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Assam Muslim Marriage: कोर्ट में होगी शादी, तो क्या करेंगे क़ाज़ी; वीरान हुआ क़ाज़ी ख़ाना

Assam News: असम के मुस्लिम मैरिज एंड डायवर्स एक्ट 1935 को असम कैबिनेट के खारिज करने के बाद पूरे असम के सदर काजी खाने एक वीरान खंडर बनने जा रहे हैं. क्योंकि इस कानून को रद्द करने के बाद काजी खाने में कोई निकाह नहीं होगा और मुस्लिम शादी की रजिस्ट्री भी नहीं की जाएगी.

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Assam Muslim Marriage: कोर्ट में होगी शादी, तो क्या करेंगे क़ाज़ी; वीरान हुआ क़ाज़ी ख़ाना
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Sabiha Shakil|Updated: Mar 01, 2024, 09:28 PM IST

Assam Special Marriage Act: असम के मुस्लिम मैरिज एंड डायवर्स एक्ट 1935 को असम कैबिनेट के खारिज करने के बाद पूरे असम के सदर काजी खाने एक वीरान खंडर बनने जा रहे हैं. क्योंकि इस कानून को रद्द करने के बाद काजी खाने में कोई निकाह नहीं होगा और मुस्लिम शादी की रजिस्ट्री भी नहीं की जाएगी. इसी बात पर असम के काजी चिंतित हालत में है कि, निकाह कौन करवाएंगे और कौन निकाह का रजिस्ट्रेशन करवाएगा. काजी का कहना है कि इसमें जो गलती थी उसको अमेंडमेंट करना चाहिए था ना कि इस कानून को खत्म करना चाहिए था. क्योंकि, कोर्ट में रजिस्ट्री करने के लिए बहुत रकम की जरूरत होती है. जबकि, काजी खाने में कम खर्चे में निकाह हो जाता है और उसका रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट भी मिलता है.

गुवाहाटी के सदर काजी मौलाना सेख फखरुद्दीन अहमद कश्मी से जी मीडिया ने खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने असम कैबिनेट द्वारा किए गए फैसले को गलत बताया. उन्होंने कहा कि, असम सरकार को इसे बंद न करके, इसमें अमेंडमेंट करना चाहिए था. क्योंकि, यह मुसलमान के निकाह को लेकर बहुत गलत फैसला है. फखरुद्दीन कासमी ने साफ तौर से कहा कि, हमारे जो काजी खाना है यहां पर कभी भी कम उम्र की शादी नहीं हुई और न ही बाल विवाह हुआ.हम अगर शादी करवाते हैं उसके पहले लड़का और लड़की के आधार कार्ड के साथ-साथ उम्र के दूसरे सर्टिफिकेट भी देखते हैं. उसके बाद ही यहां शादी का रजिस्ट्रेशन होता है.

उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि, असम सरकार ने कहा कि कोर्ट में रजिस्ट्री की जाएगी. लेकिन कोर्ट में वकील के पास जाकर पैसा खर्च करना होगा. उन्होंने कहा कि हर किसी के लिए ये मुमकिन नहीं होगा. काजी खाना बंद होने के सवाल का जवाब देते हुए मौलाना फखरुद्दीन ने कहा कि, हमें सरकार से कोई पैसा नहीं मिलता था, सिर्फ हमें रजिस्ट्रेशन करने का लाइसेंस ही मिलता था. हम लोग इस लाइसेंस के जरिए यहां पर गरीब मुसलमानों का निकाह करवाते थे और सरकारी तौर पर रजिस्ट्रेशन करवाते थे.बता दें कि, असम सरकार ने लंबे समय से चले आ रहे असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को निरस्त कर दिया. यह फैसला मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की कयादत में राज्य कैबिनेट की बैठक के दौरान लिया गया था.

 Report: Sharifuddin Ahmed

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