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पहले उपेंद्र कुश्वाहा, अब सम्राट चौधरी, JDU के पुराने सिपहसलार से ही BJP नीतीश को देगी गच्चा

भाजपा ने पहले उपेंद्र कुशवाहा को जदयू से अलग कर नीतीश कुमार के कुशवाहा वोट बैंक को कमजोर किया था, उसके बाद फिर कोईरी जाति से ही ताल्लुक रखने वाले सम्राट चौधरी को बिहार भाजपा का अध्यक्ष बनाकर नीतीश के कोर वोटर्स में सेंध लगाने का बंदोबस्त कर दिया है. 

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सम्राट चौधरी
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Hussain Tabish|Updated: Mar 23, 2023, 05:56 PM IST

नई दिल्लीः भाजपा ने गुरुवार को बिहार सहित चार प्रदेशों के भाजपा अध्यक्ष को बदल दिया है. बिहार में संजय जायसवाल को हटकार ओबीसी नेता और एमएलसी सम्राट चौधरी को नया प्रदेश अध्यक्षनाया गया है.  2018 में भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी में चौधरी (54), की स्थिति लगातार मजबूत होती रही है. 
बिहार पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अपनी नियुक्ति के सम्राट चौधरी ने कहा, "अगले साल 2024 राज्य की सभी 40 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करना और 2025 में विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करना सर्वोच्च प्राथमिकता है.’’ वहीं, जानकार मानते हैं कि भाजपा ने चौधरी पर दाव लगागर बिहार में नीतीश कुमार के जदयू को टक्कर देने और उनके कोर वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है. 

राजनीतिक घराने से है सम्राट चौधरी ताल्लुक 
बिहार विधान परिषद में पार्टी के नेता सम्राट चौधरी  राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कुशवाहा समुदाय से आते हैं. सम्राट चौधरी बिहार के कद्दावर नेता रहे शकुनी चौधरी के बेटे हैं. शकुनी चौधरी सात बार बिहार में विधायक रह चुके हैं. इसके अलावा वह समता पार्टी के संस्थापक सदस्य होने के साथ ही एक बार खगड़िया लोकसभा सीट के सदस्य भी रह चुके हैं. इसी समता पार्टी में कभी नीतीश कुमार भी थे.

राजद और जदयू के बाद भाजपा से जुड़े थे चौधरी 
सम्राट चौधरी इससे पहले बिहार भाजपा के उपाध्‍यक्ष भी रह चुके हैं. वह 1999 में कृषि मंत्री और 2014 में शहरी विकास और आवास विभाग के मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं. चौधरी छह साल पहले भाजपा में शामिल हुए थे. इससे पहले वह लालू प्रसाद की राजद और नीतीश कुमार की जद (यू) दोनों पार्टी में रह चुके हैं. 2000 और 2010 में परबत्ता से बिहार विधानसभा में वह राजद के टिकट पर विधायक रह चुके हैं. 2000 से राबड़ी देवी सरकार में सम्राट चौधरी मंत्री थे. 

लिबास की तरह पार्टी बदलते रहे हैं चौधरी 
2014 में, नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनावों में जद (यू) की हार के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देकर जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया था. उस वक्त चौधरी ने राजद छोड़कर जीतन राम मांझी मंत्रालय में शामिल हो गए थे. चौधरी तब 13 असंतुष्ट राजद विधायकों के एक गुट का हिस्सा थे, जिनमें से कई ने बाद में दावा किया कि उनका पार्टी छोड़ने का इरादा नहीं था और विभाजन के लिए आवश्यक संख्याओं को इकट्ठा करने के लिए कागज के एक खाली टुकड़े पर उनसे धोखे से हस्ताक्षर करा लिए गए थे. 2017 तक, सम्राट चौधरी का जद (यू) से भी मोहभंग हो गया और वे भाजपा में शामिल हो गए. बाद में नतीश भी भाजपा के साथ जुड़ गए. चौधरी ने जिस संजय जायसवाल की जगह ली है, कभी उन्होंने भी इसी तरह राजद के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी. 

सम्राट चौधरी के बहाने नीतीश से हिसाब कर रही भाजपा 
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि विधान परिषद में विपक्ष के नेता, रहे चौधरी अबतक जद (यू) के नेता के एनडीए में रहने तक नीतीश कुमार सरकार में मंत्री थे. लेकिन भाजपा ने उन पर दांव लगाकर बिहार के मुख्यमंत्री के जनाधार में सेंध लगाने की कोशिश की है. चौधरी के बहाने भाजपा ने बिहार में जदयू के कुर्मी-कोयरी वोट बैंक में सेधमारी करेगी. नीतीश खुद कुर्मी जाति से ताल्लुक रखते हैं औ कुर्मी-कुशवाहा दोनों उनका कोर वोटर रहा है. उपेंद्र कुशवाहा के जदयू छोड़कर भाजपा के साथ जाने से नीतीश पहले से ही कुशवाहा वोटों के छिटकने का खतरा झेल रहे थे, अब सम्राट चौधरी के आने के नीतीश के जदयू के लिए आने वाले चुनावों में राहें और मुश्किल हो जाएगी. 

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