Israel-Hamas War Update: संयुक्त राज्य अमेरिका के ब्रॉडकास्टर एनबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायली सेना पिछले हफ्ते गाजा में एक वाहन को निशाना बनाने की अपनी जवाबदेही से पीछे हट गई है. इस हमले में अल-जज़ीरा के दो पत्रकारों की मौत हुई थी. इस हमले में अल जजीरा के गाजा ब्यूरो प्रमुख वाएल दहदौह का सबसे बड़ा बेटा हमजा मारा गया था. हमले में पत्रकार मुस्तफ़ा थुराया की भी मौत हुई थी, जबकि तीसरा यात्री, पत्रकार हाज़ेम रजब गंभीर तौर पर घालय हुआ था.
हमले के दौरान इजराइली सेना ने कहा था कि वह गाड़ी में एक आतंकी को टारगेट कर रहे थे. इसने एक बयान में पुष्टि की गई है कि एक सैन्य विमान ने "एक आतंकवादी की पहचान की और उस पर हमला किया, जिसने एक विमान संचालित किया था जो (इज़राइली) सैनिकों के लिए खतरा पैदा कर सकता था." हालाँकि, जब पूछा गया कि क्या इज़राइल के पास कोई सबूत है कि कार में एक तथाकथित आतंकवादी मौजूद था, तो सेना के प्रवक्ता डैनियल हगारी ने एनबीसी को इस घटना को "दुर्भाग्यपूर्ण" बताया, और कहा कि यह निर्धारित करने के लिए एक जांच जारी थी कि क्या हुआ था.
हागारी ने एनबीसी को बताया, "प्रत्येक पत्रकार की मृत्यु दुर्भाग्यपूर्ण है...... हम समझते हैं कि वे एक ड्रोन लगा रहे थे और युद्ध इलाके में ड्रोन का इस्तेमाल करना एक समस्या है. यह आतंकवादियों जैसा दिखता है.'' उन्होंने आगे कहा कि हमास इजरायली बलों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करता है. उन्होंने आगे कहा कि हम इस मामले की जांच कर रहे हैं और हम डेटा देंगे.
हमले की स्वतंत्र जांच का आह्वान करते हुए, कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने कहा: “इजरायल ने पहले कहा कि उसने गाजा में पत्रकारों को ले जा रही एक कार को घातक रूप से निशाना बनाया क्योंकि कार में एक आतंकवादी था. अब इसमें कहा गया है कि एक पत्रकार के जरिए ड्रोन के इस्तेमाल से ऐसा लग रहा है जैसे वे आतंकवादी थे." सीपीजे के मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका कार्यक्रम समन्वयक शेरिफ मंसूर ने कहा: “नागरिकों को निशाना बनाना गैरकानूनी है. पत्रकार अपने काम के लिए कैमरे और ड्रोन जैसे गैजेट का इस्तेमाल करते हैं. यह उन्हें आतंकवादी नहीं बनाता और निश्चित रूप से उन्हें निशाना नहीं बनाना चाहिए.”
7 अक्टूबर को मौजूदा संघर्ष शुरू होने के बाद से गाजा में 100 से अधिक पत्रकार मारे गए हैं. गाजा पर इजरायल के युद्ध के तीन महीनों में द्वितीय विश्व युद्ध या वियतनाम युद्ध की तुलना में अधिक पत्रकार मारे गए हैं.