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Aditya L1 को सूर्य तक ले जा रहा ये रॉकेट, 'चंद्रयान-1' से भी है इसका खास नाता

Aditya L1: पीएसएलवी-एक्सएल का सबसे पहले साल 2008 में इस्तेमाल हुआ था. इसके बाद से ही भारत के वैज्ञानिकों ने इसे स्पेशल मिशंस के लिए उपयोग किया. इसमें इंजन की मजबूती के लिए छह बूस्टर मोटर्स लगाए गए हैं. 

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Aditya L1 को सूर्य तक ले जा रहा ये रॉकेट, 'चंद्रयान-1' से भी है इसका खास नाता

नई दिल्ली: चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत के वैज्ञानिकों का 'मिशन सन' शुरू हो गया है. आदित्य एल1 (Aditya L1) को सूर्य की ओर रवाना कर दिया गया है. इसे पीएसएलवी-एक्सएल (PSLV-XL) रॉकेट अंतरिक्ष में छोड़ेगा. यह पीएसएलवी की 59वीं, जबकि एक्सएल वैरिएंट की 25वीं उड़ान है. इस फौलादी रॉकेट में बहुत सी खास चीजें हैं, आइए जानते हैं कि आखिर 15 सालों से ये वैज्ञानिकों की पसंद क्यों बना हुआ है.

रॉकेट की खास बातें 
पीएसएलवी-एक्सएल भारत के सबसे मजबूत रॉकेट में से एक है. देश के वैज्ञानिकों ने स्पेशल मिशंस के लिए इसका कई बार इस्तेमाल किया है. 
- इस रॉकेट की उंचाई 145.62 फीट है
- लॉन्चिंग के दौरान उसका वजन 321 टन रहता है 
- इंजन की मजबूती के लिए छह बूस्टर मोटर्स
- इसमें लंबे स्ट्रैप-ऑन मोटर्स लगे हैं, ताकि ज्यादा फ्यूल ले जा सके

मून मिशन से भी है इसका नाता
इस रॉकेट का सबसे पहला इस्तेमाल 22 अक्टूबर 2008 को हुआ था. इस दिन भारत ने अपना पहला अंतरग्रहीय मिशन लॉन्च किया था, जिसे 'मून मिशन-1' या 'चंद्रयान1' भी कहा जाता है. इसके अलावा साल 2013 में भी इसी रॉकेट का उपयोग भारत के पहले मंगल मिशन के लिए किया गया था, जिसे मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) कहा जाता है। इसरो के पास पांच तरह के पीएसएलवी रॉकेट हैं. इनेमं स्टैंडर्ड, कोर अलोन, एक्सएल, डीएल और क्यूएल शामिल हैं. 

लॉन्च के 63 मिनट बाद हो जाएगा अलग
यह रॉकेट आदित्य एल1 को धरती की निचली ऑर्बिट में छोड़ेगा. इसकी पेरिजी 235 किमी और एपोजी 19,500 किमी होगी. यहां पेरीजी का मतलब धरती से नजदीकी दूरी और एपोजी का मतलब अधिकतम दूरी से है. लॉन्च के करीब 63 मिनट बाद आदित्य एल1 स्पेसक्राफ्ट रॉकेट अलग हो जाएगा.

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