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भारत में खुश दिख रहे हैं नामीबिया से आए चीते, 50 मीटर दूर से रखी जा रही निगाह

नामीबिया से भारत आने के दो दिन बाद अब आठों चीते बेहतर दिख रहे हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक अब मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीतों ने माहौल के हिसाब से खुद को ढालना शुरू कर दिया है.

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भारत में खुश दिख रहे हैं नामीबिया से आए चीते, 50 मीटर दूर से रखी जा रही निगाह

नई दिल्ली. नामीबिया से भारत आने के दो दिन बाद अब आठों चीते बेहतर दिख रहे हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक अब मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीतों ने माहौल के हिसाब से खुद को ढालना शुरू कर दिया है. एनिमल एक्सपर्ट्स ने इन चीतों पर लगातार नजर बनाई हुई है. 

वन्य अधिकारियों के मुताबिक- जिन जगहों पर चीतों को रखा गया है वहां पर कम से कम मानवीय उपस्थिति की कोशिश की जा रही है. एक्सपर्ट्स भी चीतों पर कम से कम 50 से 100 मीटर दूरी से नजर रख रहे हैं. कोशिश की जा रही है कि चीतों को अपने आस-पास लोगों की उपस्थिति का बिल्कुल अंदाजा न हो और वो खुद को पूरी तरह सहज रख सकें. 

कैसा है चीतों का स्वास्थ्य?
आठों चीतों का स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक है. नामीबिया से लाए गए 8 चीतों में 3 नर और 5 मादा हैं. इन सभी की उम्र 30 से 66 महीने के बीच में है. इन चीतों के बाड़े में छोड़ा गया है. छह बाड़ों में बंद इन चीतों को क्वारंटाइन में रखा गया है.

पहले भी मंगाए गए हैं बाहर से चीते
20वीं शताब्दी में भारतीय चीतों की आबादी में तेजी से गिरावट आई. साल 1918 से 1945 के बीच 200 चीते आयात भी किए गए. कहा जाता है कि 1947 में कोरिया के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने देश के आखिरी तीन चीतों का शिकार कर उन्हें मार दिया. 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से चीतों को भारत में विलुप्त घोषित कर दिया.

अब सिर्फ ईरान में बचे हैं एशियाई चीते
19वीं शताब्दी के पहले भारत में मौजूद चीतों को 'एशियाई चीते' की श्रेणी में रखा जाता है. इस वक्त ये चीते सिर्फ पश्चिम एशियाई देश ईरान में बचे हुए हैं. भारत में कुछ अधिकारियों द्वारा ईरान से एशियाई चीतों को लाने के असफल प्रयास किए जा चुके हैं. 

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