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Pak-Afghan: पाकिस्तान और अफगानिस्तान कभी थे जिगरी दोस्त, अब एक-दूसरे की गर्दन काटने पर आमादा क्यों?

Pak-Afghan Relations: पाकिस्तान में तब से हिंसा में वृद्धि देखी गई है जब से पाकिस्तानी तालिबान या तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी),  ने नवंबर 2022 में इस्लामाबाद के साथ एकतरफा संघर्ष विराम समाप्त कर दिया

Pak-Afghan: पाकिस्तान और अफगानिस्तान कभी थे जिगरी दोस्त, अब एक-दूसरे की गर्दन काटने पर आमादा क्यों?
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Manish Kumar.1|Updated: Jul 10, 2024, 11:39 AM IST

Pakistan-Afghanistan Tension: पड़ोसी देश पाकिस्तान और अफगानिस्तानके बीच तनाव चरम पर है. पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इस हफ़्ते कहा कि उनका देश आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए एक नए सैन्य अभियान के तहत सीमा पार हमले जारी रखने की योजना बना रहा है. टाइम्स के मुताबिक यह टिप्पणी पाकिस्तान के नजरिए में आए एक बड़े बदलाव को दर्शाती है, जिन्होंने अब तक मार्च में सीमा पार किए गए ऐसे एक हमले की ही बात स्वीकार की थी.

आसिफ ने बीबीसी से कहा, 'हम उन्हें केक और पेस्ट्री नहीं खिलाएंगे. अगर हमला हुआ तो हम जवाबी हमला करेंगे.'

पाकिस्तान की सबसे बड़ी परेशानी बना टीटीपी
पाकिस्तान में तब से हिंसा में वृद्धि देखी गई है जब से पाकिस्तानी तालिबान या तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी),  ने नवंबर 2022 में इस्लामाबाद के साथ एकतरफा संघर्ष विराम समाप्त कर दिया. पिछले साल ही, 700 से अधिक हमलों में लगभग 1,000 लोग मारे गए. बता दें टीटीपी अफगान तालिबान का करीबी सहयोगी है.

पाकिस्तानी सरकार अफगान तालिबान पर टीटीपी को सुरक्षित पनाहगाह मुहैया कराने का आरोप लगाती रही है. हाल के वर्षों में, इस्लामाबाद ने टीटीपी को कंट्रोल करने के लिए कई कोशिशें की हैं, जिनमें बातचीत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा पर बाड़ लगाना और अफगान सरकार पर इस आतंकवादी समूह की मदद बंद करने का दबाव बनाना शामिल है.

इसमें पिछले अक्टूबर में 500,000 से अधिक अफ़गान शरणार्थियों को निष्कासित करना शामिल है. इस महीने की शुरुआत में 800,000 अन्य लोगों को निष्कासित करने का दूसरा चरण शुरू हुआ है.

पाकिस्तान ने खुद ही बुना है यह जाल
टाइम के मुताबिक एक्टपर्ट्स बताते हैं कि पाकिस्तान के पास अफगानिस्तान के साथ अपने दो सीमावर्ती क्षेत्रों में होने वाली हिंसा को रोकने के लिए बहुत कम शक्ति है.

जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर जोशुआ व्हाइट कहते हैं, 'पाकिस्तान खुद को एक ऐसी मुश्किल में पाता है जिसे उसने खुद ही बनाया है. इस्लामाबाद ने तालिबान नेतृत्व का अफगानिस्तानमें 20 साल के विद्रोह के दौरान समर्थन किया था. अब यही अफगान तालिबान इस्लामाबाद को निशाना बनाने वाले आतंकवादी समूहों को पनाह दे रहा है.'

पूर्व सहयोगियों के बीच तनाव का कारण क्या है?
हालांकि के पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संबंध में ज्यादा तनावपूर्ण रहे हैं,लेकिन दो मुद्दे - सीमा और सीमापार हिंसा - लंबे समय से विवाद की वजह बने हुए हैं.

विल्सन सेंटर में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के निदेशक माइकल कुगेलमैन कहते हैं, 'वर्तमान तालिबान शासन सहित किसी भी अफगान सरकार ने पाकिस्तान की आजादी के बाद से [आधिकारिक] सीमा को मान्यता नहीं दी है और दोनों पक्ष लंबे समय से एक दूसरे पर उन आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप लगाते रहे हैं जो दूसरे देश में हमले करते हैं.'

