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प्रस्तावित हिंदू जन आक्रोश रैली से डरे मुस्लिम्स; सुप्रीम कोर्ट ने दी ये फौरी राहत

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महाराष्ट्र पुलिस सुनिश्चित करे कि हिंदू संगठन के कार्यक्रम में कोई नफरती भाषण नहीं दे और इस पूरे प्रोग्राम की वीडियोग्राफी कराई जाए. इसी संगठन की पिछली रैली में मुस्लिम विरोधी नारे लगाए गए थे. 

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 प्रस्तावित हिंदू जन आक्रोश रैली से डरे मुस्लिम्स; सुप्रीम कोर्ट ने दी ये फौरी राहत
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Hussain Tabish|Updated: Feb 03, 2023, 05:36 PM IST

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार से यह पक्का करने के लिए कहा है कि हिंदू जन आक्रोश मोर्चा की मुंबई में पांच फरवरी को प्रस्तावित प्रोग्राम में कोई नफरती भाषण नहीं दिया जाए. महाराष्ट्र सरकार की तरफ से शीर्ष न्यायालय में पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ को बताया कि राज्य सरकार ने ये फैसला लिया है कि अगर कार्यक्रम के आयोजन की इजाजत दी जाती है, तो यह इस शर्त पर दी जाएगी कि कोई भी शख्स इसमें नफरती भाषण नहीं देगा और लॉ एंड ऑर्डर बरकरार रखेगा. 

यात्रा की वीडियोग्राफी कराए जाने के आदेश 
सुप्रीम कोर्ट शाहीन अब्दुल्ला नामक याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई कर रहा था. याचिका में यह सुनिश्चित करने के लिए कोर्ट के हस्तक्षेप की अपील की गई थी कि 29 जनवरी को हिंदू जन आक्रोश मोर्चा की सभा में हुई घटनाओं की पुनरावृत्ति अगली यात्रा में नहीं हो. इस कार्यक्रम में एक समुदाय विशेष के खिलाफ कथित तौर पर नफरती भाषण दिए गए थे. याचिकाकर्ता की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 151 लगानी चाहिए, जो उन्हें एक संज्ञेय अपराध रोकने के लिए गिरफ्तारियां करने की शक्ति देती है. सिब्बल ने पूरे कार्यक्रम की ‘वीडियोग्राफी’ कराए जाने और एक रिपोर्ट न्यायालय में सौंपे जाने की मांग की है. पीठ ने अपने आदेश में पुलिस को कार्यक्रम की ‘वीडियोग्राफी’ करने और एक रिपोर्ट सौंपने को कहा है .

सरकारी वकील ने कहा ये सेंसरशिप होगी 
सुनवाई के दौरान, मेहता ने याचिका का विरोध किया और याचिकाकर्ता पर चुनिंदा तरीके से मुद्दा उठाने का इल्जाम लगाया है. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता केरल का रहने वाला है, लेकिन उन्होंने महाराष्ट्र में एक प्रस्तावित कार्यक्रम को लेकर चिंता जताई है. सॉलिसीटर जनरल ने कहा, ‘‘अब, लोग चुनिंदा तरीके से विषय चुन रहे हैं और इस न्यायालय में आकर इस कार्यक्रम को उत्तराखंड या मध्य प्रदेश या महाराष्ट्र में प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे हैं. क्या इस कोर्ट को एक ऐसे प्राधिकार में तब्दील किया जा सकता है, जो कार्यक्रम के आयोजन की इजाजत प्रदान करता हो?’’ मेहता ने कहा कि कार्यक्रम रोकने का अनुरोध स्वीकार करना भाषणों की पहले ही कर दी गई ‘सेंसरशिप’ होगी. मेहता के जवाब में सिब्बल ने कहा कि 29 जनवरी के कार्यक्रम में सत्तारूढ़ दल के एक सांसद सहित भागीदारों ने आपत्तिजनक भाषण दिए थे और अगले चरण की इजाजत देने से पहले इन सभी पहलुओं पर विचार करने की जरूरत है.

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