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बोलकर दिया गया तलाक ही काफी, कोर्ट जाने की जरूरत नहीं; हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिला को दी राहत

HC Divorced Muslim women: मौजूदा मामले में जोड़े के बीच 2012 में विवाह हुआ था, लेकिन यह लंबे वक्त तक नहीं चल सका और शौहर ने 2014 में तलाक दे दिया. महिला को थलास्सेरी महल काजी के जरिए जारी तलाक प्रमाण पत्र भी मिला. 

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बोलकर दिया गया तलाक ही काफी, कोर्ट जाने की जरूरत नहीं; हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिला को दी राहत
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Taushif Alam|Updated: Jan 16, 2024, 07:15 PM IST

HC Divorced Muslim women: केरल हाईकोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को तलाक दर्ज करने लिए कोर्ट में भेजने की जरूरत नहीं है, अगर यह मुस्लिम कानून के मुताबिक सही है. 

जस्टिस पी वी कुन्हिकृष्णन ने कहा, "सिर्फ इसलिए कि एक औरत ने अपनी शादी को केरल विवाह पंजीकरण (सामान्य) नियम, 2008 के मुताबिक, पंजीकृत किया है, उसे अपने तलाक को दर्ज करने के लिए कोर्ट में घसीटने की जरूरत नहीं है, अगर यह उसके मुस्लिम कानून के मुताबिक, सही किया गया था. संबंधित अधिकारी कोर्ट के आदेश पर जोर दिए बिना तलाक दर्ज कर सकता है. मुझे लगता है कि ऐसा है, इस संबंध में नियम 2008 में एक कमी है. विधायिका को इस बारे में सोचना चाहिए."
 
वहीं, जस्टिस कुन्हिकृष्णन ने मामले में अपने 10 जनवरी के फैसले में कहा, "रजिस्ट्री इस फैसले की एक प्रति राज्य के मुख्य सचिव को कानून के मुताबिक, आवश्यक कार्रवाई करने के लिए भेजेगी." कोर्ट ने कहा, "2008 के नियमों के तहत, एक तलाकशुदा मुस्लिम औरत तब तक दुबारा शादी नहीं कर सकती, जब तक कि सक्षम कोर्ट से संपर्क करके विवाह रजिस्टर में प्रविष्टि को हटा नहीं दिया जाता है, लेकिन शौहर को ऐसी कोई बाधा नहीं आती है."

रजिस्ट्रार ने तलाक दर्ज करने से किया इनकार
कोर्ट का आदेश और टिप्पणियां एक तलाकशुदा मुस्लिम औरत की पिटीशन पर आईं, जिसमें मकामी रजिस्ट्रार को निर्देश देने की मांग की गई थी. विवाह रजिस्टर में अपने तलाक को दर्ज करने के लिए उसने राहत के लिए कोर्ट का रुख किया, क्योंकि रजिस्ट्रार ने इस आधार पर तलाक की प्रविष्टि दर्ज करने से इनकार कर दिया कि 2008 के नियमों में उसे ऐसा करने के लिए करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है. पिटीशन पर विचार करते वक्त कोर्ट ने सवाल किया कि एक बार, जब शौहर ने तलाक दे दिया, तो क्या 2008 के नियमों के मुताबिक, विवाह पंजीकरण अकेले मुस्लिम औरत के लिए बोझ हो सकता है.

जानें पूरा मामला
मौजूदा मामले में जोड़े के बीच 2012 में विवाह हुआ था, लेकिन यह लंबे वक्त तक नहीं चल सका और शौहर ने 2014 में तलाक दे दिया. महिला को थलास्सेरी महल काजी के जरिए जारी तलाक प्रमाण पत्र भी मिला. हालाँकि, जब वह 2008 के नियमों के तहत विवाह रजिस्टर में तलाक दर्ज कराने गई, तो रजिस्ट्रार ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. 

कोर्ट ने रजिस्ट्रार को दिया ये आदेश
रजिस्ट्रार के रुख से असहमति जताते हुए कोर्ट ने कहा, ''अगर विवाह को पंजीकृत करने की शक्ति है, तो तलाक को रिकॉर्ड करने की शक्ति भी विवाह को पंजीकृत करने वाले प्राधिकारी के लिए अंतर्निहित और सहायक है, अगर मुस्लिम कानून के तहत तलाक होता है."

कोर्ट ने स्थानीय विवाह रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि वह तलाक की प्रविष्टि दर्ज करने के लिए औरत के आवेदन पर विचार करे और उसके पहले शौहर को नोटिस जारी करने के बाद उस पर उचित आदेश पारित करे. इसने प्राधिकरण को इस फैसले की मुहर लगी प्रमाणित प्रति मिले होने की तारीख से एक महीने की वक्त के भीतर, किसी भी दर पर, जल्द से जल्द प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया. इन निर्देशों के साथ कोर्ट ने मामले का निपटारा कर दिया.

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