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Diseases In Villages: गांवों में तेज़ी से फैल रही हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज़ की बीमारी, सरकार कर रही सर्वे

ICMR Research: आईसीएमआर ने भारत में नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों का जो डाटा पेश किया है, उसके मुताबिक शहरों की तरह ही गांवो में भी हार्ट अटैक, कैंसर, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां तेज़ी से फैल रही हैं.  

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Diseases In Villages: गांवों में तेज़ी से फैल रही हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज़ की बीमारी, सरकार कर रही सर्वे
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Pooja Makkar|Updated: Jul 10, 2023, 05:25 PM IST

Diseases In Villages: आपने अक्सर घर में बड़े बुजुर्गों को कहते सुना होगा कि बड़े शहरों की हवा खराब है, इसीलिए लोग बीमार पड़ते हैं. गांव में हवा भी अच्छी है, खाना भी बढ़िया है और सूकून भी बहुत है. सेहतमंद रहना है तो गांव चलो. लेकिन अब ये सोच भी गलत साबित हो रही है.हाल ही में आईसीएमआर ने भारत में नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों का जो डाटा पेश किया है, उसके मुताबिक शहरों की तरह ही गांवो में भी हार्ट अटैक, कैंसर, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां तेज़ी से फैल रही हैं. भारत में डायबिटीज़ अनुमान से बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है. एक लाख 13 हज़ार लोगों के डाटा पर आधारित नतीजे बता रहे हैं कि देश के गांव भी जैसे जैसे शहरों से प्रभावित हो रहे हैं, वैसे वैसे लाइफ स्टाइल वाली बीमारियों की गिरफ्त में आते जा रहे हैं. सबसे पहले आपको बताते हैं कि साल दर साल गांवों की सेहत कैसे बिगड़ रही है.

आईसीएमआर के 2003 के डाटा के मुताबिक ग्रामीण भारत में 41 फीसद मौतें संक्रामक बीमारियों से हो रही थीं, जबकि 40 फीसद मौतों का कारण लाइफस्टाइल वाली बीमारियां थीं. 2013 में गांवो में 47 फीसद मौतें लाइफस्टाइल वाली बीमारियों से हुई और 30 प्रतिशत मौतें संक्रामक बीमारियों और डिलीवरी या कुपोषण से जुड़ी हुई थीं. लेकिन 2023 आते आते गांवों में लाइफ स्टाइल वाली बीमारियां तेज़ी से बढ़ी. इस समय गांव में हर पांच में से एक व्यक्ति ब्लड प्रेशर का मरीज है और हर 20 में से एक को डायबिटीज़ हो चुकी है. संक्रामक बीमारियों से मतलब छुआछूत वाली बीमारियां, मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों, मौसमी इंफेक्शन जैसे मलेरिया, टायफायड आदि या फिर डिलीवरी के दौरान होने वाली मौतें. 

 

लाइफ स्टाइल वाली बीमारियों से मतलब है नॉन कम्युनिकेबल बीमारियां जैसे कि डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर, कैंसर और दिल की बीमारियां. भारत में जिन एक 1 लाख 13 हज़ार 43 लोगों का डाटा इकट्ठा किया गया उनमें से 33 हज़ार शहरी और 79 हज़ार गांवों से थे. 52 हज़ार यानी तकरीबन 46·5% पुरुष थे. 30 हज़ार यानी 26% लोगों ने कोई पढ़ाई लिखाई नहीं की थी.हालांकि गावों के मुकाबले शहरों के लोग कम उम्र में ही ज्यादा बीमार पाए गए. लेकिन आईसीएमआर ने अपने डाटा के जरिए ये चिंता जाहिर की है कि गांव के लोग भी तेज़ी से बीमार हो रहे हैं. ताज़ा डाटा के मुताबिक इस समय गांव में हर पांच में से एक व्यक्ति ब्लड प्रेशर का मरीज है और हर 20 में से एक को डायबिटीज़ हो चुकी है. 

 

सरकार ने 30 वर्ष से ज्यादा उम्र के हर भारतीय का हेल्थ डाटा इकट्ठा करना शुरु किया है जिससे ये पता चल सके कि किस बीमारी का फैलाव कितनी तेजी से हो रहा है। जिससे उस बीमारी को रोकने के तरीकों पर जोर दिया जा सके और उस बीमारी के इलाज की दवाएं बनाई जा सकें. गांवों में ये काम सरकारी हेल्थ सेंटर के ज़रिए किया जा रहा है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत देश में डेढ लाख से ज्यादा हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर बनाए गए हैं. जहां एक कम्युनिटी हेल्थ आफिसर बतौर डॉक्टर गांव वालों की साधारण बीमारियों का इलाज तो करेगा ही, साथ ही उनकी ब्लड प्रेशर, शुगर और कैंसर की बेसिक स्क्रीनिंग भी की जाएगी.

कम्युनिटी हेल्थ आफिसर यानी CHO शहरों के सरकारी अस्पताल में बैठे बड़े डॉक्टर से मरीज को टेली कंसल्टेशन के माध्यम से जोड़ने का काम भी करता है. भारत जैसे देश में जहां लोग कम पढ़े लिखे हैं, गांव में बेसिक फोन से काम चला रहे हैं. इंटरनेट और बिजली की सप्लाई से जूझ रहे हैं. उन गांवों में लाइफ स्टाइल वाली बीमारियों की स्क्रीनिंग करनी हो या मरीज का इलाज कुछ भी आसान नहीं है. ऐसे में गांव की सेहत सुधारने के रास्ते में चुनौतियां कम नहीं हैं. 

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