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Rajasthan Election: विरोधियों को चित कर वसुंधरा राजे कैसे फिर बनीं राजस्थान की नेता नंबर-1! समझें पूरी कहानी

5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर चर्चा तेज है. लेकिन राजस्थान के सियासी समीकरणों पर सबसे ज्यादा बहस हो रही है. ज्यादातर एग्जिट पोल के नतीजे बीजेपी के पक्ष में दिख रहे हैं.

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Rajasthan Election: विरोधियों को चित कर वसुंधरा राजे कैसे फिर बनीं राजस्थान की नेता नंबर-1! समझें पूरी कहानी

नई दिल्लीः 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर चर्चा तेज है. लेकिन राजस्थान के सियासी समीकरणों पर सबसे ज्यादा बहस हो रही है. ज्यादातर एग्जिट पोल के नतीजे बीजेपी के पक्ष में दिख रहे हैं. लेकिन इस राज्य में बीजेपी के इस प्रदर्शन की समीक्षा करें तो कई कहानियां नजर आएंगी. दरअसल, इस बार राजस्थान के चुनावी रंगमंच में कई ऑडिशन हुए हैं, लेकिन अभिनय का लीड रोल किसी को नहीं दिया गया. 

कई नेताओं ने देखा लीड रोल का सपना
राजस्थान में कई दिनों से ये कयास लगाए जा रहे थे कि वसुंधरा राजे को साइडलाइन किया जाएगा. इसका असर भी देखने को मिला और चुनाव में करीब एक दर्जन से ज्यादा बीजेपी नेताओं को फ्री हैंड कर 'भावी मुख्यमंत्री' के सपने दिखाए गए. लेकिन जब चुनावी बिगुल बजा तो वसुंधरा के दांव ने सभी को चित कर दिया. रिपोर्ट्स की मानें तो राजेंद्रृ राठौड़ और सतीश पूनिया जैसे नेता अपने विधानसभा क्षेत्र से बाहर ही नहीं निकल पाए. वहीं, दीया कुमारी, राज्यवर्धन राठौड़ और बालकनाथ भी पूरे राज्य में उस गर्मजोशी के साथ प्रचार नहीं कर सके.

राजे ने किया धुंआधार प्रचार
विधानसभा के चुनाव में वसुंधरा राजे ने किसी भी नेता के मुकाबले तीन गुना ज्यादा सभाएं कीं. राजे ने राजस्थान में सभी असंतुष्ट समूहों को भी साधा और लोकप्रियता का जलवा भी दिखाया, जिसके चलते राज्य में बीजेपी की लहर देखने को मिली. 

राजे के बिना बीजेपी के प्रयोग रहे फेल
राजस्थान में वसुंधरा राजे क्यों बीजेपी के लिए अहम हैं इसके कई कारण हैं. लेकिन आंकड़ों पर नजर डालें तो चीजें और स्पष्ट हो जाती हैं. दरअसल, बीजेपी ने बिना वसुंधरा राजे कुछ प्रयोग भी किए, लेकिन 9 विधानसभा उपचुनावों में से 8 भाजपा हार गई. चुनावी माहौल बनाने के लिए तीन बड़े अभियान चलाए गए- जनआक्रोश यात्रा, नहीं सहेगा राजस्थान और परिवर्तन यात्रा. इसमें कई बड़े नेताओं ने शिरकत की लेकिन सभी प्रयोग फ्लॉप ही साबित हुए. अंदरखाने कार्यकर्ताओं में भी बिन राजे निराशा ही देखी गई थी. नतीजतन पांच साल वसुंधरा राजे को दरकिनार करने में लगी भाजपा को चुनाव के समय उनसे सामंजस्य बैठाना ही पड़ा.

अब भी कई नेता सीएम बनने की फिराक में
एग्जिट पोल में बीजेपी की सरकार बनता देख अब भी कई नेता ऐसे हैं जो गुटबाजी का फायदा उठाकर सीएम बनने की जुगत में हैं. लेकिन कई नेताओं का ये भी मानना है कि वसुंधरा राजे को ही राजस्थान की जनता मुख्यमंत्री के रूप में देख रही है. वहीं, लोकसभा चुनाव को देखते हुए शीर्ष कमान को वसुंधरा राजे को ही सीएम बनाना चाहिए. 3 दिसंबर को चुनावी नतीजों के बाद स्थिति और अधिक स्पष्ट होगी. 

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