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Russia Ukraine War: तो नहीं होता रूस-यूक्रेन युद्ध, अहंकार और दबाव की वजह से पुतिन NATO क्लब से हो गए दूर

Putin Relation With NATO: क्या रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन नेटो देशों का हिस्सा बनना चाहते थे. अगर ब्रिटेन के पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज रॉबर्टसन की बातों पर यकीन करें तो ऐसा संभव था लेकिन नेटो क्लब के कुछ नियम और शर्तें पुतिन को रास नहीं आई थी.

Russia Ukraine War:  तो नहीं होता रूस-यूक्रेन युद्ध, अहंकार और दबाव की वजह से पुतिन NATO क्लब से हो गए दूर
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Zee News Desk|Updated: Aug 01, 2023, 11:53 AM IST

रूस ने जब यूक्रेन के खिलाफ जंग का ऐलान किया तो जानकार यह मान कर चल रहे थे कि पुतिन की सेना के सामने जेलेंस्की कहां टिकने वाले हैं लेकिन अभी जंग बेनतीजा है. यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की एक तरफ सीना तान कर पुतिन के सामने खड़े हैं तो दूसरी तरफ दुनिया के देशों से गुहार लगाते हैं, ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर जेलेंस्की को ताकत कहां से मिल रही है. इस सवाल का जवाब नेटो देशों का समर्थन है. नेटो देशो यूक्रेन की जमीन से रूस के खिलाफ वैसे तो जंग नहीं लड़ रहे लेकिन सैन्य और आर्थिक मदद मुहैया करा रहे हैं. इन सबके बीच जर्मनी नेवी के चीफ ने एक बड़ा बयान दिया था जिसका पूरजोर समर्थन पुतिन ने किया और कहा कि कम से कुछ ऐसे लोग तो हैं जो सच-झूठ के फर्क को समझ रहे हैं. यहां हम बताएंगे कि आखिर नेटो से पुतिन की चिढ़ क्यों है. क्या यूक्रेन को मदद देने मात्र से वो नेटो देशों से नाराज हैं या वाकई वजह कुछ और है. 

भारत में जर्मन नेवी के चीफ ने कहा था कि रूस क्या चाहता है, क्या वाकई यूक्रेन को रूस अपने में मिलाना चाहते हैं, ऐसा लग रहा है कि वो दबाव बना रहे हैं इसके जरिए वो यूरोपीय यूनियन में दरार डाल सकते हैं लेकिन उससे बड़ी वजह सम्मान की है. वो सम्मान चाहते हैं. नेटो देशों के सामने चीन बड़ी चुनौती है, चीन से निपटने के लिए रूस की जरूरत है. हमें उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है. अगर क्रीमिया की बात करें तो रूस उसे कभी वापस नहीं करने जा रहा. हालांकि इस बयान के बाद जर्मनी के नेवी चीफ को कुर्सी छोड़नी पड़ गई. पूर्व नेवी चीफ को रूस ने अपने लिए अवसर देखा और कहा कि ऐसा लगता है कि नेटो में कुछ लोग ऐसे हैं जो सही बात ना सिर्फ समझते बल्कि करते भी हैं.

आवेदन शब्द से पुतिन को था परहेज

अमेरिका और यूरोपीय यूनियन का स्पष्ट तौर पर मानना है कि रूस ने क्रीमिया प्रायद्वीप पर जबरदस्ती कब्जा किया था और वो लगातार वापसी की बात करते हैं. लेकिन कुछ जानकार कहते हैं कि जर्मनी के पूर्व नेवी चीफ का बयान तार्किक और दमदार है. अब बात करेंगे कि नेटो कब बना था. 1949 में  नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन के तहत कुल 12 देश एक झंडे के नीचे आए. उस समय भी इस संगठन का मकसद सोवियत संघ से सुरक्षा हासिल करना था. नेटो देशों से साफ कर दिया था कि अगर किसी एक भी सदस्य देश और अमेरिका पर हमला होता है तो उसका अर्थ स्पष्ट है कि सबके ऊपर हमला है. वैसी सूरत में हर एक सदस्य देश दूसरे की मदद करेगा लेकिन समय बदला, दुनिया बदली और सोवियत संघ टूट चुका था. ब्रिटेन के पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज रॉबर्टसन कहते हैं कि पुतिन भी नेटो का हिस्सा बनना चाहते थे लेकिन उन्हें नियम कानून के कुछ क्लॉज पर आपत्ति थी.

 बीच रास्ते आया जिद और अहंकार

रॉबर्टसन बताते हैं कि एक बार उन्होंने पुतिन से मुलाकात की थी और उन्होंने कहा था कि हमें नेटो क्लब में कब शामिल करने जा रहे हैं. उस सवाल के जवाब में कहा कि हम किसी को न्यौता नहीं भेजते जिसे शामिल होने उसे आवेदन करना चाहिए लेकिन पुतिन ने कहा कि वो उन देशों की तरह नहीं है जो आवेदन करें.क्या पुतिन की दिली इच्छा था कि वो नेटो में शामिल होते. इस सवाल का जवाब 2000 के एक साक्षात्कार में छिपी है.बीबीसी के साथ इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि रूस भी तो सांस्कृतिक तौर पर यूरोप का हिस्सा है. हम कैसे अलग हो सकते है. हम सब लोग नेटो को सभ्य दुनिया मानते हैं ऐसे में उनके लिए नेटो को दुश्मन के तौर पर देखना मुश्किल है लेकिन नेटो अपने गठन के दिनों से ही रूस को प्रतिद्वंदी मान बैठा.

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