तालिबान का नजरिया डूरंड लाइन पर ज्यादा सख्त
औपनिवेशिक काल की डूरंड लाइन, जो 1,640 मील से अधिक लंबी है, आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान को अफगानिस्तानसे अलग करती है. अफगानिस्तानने कभी भी सीमा को मान्यता नहीं दी है, लेकिन तालिबान इस मुद्दे पर अधिक दृढ़ता से सामने आया है. तालिबान लड़ाकों और सीमा पर बाड़ लगाने वाले पाकिस्तानी सैनिकों के बीच कई झड़पें हुई हैं, जिसके कारण बॉर्डर क्रॉसिंग बंद हो गई हैं.

कुगेलमैन कहते हैं, 'सीमा पर तनाव इसलिए बढ़ गया है क्योंकि तालिबान अपनी स्थिति को लेकर विशेष रूप से आक्रामक रहा है.'

सीमा पश्तूनों के वर्चस्व वाले आदिवासी इलाकों से होकर गुजरती है, जो दोनों देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में सबसे बड़ा जातीय समूह है. पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने का काम पूरा करने की कसम खाई है, जिसके बारे में तालिबान का कहना है कि इससे परिवार अलग हो जाएंगे.

तालिबान अब पाकिस्तान पर निर्भर नहीं
अफगानिस्तानमें युद्ध अब खत्म हो चुका है, इसलिए तालिबान को शरणस्थलों और युद्ध के दौरान अन्य सहायता के लिए पाकिस्तान पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं है. इसके बजाय, वह अपने देश में ज़्यादा वैधता चाहता है, जहां बहुत से अफगान लंबे समय से पाकिस्तानी सरकार पर भरोसा नहीं करते हैं.

कुगेलमैन कहते हैं, 'पाकिस्तान पर हमला करके, तालिबान अफगान जनता से कुछ सद्भावना हासिल करने की उम्मीद करता है.'

क्या तनाव जल्द ही कम हो जाएगा?
तनाव के बावजूद, दोनों देश नियमित कूटनीति में लगे हुए हैं. हाल ही में दोहा में संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित वार्ता के दौरान, अफगानिस्तान में पाकिस्तान के विशेष दूत ने तालिबान से मुलाकात की, जबकि पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने कहा है कि उनका कार्यालय आने वाले महीनों में काबुल का दौरा करने की योजना बना रहा है. उन्होंने कहा, 'कोई गलती न करें, इस सरकार ने अफगानिस्तान को नजरअंदाज नहीं किया है.'

लेकिन कुगेलमैन कहते हैं कि सीमा पर तनाव 'बहुत विवादास्पद और जटिल है जिसे जल्द ही सुलझाया नहीं जा सकता.'

अगर पाकिस्तान के नए सैन्य अभियान के कारण विवादित सीमा पर लगातार और लगातार बल प्रयोग होता है तो तनाव और बढ़ सकता है.

चीन हो सकता है अहम कारक
बीबीसी से बात करने वाले पाकिस्तान सरकार के सूत्रों ने सुझाव दिया है कि देश का नया सैन्य अभियान सीधे तौर पर चीन के दबाव से उपजा है. कई चीनी नागरिक बेल्ट एंड रोड पहल के हिस्से के रूप में पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं.

मार्च में, देश के उत्तर-पश्चिम में पांच चीनी इंजीनियरों की मौत हो गई थी, जब एक आत्मघाती हमलावर ने, जिसके बारे में पाकिस्तान ने आरोप लगाया था कि वह एक अफगान नागरिक था, उनके काफिले में एक वाहन घुसा दिया था.

यह याद रखना जरूरी होगा प्रतिबंध प्रभावित अफगानिस्तानमें निवेश करने की चीन की क्षमता के कारण बीजिंग का तालिबान पर भी पर्याप्त प्रभाव है.

कुगेलमैन कहते हैं, 'अगर बीजिंग निवेश सहायता के उस प्रलोभन को हवा देता है, तो वह तालिबान को अफगानिस्तानमें घरेलू स्तर पर और पाकिस्तान में सीमा पार उग्रवाद पर लगाम लगाने के लिए राजी कर लेता है, तो इससे चीन और पाकिस्तान दोनों को मदद मिलेगी.

File photo courtesy- Reuters

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