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सिरमौर में शुरू हुआ बूढ़ी दीवाली पर्व, ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचे गांव के लोग

विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान वाले सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली पर्व शुरू हो गया है. सप्ताह भर चलने वाला यह पर्व मागशिर अमावस्या से शुरू हो गया है. बूढ़ी दिवाली पर्व दीपावली के ठीक 1 महीने बाद मनाया जाता है. नाच गाने और दावतों के इस पर्व के दौरान गेहूं से बनने वाली नमकीन यानी मूड़ा और चावल के पापड़ विशेष तौर पर परोसे जाते हैं. मूड़ा गेहूं से बनने वाली ऐसी नमकीन है जो सिर्फ इसी क्षेत्र में प्रचलित है. यह पर्व 3 से 7 दिनों तक बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. कहा जाता है कि भगवान रामचन्द्र के वनवास से लौटने के बाद खुशी में नागरिकों ने घी के दीप जलाए और खुशियां मनाई उसी परंपरानुसार आज भी पहाड़ी क्षेत्रों में एक महीने बाद दिवाली मनाई जाती है. इस त्यौहार में महाभारत काल की सभ्यता की झलक मिलती है. अमावस्या की सुबह सूखे डंडे की मशालें जला कर पारम्परिक नाच गाने के पूरे गांव में जलूस निकाला जाता है. मशाल जलूस का समापन गांव के बाहर ‘बलराज जलाया जाता है. इस अवसर पर ढोल, करनाल, दुमानू,हुड़क आदि बाजे बजाते हुए जाते हैं और बच्चे और नौजवान ‘जले बलराज’ कह कर ‘डाह’ को जलाते हैं.

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