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Ramchaura Banana: जानें रमचौरा केले की खासियत, कैसे नष्ट हुई केले की यह प्रजाति, योगी सरकार जीआई टैगिंग से करेगी पुनर्जीवित

Ramchaura Banana: गोरखपुर में रमचौरा गांव स्थित है.यह सोनौली मार्ग पर कैंपियरगंज से पहले पड़ता है. यह गांव कभी अपने कच्चे केले के लिए मशहूर था. पर एक फंगस ने सब कुछ खत्म कर दिया. 

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Ramchaura Banana: जानें रमचौरा केले की खासियत, कैसे नष्ट हुई केले की यह प्रजाति, योगी सरकार जीआई टैगिंग से करेगी पुनर्जीवित

गोरखपुर: योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में मशहूर केले की एक प्रजाति को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू कर दिया है. यह प्रजाति है रमचौरा केला. दरअसल, गोरखपुर से लगभग 35 किलोमीटर उत्तर की ओर सोनौली मार्ग पर कैंपियरगंज से पहले रमचौरा गांव स्थित है. यहां का कच्चा केला दूर-दूर तक मशहूर था. 

फिर आई तबाही
पर एक वक्त के बाद केले की ये प्रजाति मिट्टी के एक फंगस की चपेट में आ गई . न सिर्फ केले का उत्पादन सिमटकर 25 फीसदी तक आ गया बल्कि इस प्रजाति के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा.

योगी सरकार ने बनाया प्लान
अब एक बार गोरखपुर के रमचौरा केले की प्रजाति को नई संजीवनी मिलने वाली है. सीएम योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू कर दिया है. इसको जीआई टैग दिलाया जाएगा. वहीं मिट्टी के फंगस को दूर करने की कोशिशें तेज कर दी है.

बहुत थी संभावना
करीब 30 साल पहले पीसी चौधरी गोरखपुर में नाबार्ड के प्रबंधक हुआ करते थे. पीसी चौधरी कहते थे कि मेरी दिली इच्छा है कि कोई उद्योगपति केले के प्रसंस्करण का एक प्लांट लगाए. इस क्षेत्र में इसकी बहुत संभावना है. 

काफी थी इस केले की डिमांड
गोरखपुर और महराजगंज में रमचौरा का केला ही हुआ करता था. सब्जी के लिए इस कच्चे केले की खासी मांग थी. यह केला नेपाल और बिहार तक जाता था. वाराणसी के आढ़ती फसल देखकर ही खेत का ही सौदा कर देते थे. खेत से ही माल उठ जाता था.

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के सब्जी वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह के अनुसार एकल खेती से यहां की मिट्टी में बिल्ट नामक फंगस आ गया. पूर्वांचल की आबादी और जोत छोटे हैं. इसलिए दूसरे खेत में खेती का विकल्प नहीं था. धीरे-धीरे इसका रकबा घटता गया.

केले की पकौड़ी
रमचौरा से ही लगे एक जगह थी मीनागंज. वहां इसी रमचौर केले की पकौड़ी मिलती थी. साथ में खास चटनी भी. यह चटनी कुनरू (परवल जैसी दिखने वाली सब्जी), पंचफोरन, लहसुन, हरी मिर्च और सेंधा नमक को कूटकर बनाई जाती थी. स्थानीय निवासी 62 वर्षीय अनिरुद्ध लाल बताते हैं कि यहां केले की खेती का रकबा सिमटकर 25 फीसद पर आ गया. 

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