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Holi 2023: होली कब है? जानें होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, समय और पूजा विधि

Holi 2023 Date:  इस साल रंगों वाली होली 8 मार्च 2023 को मनाई जाएगी. वहीं, 7 मार्च को होलिका दहन का पर्व मनाया जाएगा. 

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Holi 2023: होली कब है? जानें होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, समय और पूजा विधि
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Muskan Chaurasia|Updated: Mar 06, 2023, 12:53 PM IST

Holi 2023 Date:  रंगों और प्यार का सबसे खास त्योहार होली को आने में अब कुछ दिन रह गए हैं.  होली को रंगों, खुशियों और हर्ष उल्लास का त्योहार कहा जाता है. हिंदू धर्म में होली के त्योहार को बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. पंचांग के मुताबिक, फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में होलिका दहन होता है और उसके अगले दिन यानि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होली खेली जाती है. इस साल रंगों वाली होली 8 मार्च 2023 को मनाई जाएगी. वहीं, 7 मार्च को होलिका दहन का पर्व मनाया जाएगा. 

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रंगों के त्योहार होली में लोग एक दूसरे को रंग, अबीर, गुलाल लगाते हैं और सारे गिले शिकवे भुलकर एक-दूसरे को गले लगाते हैं. वहीं इसी दिन लोग घर में तरह-तरह के पकवान बनाते हैं. इस दिन रंग लगाने के लिए लोग एक -दूसरे के घर जाते हैं. 
 
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन पर खासतौर से भद्रा की स्थिति पर विचार जरूर किया जाता है. लेकिन, इस बार होलिका दहन के समय भद्रा नहीं है. होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शाम 6.24 बजे से रात 8.51 बजे तक रहेगा, जो कि 2 घंटे 27 मिनट तक रहेगी.

बता दें, धार्मिक ग्रंथों में होलिका का पर्व होलिका और भक्त प्रह्लाद से जुड़ा है. कथा के अनुसार, राक्षसों का राजा हिरयण्यकश्यप देवताओं का शत्रु था, लेकिन उसका ही पुत्र यानी प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. ऐसे में हिरण्यकश्यप के बहुत समझाने पर भी जब प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी तो वह भक्त प्रह्लाद को यातना देने लगा. इतना करने के बावजूद जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठने को कहा. क्योंकि, होलिका को अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, लेकिन होलिका जब भक्त प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी तो वह जल गई और प्रह्लाद बच गया. तभी से ये पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाने लगा.

होलिक दहन की पूजा विधि
1. होलिका जलाने के लिए लकड़ी इक्ठ्ठा की जाती है , जहां पर पूजा की जाती है. 
2. वहीं होलिका में जलाने वाले लकड़ी पर धागे को बांध कर पूजा भा जाती है. 
3. फिर कूमकूम, गंगा जल और माला फूल चढ़ाकर पूजा की जाती है. 
4. इसके बाद अग्नि के चारों ओर फेरे लगाते हैं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. zee phh इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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