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भारत की एक बड़ी आबादी को नहीं मिल रहा है अच्छा खाना; रिपोर्ट में बताई गई ये वजह

Global Nutrition Report:‘स्टेट ऑफ इंडियाज इनवायरन्मेंट 2022: इन फीगर्स’ नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि खराब आहार से जुड़े रोगों में श्वसन रोग, मधुमेह, कैंसर, दिल का दौरा पड़ना, हृदय रोग आदि शामिल हैं.

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अलामती तस्वीर
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Zee Media Bureau|Updated: Jun 03, 2022, 06:57 PM IST

नई दिल्लीः सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरन्मेंट (CSE) और डाउन टू अर्थ पत्रिका की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 71 फीसदी भारतीय सेहतमंद खान-पान के खर्चे को वहन नहीं कर सकते हैं. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि खराब आहार के कारण देश में 17 करोड़ व्यक्तियों की मौत हो जाती है. ‘स्टेट ऑफ इंडियाज इनवायरन्मेंट 2022ः इन फीगर्स’ नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि आहार से जुड़े रोगों में श्वसन रोग, मधुमेह, कैंसर, दिल का दौरा पड़ना, हृदय रोग आदि शामिल हैं.

ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट, 2021 में किया गया खुलासा 
रिपोर्ट में, फल, सब्जियों, साबुत अनाज के रूप में कम आहार का और प्रसंस्कृत मांस, ‘रेड मीट’ (लाल मांस) और चीनी युक्त पेय पदार्थों के रूप में अधिक आहार का जिक्र किया गया है. ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट, 2021 का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘71 प्रतिशत भारतवासी स्वस्थ आहार वहन नहीं कर सकते हैं, जबकि वैश्विक औसत 42 प्रतिशत है.’’ इसमें कहा गया है कि एक औसत भारतीय के आहार में फल, सब्जियां, दाल, गिरिदार फल या मेवा और साबुत अनाज का अभाव है. वहीं, मछली, डेयरी और मांस का इस्तेमाल तयशुदा मिकदार से कम है. 

फलों का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं भारतीय 
खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक, स्वस्थ आहार, उस वक्त अवहनीय माना जाता है जब किसी व्यक्ति की आय का 63 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा इस पर खर्च होता है. भारत में, 20 साल या इससे ज्यादा उम्र के बालिग शख्स सिर्फ 35.8 ग्राम फल ही खाते हैं, जबकि 200 ग्राम प्रतिदिन की सिफारिश की गई है और न्यूनतम 300 ग्राम सब्जियों की तुलना में महज 168.7 ग्राम का ही उपभोग करते हैं. वे प्रतिदन 24.9 ग्राम दाल (लक्ष्य का 25 प्रतिशत) और 3.2 ग्राम गिरिदार फल या मेवा (लक्ष्य का 13 प्रतिशत) का इस्तेमाल करते हैं.

देश में कुपोषण अस्वीकार्य स्तर पर मौजूद 
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में हुई तरक्की के बावजूद, यहां के लोगों के आहार स्वास्थ्यकर नहीं हो रहे हैं. यहां तक कि देश में कुपोषण अस्वीकार्य स्तर पर मौजूद है. इसमें कहा गया है, ‘‘ अगर हम कार्रवाई करने में नाकाम रहें तो मानव, पर्यावरण और आर्थिक स्तर पर हमें कहीं ज्यादा बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी. वैश्विक खाद्य प्रणाली स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करने में नाकाम रही है.’’ रिपोर्ट में खाद्य पदार्थों की कीमतों का भी विश्लेषण किया गया है. इसमें कहा गया है कि उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) मुद्रास्फीति में पिछले साल 327 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में 84 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

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