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क्या देश को मिल सकता है एक और मुस्लिम राष्ट्रपति; कौन होगा देश का अगला महामहिम

President Election: वर्तमान राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है. चुनाव आयोग ने नए और 16वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर दी है, लेकिन केंद्र की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए किसी उम्मीदवार के नाम अब तक जाहिर न करने पर सस्पेंस बना हुआ है.

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Hussain Tabish|Updated: Jun 10, 2022, 03:33 PM IST

नई दिल्लीः चुनाव आयोग ने गुरुवार को देश के 16 वें राष्ट्रपति के चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी है. चुनाव 18 जुलाई को होगा और वोटों की गिनती 21 जुलाई को होगी. वर्तमान राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है. 
खास बात यह है कि केंद्र सरकार या विपक्षी खेमे की तरफ से राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर अभी तक किसी का नाम पेश नहीं किया गया है. हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो इस बार केंद्र सरकार की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर कोई मुस्ल्मि चेहरा सामने आ सकता है.

मुस्लिम उम्मीदवार के पक्ष में तर्क 
मुस्लिम उम्मीदवार होने के पीछे विश्लेषकों का तर्क है कि जब से भाजपा केंद्र की सत्ता में आई है, मुसलमानों को लेकर उसकी छवि पिछली सरकारों की तुलना में ठीक नहीं रही है. एनआरसी, सीएए कानून, बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि पर फैसला, कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति और तीन तलाक जैसे मुद्दों पर पार्टी ने जिस तरह का स्टैंड लिया है, उससे न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी सरकार की छवि एक कट्टर दक्षिणपंथी रूझान वाली सरकार के तौर पर सामने आई है.  
इसके अलावा देश में चुनावों के पहले पार्टी नेताओं द्वारा मुस्लिम विरोधी नफरत भरे बयान और हाल के दिनों में भाजपा के दो पूर्व नेताओं नुपूर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल के पैगंबर मुहम्मद साहब के खिलाफ तथाकथित आपतित्तजनक टिप्पणियों पर जिस तरह से विदेशों में भारत की छवि को धूमिल करने की कोशिश हुई है, उससे सरकार का चिंतित होना लाजिमी है. हाल के दिनों में अमेरिका सहित संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य वैश्विक संस्थाओं ने भी अल्पसंख्यकों को लेकर भारत की मौजूदा सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े किए हैं. 

डैमेज कंट्रोल के लिए भाजपा आजमा चुकी है ये फॉर्मूला 
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राहुल लाल कहते हैं, ’’जो हाल अभी वर्तमान केंद्र सरकार का है, ठीक ऐसे ही हालात कभी एनडीए की प्रथम सरकार में गुजरात दंगों, सन् 2002 के बाद पैदा हो गए थे. अल्पसंख्यकों को लेकर भारत की छवि को विदेशों में धुमिल करने की कोशिश की गई थी, जिसके बाद तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने एपीजे अब्दुल कलाम को 25 जुलाई 2002 को राष्ट्रपति के पद पर बैठाकर पूरी दुनिया को ये संदेश देने में कामयाब हुई थी कि भारत में अल्पसंख्यकों के साथ कोई भेदभाव नहीं होता है. देश में अल्पसंख्यकों को लेकर एक स्पष्ट नीति है और अल्पसंख्यक वर्ग का कोई भी शख्स देश के सर्वोच्च पद तक पहुंच सकता है.’’ लाल कहते हैं, ’’ केंद्र के पास दुनिया के सामने भारत की वास्तविक छवि को पेश करने का  अभी एक अच्छा मौका है और सरकार इस मौके को किसी कीमत पर हाथ से जाने नहीं देगी.’’    

हालांकि वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई राहुल लाल से अलग मत रखते है. वह कहते हैं, "मुस्लिम राष्ट्रपति का विचार सिर्फ एक कोरी कल्पना है. वाजपेयी की सरकार और नरेंद्र मोदी की सरकार दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है. यहां सिर्फ मोदी और शाह के फैसले चलते हैं. अरब देशों का जो विरोध था वह भारतीय मुसलमानों को लेकर कतई नहीं था. उनका विरोध पैबंगर साहब पर टिप्पणी को लेकर था, और इस मामले में भाजपा ने आरोपी नेताओं को सस्पेंड कर दिया है. सरकार को मुस्लिम राष्ट्रपति से कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है. मोदी-शाह की जोड़ी किसी ऐसे नाम का ऐलान करेगी, जो सभी को चौंका देगी."

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कौन हो सकता है पार्टी का मुस्लिम उम्मीदवार 
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा केरल के वर्तमान राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर पेश कर सकती है. आरिफ मोहम्मद खान भाजपा और वर्तमान परिस्थितियों के लिहाज से पार्टी के लिए सबसे मुफीद उम्मीदवार हो सकते हैं. वह उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के निवासी हैं. चार बार लोकसभा सांसद, एक बार विधानसभा सदस्य और पूर्व कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. राजीव गांधी की सरकार में तीन तलाक यानी शाह बानो केस में पार्टी से अलग मत रखने के कारण उन्होंने कांग्रेस छोड़ दिया था. उनका एक लंबा राजनीतिक अनुभव रहा. उनमें सबसे खास बात यह है कि वह काफी उदारवादी और प्रोग्रेसिव किस्म के मुस्लिम हैं और मुस्लिम समाज में व्यापक सुधारों के हिमायती रहे हैं. तीन तलाक, एनआरसी और सीएए जैसे मुद्दों पर उन्होंने भाजपा का खुलकर समर्थन किया था. समान नागरिक संहित पर भी भाजपा के साथ उनकी प्रतिबद्धता जगजाहिर है.  इसलिए विश्लेषकों का मानना है कि खान भाजपा की तरफ से राष्ट्रपति के उम्मीदवार हो सकते हैं. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राहुल लाल का भी मानना है कि आरिफ मोहम्मद खान केंद्र सरकार की पहली सूची के उम्मीदवार हैं, लेकिन सरकार ऐन मौके पर किसी दूसरे उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर सभी को चौंका सकती है. खान के अलावा कोई और मुस्लिम चेहरा या फिर कोई दलित चेहरा भी पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति का उम्मीदवार हो सकता है. लाल मानते हैं कि पार्टी में अभी कोई मुस्लिम चेहरा नहीं बचा है, ऐसे में मुख्तार अब्बास नकवी भी पार्टी की तरफ से उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं.  

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