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क्या है सेंगोल का इतिहास, जो नए संसद भवन की बढ़ाएगा शोभा

Sengol History: जब से सेंगोल को नए संसद भवन में स्थापित करने की बात सामने आई है, तब से हर कोई इसके बारे जानने के लिए उत्सुक है. सेंगोल का तमिलनाडु से गहरा नाता है. क्या है इसका इतिहास चलिए आपको बताते हैं.

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क्या है सेंगोल का इतिहास, जो नए संसद भवन की बढ़ाएगा शोभा
Manushri Bajpai|Updated: May 25, 2023, 11:59 AM IST

नई दिल्ली: Sengol History: सेंगोल तमिल भाषा के शब्द 'सेम्मई' से बना हुआ है, जिसका अर्थ होता है धर्म, निष्ठा और सच्चाई.  14 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू को तमिलनाडु की जनता से सेंगोल भेंट किया था. जिसके सालों बाद सेंगोल गुमनामी में खो गया. अब 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन के समय सालों बाद एक बार फिर सेंगोल का नाम हर तरफ चर्चा में बना हुआ है. पीएम मोदी आजाद भारत की इस बहुमूल्य निशानी को नए संसद में स्थापित करने जा रहे हैं.

कहा से शुरू हुई सेंगोल की चर्चा

एक दिन पहले ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने स्वतंत्रता के प्रतीक 'सेंगोल' (राजदंड) की प्रथा को फिर से शुरू करने का ऐलान किया था. अमित शाह ने कहा कि सेंगोल अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था.

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शाह ने कहा कि पीएम मोदी द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले तमिलनाडु से सेंगोल प्राप्त किया जाएगा. इसके बाद इसको इसे नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा. 

नए संसद भवन में कहा होगा सेंगोल का स्थान

बता दें कि नए संसद में सेंगोल को स्पीकर की सीट के पास स्थापित किया जाएगा. सालों से संग्रहालय में रखे सेंगेल पर अमित शाह ने कहा, 'इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना ठीक नहीं है. सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त, पवित्र और उचित स्थान नहीं हो सकता है.  इसलिए जब संसद भवन का इद्धाटन होगा, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी तमिलनाडु से आए इस सेंगोल को स्थापित करेंगे.'

क्या है सेंगोल का इतिहास

सेंगोल सोने की छड़ी है. जिस पर पारंपरिक कलाकृति बनी हुई है, साथ ही इसके सिर पर नंदी विराजमान हैं. इसके इतिहास के बारे में बताते हुए अमित शाह ने कहा कि- 14 अगस्त 1947 को 10:45 बजे के करीब जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु की जनता से इस सेंगोल को स्वीकार किया था.

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उन्होंने यह भी बताया कि इसे इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था और इसे नए संसद भवन में ले जाया जाएगा. बता दें कि सेंगोल का चोल वंश से भी गहरा नाता है.

राजाजी ने बताया था इसका महत्व

वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू से जब इस प्रतीकात्मक समारोह के बारे में जानकारी मांगी थी, तब नेहरू जी ने सी. राजगोपालाचारी (राजाजी) से इसके बारे में सलाह ली थी. राजा जी ने चोल वंश की परंपरा दोहराने की सलाह थी. चोल वंश में जब सत्ता का हस्तांतरण होता था तो पुजारियों का आशीर्वाद और सेंगोल प्रतीक के रूप में उत्तराधिकारी को दिया जाता था. सेंगोल को अधिकार और शक्ति का प्रतीक माना जाता है.

कैसे किया गया इसे तैयार

राजाजी ने तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित एक धार्मिक मठ, थिरुववदुथुराई अधीनम से सेंगोल के बारे में बात की थी. अधीनम मठ से जुड़े संस्थान हैं जो भगवान शिव की शिक्षाओं और परंपराओं का पालन आज भी करते आ रहे हैं. उनकी विशेषज्ञता और न्याय और धार्मिकता के सिद्धांतों को मानने का वादा स्वीकार करने के बाद, राजाजी ने सेंगोल तैयार करने में उनकी मदद ली थी.

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जिसके बाद  तिरुवदुथुराई अधीनम के शीर्ष पुजारी ने एक सेंगोल को बनाया, जिसकी लंबाई लगभग पांच फीट थी. इसके शीर्ष पर स्थित नंदी को स्थापित किया गया था, जो न्याय और निष्पक्षता का प्रतीक है. सेंगोल को तैयार करने का काम चेन्नई के जाने-माने जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को सौंपा गया था, जिनको इस क्षेत्र में महारत हासिल थी.

चोल वंश से है नाता

सेंगोल का चोल वंश से गहरा नाता है. चोल काल के दौरान, राजाओं के राज्याभिषेक समारोहों में सेंगोल का बहुत महत्व था. यह एक भाले या ध्वजदंड के रूप में कार्य करता था, जिसमें बेहतरीन नक्काशी होती थी. उस समय सेंगोल को अधिकार का प्रतीक माना जाता था, जो एक शासक से दूसरे शासक को सत्ता सौपते वक्त देता था.

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