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भारत के कफ सिरप पर WHO का अलर्ट! भारतीय कंपनी ने कहा- हम साजिश के शिकार, भेजेंगे लीगल नोटिस

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) ने भारत में बने एक कफ सिरप पर अलर्ट जारी करते हुए उसे सब-स्टैंडर्ड बताया है, लेकिन इस बार पंजाब की कफ सिरप बनाने वाली कंपनी ने पलटवार किया है. भारत की छवि को बदनाम करने की साजिश बताया. भारत की दवा कंपनियों के साथ धोखाधड़ी का आरोप भी लगाया.

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भारत के कफ सिरप पर WHO का अलर्ट! भारतीय कंपनी ने कहा- हम साजिश के शिकार, भेजेंगे लीगल नोटिस

नई दिल्ली: क्या आप जानते हैं कि अमेरिका में इस समय खाई जा रही हर तीसरी दवा... और यूके में खाई जा रही हर चौथी दवा मेड इन इंडिया है. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ है कि भारत में बनी दवाओं पर अचानक इस साल में कई हमले हुए हैं. भारत की दवाएं, कफ सिरप एक के बाद एक खराब पाए जा रहे हैं. अचानक भारत की दवाओं से शिकायतें क्यों आ रही हैं? ये सवाल आज एक बार फिर इसलिए उठा है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation)  ने भारत में बने एक कफ सिरप पर अलर्ट जारी करते हुए उसे सब-स्टैंडर्ड बताया है.

कफ सिरप बनाने वाली कंपनी पर WHO ने जारी किया अलर्ट
इस कफ सिरप का नाम GUAIFENESIN SYRUP TG SYRUP है और इसे पंजाब की एक निर्माता कंपनी QP PHARMACHEM LTD बनाती है. WHO के मुताबिक आस्ट्रेलिया के Marshall Islands और Micronesia ने लैब जांच के आधार पर 6 अप्रैल को WHO को बताया कि ये कफ सिरप खराब क्वालिटी के हैं.

हालांकि ये कफ सिरप बनाने वाली कंपनी का दावा है कि उनके प्रोडक्ट में कोई खराबी नहीं है. वो साजिश और धोखाधड़ी का शिकार हुए हैं.

कंपनी के मालिक सुधीर पाठक के मुताबिक उन्होंने इस कफ सिरप को कंबोडिया की एक कंपनी को 2020 में बेचा था. ये प्रोडक्ट 2023 में Marshall Islands और Micronesia में कैसे पहुंच गए, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. QP PHARMACHEM LTD के मालिक सुधीर पाठक के मुताबिक ये भारत की फार्मा इंडस्ट्री की छवि खराब करने की साजिश है. इस भारतीय दवा कंपनी ने कंबोडिया को लीगल नोटिस भेजने की तैयारी कर ली है.

WHO ने चेतावनी दी है ये बड़ी चेतावनी
WHO के मुताबिक इस कफ सिरप में Diethylene glycol और ethylene glycol केमिकल हैं, जो इंसानों के लिए जानलेवा और जहरीले साबित हो सकते हैं. WHO ने बाकी देशों को भी सावधान क्या है कि अगर ये कफ सिरप उनके देश में है तो इसे इस्तेमाल न करें. साथ ही WHO ने चेतावनी दी है कि ऐसी लिक्विड दवाएं जिनमें propylene glycol, sorbitol, glycerin या glycerol हैं तो ये चेक कर लें कि कहीं उनमें ethylene glycol and diethylene glycol तो नहीं मिले हुए हैं.

क्या है इथलिन ग्लायकोल (Ethylene glycol)
इथलिन ग्लायकोल एक केमिकल है. जो इंडस्ट्रियल और मेडिकल, दोनों इस्तेमाल में आता है. अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल यानी CDC की वेबसाइट के मुताबिक 'Ethylene glycol (इथलिन ग्लायकोल) रंग और गंध रहित एक लिक्विड है जो मीठा होता है चीजों को जमने से रोकता है. हालांकि इसका ज्यादा इस्तेमाल किडनी और दिमाग पर बुरा असर डाल सकते हैं.' भारत में इन कंपाउंड के इस्तेमाल की मंजूरी है.

लेकिन इस बार सवालों के घेरे में खड़ी कंपनी का दावा है कि इस केमिकल के बिना कफ सिरप नहीं बनाए जाते. दिक्कत तब आती है जब कफ सिरप को सही तापमान पर ना रखा गया हो.

इससे पहले भी विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत में बनने वाले कफ सिरप को लेकर अलर्ट जारी कर चुका है. WHO इससे पहले दिसंबर 2022 में भारत में बने AMBRONOL सिरप और DOK-1 मैक्स सिरप को लेकर जारी कर चुका है. ये दवाएं नोएडा की फार्मा कंपनी मेरियन बायोटेक बना रही थी. ये कंपनी फिलहाल बंद है. अक्टूबर 2022 में हरियाणा की कंपनी मेडन फार्मा के 4 कफ सिरप को लेकर भी WHO ने अलर्ट जारी किया था. इस कंपनी को कई दौर की जांच से गुजरने और सस्पेंशन झेलने के बाद फिर से काम करने का लाइसेंस मिला है. कंपनी की सेल आधे से कम हो चुकी है.

अब आप सोचिए कि भारत में ये फार्मा कंपनियां कोई रातों रात तो खड़ी नहीं हो गई लेकिन 6 महीने के अंदर एक के बाद एक तीन कंपनियां निशाने पर कैसे आ गई जबकि ये सभी कफ सिरप कई सालों से बनाए और बेचे जा रहे हैं.

