Home >>Zee PHH Religion

उज्जैन के महाकाल मंदिर में इस तरह की जाती है भगवान शिव की पूजा

Ujjain Mahakal Mandir News: उज्जैन के महाकाल मंदिर में श्रावण के तीसरे सोमवार को विशेष पूजा की गई. भक्तों ने आज  सुबह दक्षिण मुखी ज्योतिर्लिंग के भस्मार्ती दर्शन किए.

Advertisement
उज्जैन के महाकाल मंदिर में इस तरह की जाती है भगवान शिव की पूजा
Stop
Poonam |Updated: Aug 05, 2024, 02:50 PM IST

राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: आज श्रावण माह का तीसरा सोमवार है. मंदिर के पुजारियों अनुसार, आज भक्तो संग बाबा महाकाल ने भी उपवास किया हुआ है. कहा जाता है कि सनातन धर्म में सबसे पवित्र सावन महीना होता है. शिव पूजा का अत्यधिक महत्व होने के चलते जगह-जगह शिवालयों में सुबह से ही भक्तों का जनसैलाब उमड़ रहा है. 

आज श्रावण माह के तीसरे सोमवार पर हम आपको करवाते हैं घर बैठे एक मात्र दक्षिण मुखी ज्योतिर्लिंग के भस्मार्ती दर्शन. मंदिर में रिमझिम बारिश के बीच भक्त जय श्री महाकाल के जयकारे लगाते हुए पहुंच रहे हैं. मंदिर के द्वार सुबह तड़के 02 बजकर 30 मिनट पर खोल दिए गए जो आम दिनों में 03 बजे खोले जाते हैं. भस्मार्ती के दौरान कार्तिकेय मण्डपम् की अंतिम 3 पंक्तियों से श्रद्धालुओं के लिए चलित भस्मार्ती दर्शन व्यवस्था है, जिसका अधिक से अधिक भक्त लाभ ले रहे हैं.

मंदिर के पुजारी महेश शर्मा ने बताया कि बाबा महाकाल मंदिर में परंपरा रही है कि श्रावण मास में 4 या 5 सवारियां होती हैं और 2 सवारी भाद्रपद (भादौ मास) की होती हैं, जिसमें बाबा नगर भ्रमण पर हर सोमवार को भक्तों का हाल जानने उन्हें आशीर्वाद देने खुद शाही ठाठ बाट के साथ निकलते हैं. तीसरे सोमवार को भगवान भक्तों को मनमहेश, चंदमोलेश्वर व शिवतांडव रूप में हाथी, पालकी व रथ में सवार होकर दर्शन देंगे. इसी प्रकार हर सोमवार को सवारी में एक-एक वाहन और विग्रह के रूप में प्रतिमा बढ़ती जाएगी और कुल 7 विग्रह भगवान के निकलेंगे.

मंदिर में आम दिनों की तुलना में श्रावण सोमवार को डेढ़ घंटे पहले पट खुल जाते है. यहां फुट पांति और जनेऊ पाती के वंशा वली अनुसार, पूजन का क्रम होता है. ये समय फुट पांति के पुजारियों के लिए है. उन्हीं ने आज द्वार खोले हैं. सबसे पहले बाल भद्र की पूजा हुई. उसके बाद भगवान का रोजाना का पूजन हुआ और घण्टाल बजाकर भगवान को संकेत दिया गया कि 'हे महादेव महाकाल हम आपके द्वार खोल रहे हैं और प्रवेश करना चाहते हैं', फिर मान भद्र का पूजन कर भगवान के गर्भ गृह का डेली का पूजन हुआ. इस तरह गर्भ गृह में हर रोज प्रवेश का क्रम पूरा होता है.

