मोलनोई में आज यानी 9 अगस्त को दो सशस्त्र समूहों के बीच झड़प हो गई, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई. जबकि कई लोग जख्मी हुए हैं. पुलिस अधिकारी ने यह जानकारी दी है.

अधिकारी ने क्या कहा?
एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि गोलीबारी आदिवासी उग्रवादी संगठन यूनाइटेड कुकी लिबरेशन फ्रंट (यूकेएलएफ) और विलेज वालंटियर फोर्स (वीवीएफ) के कैडरों के बीच हुई. उन्होंने कहा कि दोनों सशस्त्र समूह एक ही समुदाय के हैं. अधिकारी ने बताया कि मारे गए तीन लोगों में से दो वीवीएफ और एक यूकेएलएफ कैडर है.

मीडिया रिपोर्ट में किया गया है चौंकाने वाला दावा
हालांकि, कुछ रिपोर्टें थीं कि मरने वालों की संख्या चार थी. तीन वीवीएफ सदस्य और एक यूकेएलएफ कैडर, लेकिन अधिकारियों ने इसकी तस्दीक नहीं की है. हालात को कंट्रोल करने के लिए सुरक्षा बलों को इलाकों में भेजा गया है. यह घटना पिछले शनिवार को दक्षिणी असम के साथ मणिपुर के जिरीबाम जिले में हुई गोलीबारी और आगजनी के कुछ दिनों बाद हुई.

कई पुलिसर्मी हुए हैं जख्मी
इसके एक दिन बाद मैतेई और हमार आदिवासी समूहों ने शांति वार्ता के लिए एक बैठक की और सामान्य हालात लाने और घटनाओं को रोकने के लिए पूरी कोशिश करने का संकल्प लिया. जिरीबाम में 14 जुलाई को एक संयुक्त गश्ती दल पर संदिग्ध आतंकवादियों के जरिए घात लगाकर किए गए हमले में सीआरपीएफ के एक जवान की मौत हो गई और तीन दूसरे सुरक्षाकर्मी जख्मी हो गए हैं.

इस वजह से हिंसा है जारी
मणिपुर में तीन समुदाय हैं, मीतेई, नागा और कुकी। ज़्यादातर कुकी और नागा ईसाई हैं. दोनों समुदायों के बीच विवाद 1993 में शुरू हुआ जब नागाओं ने दावा किया कि कुकी समुदाय ने नागा समुदाय की ज़मीन पर अतिक्रमण किया है. इसका एक बड़ा कारण यह था कि नागा हमेशा कुकी को विदेशी मानते थे. हालाँकि, कुछ कुकी मणिपुर में तब से रह रहे थे जब उन्हें 18वीं सदी में बर्मा की चिन पहाड़ियों में उनकी ज़मीन से निकाल दिया गया था.

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