दो दिन पहले भारत में ड्रग रेगुलेटरी अथॉरिटी CDSCO Central Drugs Standard Control Organisation ने 48 ऐसी दवाओं की लिस्ट जारी की है जो क्वालिटी पर खरी नहीं उतरती यानी सब-स्टैंडर्ड होती हैं. इसका मतलब ये नहीं है कि वो दवा जान ही ले लेगी. SUBSTANDARD दवा का मतलब ये भी नहीं कि वो दवा नकली ही होगी. हो सकता है कि दवा में मिलाए गए सॉल्ट की मात्रा कम या ज्यादा हो, उसके लेबल पर जानकारी पूरी ना दी गई हो या फिर वो पूरी तरह नकली हो यानी उसमें दवा का कोई Component ही मौजूद ना हो. ये लिस्ट हर महीने अपडेट की जाती है. आप हाल में जारी की गई लिस्ट से समझ सकते हैं कि ज्यादातर दवाएं इसी आधार पर खारिज की गई, हम आपको ये भी बता देते हैं कि CDSCO ने कुल 1497 सैंपल टेस्ट किए थे जिसमें से 1449 सही पाए गए और 48 खारिज हुए.

हम ये नहीं कह रहे कि भारत की फार्मा इंडस्ट्री पर आंख बंद करके भरोसा किया जाना चाहिए, लेकिन जब हम अपने देश में बराबर चेकिंग कर रहे हैं तो एक्सपोर्ट किए जाने वाले सामान की चेकिंग भी जरूर कर रहे होंगे. और जो देश दवा आयात कर रहा है वो भी चेकिंग किए बिना अपने देश में दवा इस्तेमाल नहीं करेगा, लेकिन समस्या ये है कि कई देशों में दवाओं को चेक करने का कोई सिस्टम ही नहीं है. ऐसे में अगर उस देश में दवा ठीक से स्टोर ना हो पाई हो या ट्रांसपोर्ट के दौरान तापमान मेंटेन ना किया जा सका हो तो वो देश ठीकरा भारत के सिर फोड़ देता है.

सवाल ये है कि अचानक भारत की दवाओं से दिक्कतें कैसे शुरू हो गई हैं. एक्सपर्टस की राय में इसकी दो बड़ी वजहें हैं- कई बार फर्जी कंपनियां किसी दवा को बिना किसी मंजूरी या लाइसेंस के बनाने और बेचने लगती हैं, जिससे उस कंपनी की छवि खराब होती है जो असल में वो दवा बनाती है. इसके अलावा भारत की दुनिया की फार्मेसी वाली छवि से कई देशों को दिक्कत हो सकती है.

दवा उत्पादन के हिसाब से तीसरे स्थान पर है भारत
भारत दवा उत्पादन के हिसाब से तीसरे और वैल्यू के लिहाज से 14वें स्थान पर है. अमेरिका में इस खाई जा रही हर तीसरी और यूके में खाई जा रही हर चौथी दवा मेड इन इंडिया है. इसकी वजह ये है कि भारत में दवाएं बनाने की लागत कई देशों के मुकाबले कम आती है. भारत का दवा बाजार 4200 करोड़ रुपए का है, जिसे अगले एक साल तक 6500 करोड़ पार किए जाने की योजना है.

दुनिया के 206 देशों में भारतीय दवा निर्यात की जाती है. दुनियाभर में अलग-अलग बीमारियों के 50 फीसदी टीके भारत से निर्यात होते हैं. अब सरकार भारत के दवा बाजार को तेजी से बढ़ाने की तैयारी में है.

सरकार के आंकलन के मुताबिक भारत दवाओं के लिए जरूरी रॉ मैटिरियल का 60% हिस्सा चीन से मंगवाता है. इसे मेडिकल भाषा में API यानी Active Pharmaceutical Ingredient कहा जाता है. इसे बनाने की लागत चीन से मंगवाने की तुलना में ज्यादा है. ये API आमतौर पर कैप्सूल, पेनकिलर दवाएं विटामिन और एंटीबायोटिक दवाओं के हैं.  हालांकि सरकार अब इस बात को लेकर अलर्ट है और धीरे धीरे भारत रॉ मैटिरियल के मामले में भी आत्मनिर्भर होने की कोशिश में है.

मार्च 2022 में भारत में 32 प्लांट लगाए गए जहां वो 35 API बनाई जानी शुरू हुई जो अभी तक चीन से आती हैं. सरकार का मकसद है कि ऐसे 53 API को भारत में बनाया जाए तो जरूरी दवाओं वाले हैं और फिलहाल इसका 90% आयात चीन से हो रहा है. सरकार इसके लिए PLI production linked incentive scheme के तहत मदद भी कर रही है. इस कदम से अगले 5 सालों में चीन से API इंपोर्ट करने में 30% से ज्यादा की कमी की उम्मीद की जा रही है.

लेकिन भारत का दवा बाजार अब फिर से पूरी तरह आत्म निर्भर होने की तैयारी में है. इसका मतलब ये भी है कि भारत की अंतराष्ट्रीय दवा बाजार में हिस्सेदारी भी बढ़ेगी. जिसका नुकसान कई ऐसे देशों को हो सकता है जिनका दवा बाजार में वर्चस्व है. भारत की 2% फार्मा सेक्टर से आती है और भारत के कुल निर्यात में 8% योगदान फार्मा कंपनियों का है. इसलिए भारत की दवाओं पर जब सवाल उठें तो उनका सही विश्लेषण बेहद जरूरी है.

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