भगवान गणेश, कार्तिकेय, नंदी, सबको स्नान करवाया जाता है. पहले कपूर आरती होती है. इसके बाद सामान्य दर्शनार्थियों को प्रवेश दिया जाता है. इसके बाद हरि ॐ जल के बाद भगवान का पंचाभिषेक होता है. अलग-अलग प्रकार की वस्तुएं मंत्रों द्वारा भगवान को अर्पण की जाती है. ध्यान होता है आव्हान होता है भगवान को आसन दिया जाता है. भगवान के पैर धोए जाते हैं, उन्हें स्नान करवाया जाता है. इसके बाद पंचाभिषेक होता है. अलग-अलग द्रव्य से स्नान होता है. फल भांग और अन्य जिसके बाद दोबारा शुद्ध स्नान करवाकर भगवान का श्रृंगार किया जाता है.

पुजारी महेश शर्मा ने बताया श्रृंगार होने के बाद भस्म से स्नान करवाया जाता है, जिसे भस्मार्ती मंगला आरती कहा जाता है. इसके बाद रजत मुकुट आभूषण, वस्त्र भगवन को अर्पण किए जाते हैं, जिसके बाद भगवान दिव्य स्वरूप में निराकार से साकार रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं. दिव्यता के साथ धूप दी जाती है फिर दीप दर्शन, नैवेद्य चढ़ाया जाता है. इसके बाद सभी आरती लेते हैं और इस प्रकार सुबह की ये प्रक्रिया समाप्त हो जाती है.

पहली भस्मार्ती जो वंश परंपरा के पुजारी करते हैं, जिसके बाद 7 बजे आरती होती है, जिसमें चावल, दही, शक्कर का भोग लगता है. सामान्य पूजन और श्रृंगार होता है, जिसके बाद पुनः 10 बजे पंचमर्त पूजा होती है. पूर्ण भोग भगवान को लगता है, जिसमें दाल, चावल, सब्जी, रोटी भजिए और लड्डू बनते हैं, जिसे भोग आरती कहते हैं.

शाम को 5 बजे भगवन का स्नान होकर जल चढ़ना बंद हो जाता है. श्रृंगार होकर भगवान दूल्हा स्वरूप में विराजमान रहते हैं. निराकार से साकार स्वरूप में आ जाते हैं. फिर 7 बजे संध्या आरती, जिसमें दूध का भोग लगता है. इसके बाद रात 10 बजकर 20 मिनट पर शयन आरती होती है, जिसमें मेवे का प्रसाद और फिर द्वार बंद कर दिए जाते हैं और भगवान को आराम के लिए कहा जाता है. भस्मार्ती और शयन आरती मंदिर की परंपरा है व दिन की तीन आरती शासकीय आरती है सुख समृद्धि व अन्य के लिए जो ग्वालियर स्टेट के समय से चली आ रही है.

उन्होंने कहा कि श्रावण माह में शिव दर्शन करने से अनेक पापों का नाश होता है. साथ ही इस माह में जो भी भक्त शिव जी को जलधारा, दुग्ध धारा और बेल पत्र चढ़ाते हैं उनके तीन जन्मों के पाप का विनाश होता है. उसे अक्षुण्य पुण्य की प्राप्ति होती है. 1 बिल्व पत्र से 1 लाख तक बिल्व पत्र भगवान को अर्पण करने से कई यज्ञों का फल प्राप्त होता है. 

उन्होंने बताया कि इन दिनों जितने भी व्रत आते हैं वो सती और माता पार्वती ने किए हैं. ये व्रत दोनों ने अपने-अपने समय में शिव को मनाने व शिव को पाने के लिए किए थे. शिव जैसे पति की कामना के लिए वे व्रत करती थीं और मांगती थीं, इसलिए हमारे सनातन में महत्व है कि जो महिलाएं चार पहर की पूजा, व्रत, उपवास आदि करती हैं, उन्हें सौभग्य के फल की प्राप्ति होती है. कुंवारी बच्चियों को मनवांछित वर प्राप्त होता है. 

WATCH LIVE TV

Read More
{}{}