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Himachal Pradesh: शिमला पर मंड़रा रहे खतरे के बादल, यहां भी धंसने लगी जमीन

Himachal Pradesh: जोशीमठ में इन दिनों हालात काफी खराब हो गए हैं. लोगों के घरों में दरारें पड़ने से वह डर के साए में जी रहे हैं, लेकिन अब पहाड़ों की रानी शिमला पर भी खतरे के बादल मंड़रा रहे है.  

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सांकेतिक तस्वीर
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Poonam |Updated: Jan 18, 2023, 12:26 AM IST

समीक्षा कुमारी/शिमला: उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने के बाद शिमला शहर के अस्तित्व पर भी सवाल उठने लगे हैं. सवाल स्वाभाविक हैं क्योंकि पहाड़ों की रानी शिमला को अंग्रेजों ने 25 हजार की आबादी के लिए बसाया था, लेकिन वर्तमान में शहर की आबादी सभी उपनगरों को मिलाकर करीब पौने तीन लाख है. करीब 30 लाख सैलानी हर वर्ष शिमला आते हैं. ऐसे में यहां पानी से लेकर मूलभूत सुविधाएं कम पड़ने लगी हैं. 

स्थिति यह हो गई है कि जितने लोगों के लिए शहर बसाया गया था, उससे ज्यादा तो यहां पर मकान और इमारतें बन गई हैं. इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं. शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान के एक हिस्से में दरारें आ रही हैं. और तो और लक्कड़ बाजार का भी कुछ हिस्सा धंसने लगा है. 

इन जगहों पर भवन निर्माण पर लगी रोक
इस एरिया में भवन निर्माण पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है. वहीं, शिमला प्लानिंग एरिया में ढाई मंजिल से ज्यादा भवन निर्माण पर भी रोक है. हालांकि, इससे पहले शहर व उपनगरों में बहुमंजिला भवनों का निर्माण चुका था. समिट्री, न्यू टुटू, शिवनगर, देवनगर जैसे कई उपनगर ऐसे हैं जहां  चलने के लिए रास्ते तक नहीं बचे हैं. लोग नालियों और पाइपों के लिए आपस में झगड़ा करने लगे हैं. शहर में वाहनों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए प्रदेश हाई कोर्ट ने बिना पार्किंग वाहनों के पंजीकरण पर रोक लगा दी है. इससे भी शहर को राहत मिली है.

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रिटायर्ड आईएएस श्रीनिवास जोशी ने बताया कि शिमला ओवरक्राउडेड हो रहा है. यह शहर 25,000 लोगों के लिए बनाया गया, लेकिन अब शहर में तीन लाख के करीब आबादी रहती है. उन्होंने कहा कि इसे बचाया जा सकता है. साल 2004 में रिटेंशन पॉलिसी शुरू हुई थी, लेकिन उसे सभी नेता  अपनी सुविधा और समय अनुसार बदलते रहे. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि यहां बनी हेरिटेज बिल्डिंग देखने के लिए सैलानी यहां आते हैं. उन्होंने कहा कि डकटाइम बिल्डिंग तैयार करके उन इमारतों को बचाया जा सकता है.

शिमला के लिए की गई प्रडिक्शन
टाइम बिल्डिंग भूचाल के समय हिलती है, लेकिन गिरती नहीं है. शिमला साईजमिक जोन 4 में है, लेकिन धीरे-धीरे 5 की ओर बढ़ रहा है. वहीं, जिस तरह से शिमला के लिए एक प्रिडिक्शन की जाती है कि एक भूचाल शिमला में आएगा तो ऐसे में प्रशासन की तैयारियां उसी प्रकार से होनी चाहिए ताकि किसी भी दुर्घटना से बचने का समाधान हो सके. छोटे-छोटे एरिया में वार्ड में भूकंप जोन के लिए कमेटी बनाई जानी चाहिए. साथ ही मोबाइल नंबर भी एक जारी करना चाहिए ताकि लोग जिस स्थिति में हो उन्हें तुरंत मदद मिल सके. शिमला में अभी भी 25,000 के करीब अनाधिकृत मकान हैं जिन्हें अभी तक अधिकार तक नहीं मिला है.

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वरिष्ठ पत्रकार व उत्तराखंड निवासी धनंजय शर्मा ने बताया कि एनजीटी ने शिमला में ढाई मंजिल से अधिक मकान बनाने की अनुमति दी है. लक्कड़ बाजार ढाई मीटर तक धंस चुका है, लेकिन प्रशासन ने भी अभी सुध तक नहीं ली है. शिमला और हिमाचल के कुछ क्षेत्रों को सैटलाइट टाउन से जोड़ने की जरूरत है. 

शिमला से कम करना होगा आबादी का दबाव
उत्तराखंड के जोशीमठ में जो स्थिति है अभी उस तरह की शिमला में नहीं है, लेकिन हिमाचल के जिला किन्नौर में समय रहते इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो वहां भी जोशीमठ जैसी स्थिति बन सकती है. इसके लिए यहां की आबादी का दबाव कम करना होगा. सीवरेज सिस्टम सड़कें व एनजीटी द्वारा दी गाइडलाइंस पर गौर करना होगा. अर्थक्वेक प्रूफ बिल्डिंग बनानी होंगी.

जोशीमठ और शिमला में फर्क- विधायक हरीश नासा 
वहीं, शिमला शहर के विधायक हरीश नासा ने कहा कि राजधानी होने के कारण शिमला ओवरक्राउडेड हो चुका है, लेकिन जोशीमठ की तुलना में शिमला को नहीं देखा जा सकता क्योंकि वहां की परिस्थितियां अलग थीं. शिमला में हम प्रयास कर रहे हैं कि सीवरेज सिस्टम सड़कें और अन्य चीजों पर ध्यान दें.  

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