गुवाहाटी / शरीफ उद्दीन अहमद: असम में बाल-विवाह के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के तहत अबतक हजारों लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. यहां के पुलिस थाने और जेल पति, ससुर और बालिका बधुओं के अन्य रिश्तेदारों से भर गए हैं. इसमें खास बात यह है कि पुलिस उन लोगों को भी उठाकर जेल में डाल रहे हैं, जिनकी शादी सालों पहले हुई थी और उन दंपत्ति के पास अब दो तीन बच्चे भी हैं. भारी संख्या में हो रही इन गिरफ्तारियों के बाद से पीड़ित परिवार में रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है. पुलिस जिन महिलाओं के कमाने वाले पति या ससुर को उठा ले गई है, उनके घरों का चूल्हा भी अब बुझने लगा है. कई स्थानों पर इसके विरोध में महिलाएं आगे आ गई हैं. वह पुलिस थानों और कोर्ट में अपने पतियों और रिश्तेदारों को छोड़ने के लिए गुहार लगा रही हैं. इस पुलिस कार्रवाई के विरोध में प्रदर्शन कर रही हैं.
जी सलाम के पत्रकार शरीफ उद्दीन अहमद को अपने पति और बेटे के जेल जाने व्यथा सुनाती एक महिला..
कार्रवाई के डर से घर छोड़कर फरार हो गए हैं पति
सईगांव के गोरेमारी इलाके में सफीकुल इस्लाम की पत्नी अपने 2 महीने के मासूम बच्चे को गोद में लिए अपने पति के वापस लौटने की राह देख रही है. सफीकुल पुलिस कार्रवाई के डर से घर से फरार हो गया है. पुलिस उसे खाज रही है. सफीकुल इस्लाम की पत्नी नाजिया (दबला हुआ नाम) से जब शादी हुई थी, तब नाजिया की उम्र सिर्फ 16 साल थी. अब वह 17 साल की हो गई है और उसके पास दा माह का एक बच्चा भी है.
नाजिया को नहीं पता है कि 16 साल की उम्र में उसकी जो शादी हुई थी, कानून की नजर में वह कोई अपराध है. उसके लिए सजा उसके पति को सजा भी हो सकती है. दस दिन पहले जब सफीकुल इस्लाम घर पर नहीं मिला तो पुलिस उसके पिता को उठाकर ले गई. इस वक्त वह दोनों कहां हैं, नाजिया को इस बात की कोई खबर नहीं है. नाजिया के घर में अभी खाने-पीने का कोई राशन नहीं है. उसे कल की फिक्र सताए जा रही है, आखिर उसका और उसके बच्चे का क्या होगा, जिसने जानबूझकर कोई अपराध नहीं किया है ?
सफीकुल के मामा के लड़के ने कहा कि सफीकुल के बाबा को अगर हम लोग खबर लेने जाते हैं तो थाने में इस बात के लिए पैसे मांगे जाते हैं. हम पैसे कहां से लाएंगे.
पुलिस थाने के पास बेटे और पति से मिलने के लिए विलाप करती महिलाएं
पतियों की गिरफ्तारी से भूखे मरने की नौबत
इसी गोरेमारी गांव की एक अन्य बुजुर्ग महिला ने बताया कि उसके बड़े बेटे ने एक नाबालिग लड़की से शादी की थी. शादी के बाद से वह अपने मां-बाप से अलग रह रहा था. पुलिस कार्रवाई से डरकर महिला का बड़ा बेटा अपनी पत्नी को छोड़कर कहीं भाग गया है. पिछले कई दिनों से उसका कोई पता नहीं है. उसके नहीं मिलने पर पुलिस ने उसके दो छोटे भाईयों को गिरफ्तार कर लिया है. महिला की चिंता है कि उनके छोटे बेटों की कमाई से ही घर-परिवार चलता था, अब उसका घर कैसे चलेगा ? एक अन्य महिला जैनब ने बताया कि उसकी शादी सालों पहले हुई थी. अब उसके पास दो बच्चे भी है, लेकिन पुलिस उसके पति के साथ ससुर को भी उठा ले गई है. उसके घर में कमाने वाला कोई नहीं है. जैनब और नाजिया की ये परेशानी आखिरी नहीं है, ऐसी सैंकड़ों महिलाएं है, जिसके पतियों की गिरफ्तार से उनके भूखे मरने की नौबत आ गई है.
कैदियों से मिलाने के लिए पुलिस मांगती है पैसे
उधर, लगातार हो रही गिरफ्तारियों की वजह से थानों के हाजत और जेलों में जगह कम पड़ गई है. राज्य के नलबाड़ी ज़िले से 185 आरोपियों को ग्वालपाड़ा डिटेंशन कैंप में शिफ्ट किया गया है. धुबड़ी ज़िले में अभियुक्तों को किसी दूसरे जेल में भेजने की तैयारी चल रही है. बाल विवाह के मामले में धुबड़ी में सबसे ज्यादा 374 मामले दर्ज किए गए हैं. यहां अब तक 155 लोग गिरफ्तार किए गए हैं जबकि तकरीबन 200 लड़के फरार चल रहे हैं. धुबड़ी जेल में कैदियों की क्षमता 221 की है जबकि इस वक़्त यहां पर 519 लोगों को बंद रखा गया है. कैदियों में अचानक होने वाली इस वृद्धि से जेल के अंदर की व्यवस्था चरमरा गई गई है.
पुलिस थाने के पास गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन करती महिलाएं.
पतियों के लिए सरकार बनाएगी डिटेंशन कैंप
सरकार ने कहा है कि वह एनआरसी कानून में पाए गए दाषियों को रखने के लिए जिस तरह डिटेंशन कैंप बनाया है, अब नाबालिक लड़कियों से शादी करने वाले पतियों के लिए भी ऐसा ही डिटेंशन कैंप बनवाएगी. वहीं, उन महिलाओं के लिए सरकार पुनर्वास कार्यक्रम चलाएगी और उनकी रोजी-रोटी का इंतजाम कराएगी. हालांकि, सरकार ने इस तरह की कार्रवाई में किसी तरह की ढील देने का कोई संकेत नहीं दिया है. ये मुहिम अभी जारी रहेगी.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
सरकार की इस कार्रवाई में कई पेंच फंस रहे हैं. मुस्लिम धार्मिक नेता और उलेमाओं का कहना है कि सरकार इस कानून के द्वारा खास तौर पर मुसलमानों को टारगेट कर रही है, जबकि मुस्लिम पर्सनल कानून के तहत 15 साल की लड़की को भी बालिग माना जाता है. ऐसे में इस कार्रवाई से बड़ा कानूनी मसला खड़ा हो रहा है, क्योंकि सरकार और देश का संविधान खुद पर्सनल कानून को मान्यता देता है. वहीं, सोशल एक्टिविस्ट ज्योत्सना मजूमदार कहती हैं, सरकार को कार्रवाई अभियान के पहले जागरुकता मुहिम चलानी चाहिए थी. हर किसी बीमारी को ऑपरेशन करके ठीक नहीं किया जा सकता है. उसके लिए लंबे समय तक दवाई खानी होती है. सरकार ने इसमें जल्दबाजी दिखाई है. कार्रवाई से पहले सरकार को पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिए थी.
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