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Pitra Paksha 2022: श्राद्ध कर्म में इन नियमों का पालन करना है जरूरी, अन्यथा नाराज हो जाते हैं पूर्वज

पितृपक्ष पूरे 15 दिनों तक चलता है. इसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं. इस पक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने वाले जातकों को निमित नियमों का पालन करना जरूरी है. अगर आप नियमों की अवहेलना करते हैं तो आपके मृत पूर्वज आपसे नाराज हो सकते हैं.    

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Pitra Paksha 2022:  श्राद्ध कर्म में इन नियमों का पालन करना है जरूरी, अन्यथा नाराज हो जाते हैं पूर्वज

नई दिल्ली: पितृपक्ष पूरे 15 दिनों तक चलता है. इसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं. इस पक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने वाले जातकों को निमित नियमों का पालन करना जरूरी है. अगर आप नियमों की अवहेलना करते हैं तो आपके मृत पूर्वज आपसे नाराज हो सकते हैं. वहीं आपके द्वारा किये गये सारे कर्मकांड व्यर्थ भी हो सकते हैं. इसलिए श्राद्ध पक्ष में नियमों का पालन करना जरूरी है.

पितरों के कार्य में बहुत सावधानी रखनी चाहिए, अतः श्राद्ध में इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:

श्राद्ध पक्ष के दौरान पूरे 15 दिनों तक घर में सात्विक माहौल होना चाहिए. इस दौरान घर में मांसाहारी भोजन नहीं बनाना चाहिए. हो सके तो इन दिनों लहसुन और प्याज का सेवन भी नहीं करना चाहिए.

पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को पूरे 15 दिनों तक बाल और नाखून नहीं कटवाने चाहिए. साथ ही इन लोगों को ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिए.

माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पूर्वज पक्षी के रूप में धरती पर आते हैं. इसलिए उन्हें सताना नहीं चाहिए. ऐसा करने से पूर्वज नाराज हो जाते हैं बल्कि पितृपक्ष में पशु-पक्षियों की सेवा करनी चाहिए .

पितृपक्ष में किसी भी तरह का मांगलिक कार्य नहीं करनी चाहिए. शादी,मुंडन, सगाई और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य पितृपक्ष में वर्जित माने जाते हैं. पितृपक्ष के दौरान शोकाकुल का माहौल होता है इसलिए इन दिनों कोई भी शुभ कार्य करना अशुभ माना जाता है.

वर्ष में दो बार श्राद्ध अवश्य करना चाहिए. जिस तिथि पर व्यक्ति की मृत्यु होती है, उस तिथि पर वार्षिक श्राद्ध करना चाहिए. पितृपक्ष में मृत व्यक्ति की जो तिथि आए, उस तिथि पर मुख्य रूप से पार्वण श्राद्ध करने का विधान है.

प्रातः 8 से 11 का समय श्राद्ध हेतु उत्तम है असमय में दिया गया अन्न पितरों तक नहीं पहुंचता है. सायंकाल में दिया हुआ कव्य राक्षस का भाग हो जाता है. 

पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए. पुत्र न हो तो पत्नी कर सकती है.

श्राद्धकर्ता को क्रोध, कलह व जल्दबाजी नही करनी चाहिए.

श्राद्धकर्म करने वाले को पितृपक्ष में पूरे पन्द्रह दिन क्षौरकार्य (दाढ़ी-मूंछ बनाना, नाखून काटना) नहीं करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.

श्राद्ध में सात्विक अन्न-फलों का प्रयोग करने से पितरों को सबसे अधिक तृप्ति मिलती है. काला उड़द, तिल, जौ, सांवा चावल, गेहूँ, दूध, दूध के बने सभी पदार्थ, मधु, चीनी, कपूर, बेल, आंवला, अंगूर, कटहल, अनार, अखरोट, कसेरु, नारियल, तेन्द, खजूर, नारंगी, बेर, सुपारी, अदरक, जामुन, परवल, गुड़, मखाना, नीबू आदि अच्छे माने जाते हैं.

कोदो, चना, मसूर, कुलथी, सत्तू, काला जीरा, टेंटी, कचनार, कैथ, खीरा, लौकी, पेठा, सरसों, काला नमक व कोई भी बासी, गला-सड़ा, कच्चा व अपवित्र फल और अन्न श्राद्ध में प्रयोग नहीं करना चाहिए.

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