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हिंदू पुरुष के साथ रह रही मुस्लिम महिला को झटका, शरीयत का हवाला देते हुए कोर्ट ने सुरक्षा देने से किया इनकार

हिंदू पुरुष के साथ लिव इन में रह रही एक शादीशुदा मुस्लिम महिला को इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने महिला को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि कानूनी रूप से किसी विवाहित मुस्लिम महिला शादीशुदा जिंदगी से बाहर नहीं जा सकती और शरीयत के मुताबिक, अन्य व्यक्ति के साथ उसका लिव इन रिलेशनशिप में रहना और जिना हराम माना जाएगा. 

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हिंदू पुरुष के साथ रह रही मुस्लिम महिला को झटका, शरीयत का हवाला देते हुए कोर्ट ने सुरक्षा देने से किया इनकार

नई दिल्लीः हिंदू पुरुष के साथ लिव इन में रह रही एक शादीशुदा मुस्लिम महिला को इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने महिला को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि कानूनी रूप से किसी विवाहित मुस्लिम महिला शादीशुदा जिंदगी से बाहर नहीं जा सकती और शरीयत के मुताबिक, अन्य व्यक्ति के साथ उसका लिव इन रिलेशनशिप में रहना और जिना हराम माना जाएगा. 

मुस्लिम महिला ने की थी सुरक्षा की मांग
दरअसल, महिला ने अपने पिता और रिश्तेदारों से अपने और पुरुष साथी को जान का खतरा बताते हुए सुरक्षा की मांग की थी, जिसे खारिज करते हुए न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल की पीठ ने कहा कि महिला के आपराधिक कृत्य का इस अदालत द्वारा समर्थन नहीं किया जा सकता. 

शादीशुदा जिंदगी से बाहर नहीं जा सकती विवाहित महिला
अदालत ने कहा, प्रथम याचिकाकर्ता मुस्लिम कानून (शरीयत) के प्रावधानों के विपरीत दूसरे याचिकाकर्ता के साथ रह रही है. मुस्लिम कानून में विवाहित महिला शादीशुदा जिंदगी से बाहर नहीं जा सकती. इसलिए मुस्लिम महिला के इस कृत्य को जिना और हराम के तौर पर परिभाषित किया जाता है.

मोहसिन ने दो साल पहले कर ली शादी
अदालत ने कहा, याचिकाकर्ता महिला ने अपने पति से तलाक के संबंध में उचित अधिकारी से कोई डिक्री (व्यवस्था) नहीं ली है.” मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो याचिकाकर्ता का विवाह मोहसिन नाम के शख्स से हुआ था. उसने दो साल पहले दूसरी शादी कर ली और वह अपनी दूसरी पत्नी के साथ रह रहा है. 

हिंदू पुरुष के साथ रहने लगी महिला
इसके बाद पहली पत्नी (याचिकाकर्ता) अपने मायके चली गई, लेकिन पति द्वारा गाली गलौज करने की वजह से वह एक हिंदू व्यक्ति के साथ रहने लगी. अदालत ने 23 फरवरी के अपने निर्णय में कहा कि चूंकि मुस्लिम महिला ने धर्म परिवर्तन के लिए संबंधित अधिकारी के पास कोई आवेदन नहीं किया है और साथ ही उसने अपने पति से तलाक नहीं लिया है, वह किसी तरह की सुरक्षा की पात्र नहीं है. 

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