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Radioactive Food: इस देश में भारतवंशी औरतों को रिसर्च के लिए मौत के मुंह में धकेला! मचा बवाल

Radioactive Bread: 1960 में लंदन में एक ब्रिटिश प्रयोग के तहत 21 भारतीय महिलाओं (Indian women) को रेडियोधर्मी रोटियां खाने को दी गई थीं. ये महिलाएं लंदन में नई-नई आई थीं वो अंग्रेजी बोलना भी नहीं जानती थीं. तभी एक ब्रिटिश वैज्ञानिक ने उन्हें एक खतरनाक प्रयोग में शामिल कर लिया. ये कहानी आपको हिला देगी.   

Radioactive Food: इस देश में भारतवंशी औरतों को रिसर्च के लिए मौत के मुंह में धकेला! मचा बवाल
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Shwetank Ratnamber|Updated: Aug 31, 2023, 07:26 AM IST

Indian womens given radioactive Rotis: अंग्रेजों ने भारतीयों को इंसान नहीं समझा. जलियांवाला बाग गोलीकांड हो या आजादी मांगने पर कालेपानी की सजा देना. हिंदुस्तानियों का खून चूसने के लिए ऐसे-ऐसे जुल्म हुए थे जिन्हें जानकर आज की पीढ़ी की रूह कांप उठेगी. आज आपको एक ऐसे ही मामले के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर आपका खून खौल जाएगा. ब्रिटेन ने 60 के दशक में भारतीय महिलाओं पर एक भयावाह प्रयोग किया था. इसके तहत करीब 21 महिलाओं को रेडियोएक्टिव रोटियां खिलाई गई थीं. इन भारतीय महिलाओं को उनके हालात का फायदा उठाते हुए कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट के प्रयोग का हिस्सा बना दिया गया था.

प्रयोग के नाम पर मौत के मुंह में धकेला 

एक रिपोर्ट के मुताबिक साइंटिस्ट भारतीय महिलाओं में आयरन की कमी पर रिसर्च कर रहे थे. ब्रिटेन के वैज्ञानिक ये समझना चाहते थे कि क्या रेडियोएक्टिव रोटियां देने से महिलाओं में आयरन की कमी दूर हो जाएगी या नहीं. लाचार और बेबस इन भारतीय महिलाओं पर जुल्म की इंतहा ये भी थी कि उनमें से कई प्रेग्नेंट थीं. वो कुपोषण का शिकार थीं. उनके शरीर में खून की कमी थी. प्रयोग के नाम पर उन्हें मौत के मुंह में धकेल दिया गया. उनके साथ आगे क्या हुआ? ये बात आज भी एक राज बनी हुई है.

ब्रिटिश संसद में गूंजी पंजाब और गुजरात की महिलाओं पर जुल्म की कहानी

1960 के दशक में लंदन में एक ब्रिटिश प्रयोग के तहत जिन भारतीय महिलाओं (Indian women) को निशाना बनाया गया. वो लंदन में नई-नई आई थीं. ये भारतीय प्रवासी महिलाएं पंजाब और गुजरात से ब्रिटेन (UK) लाई गई थीं. वो अनपढ़ थीं. अंग्रेजी बोलना नहीं जानती थीं. एक ब्रिटिश वैज्ञानिक ने उन्हें एक खतरनाक प्रयोग में शामिल कर लिया. वो नहीं जानती थीं कि उनके साथ क्या हो रहा है? उनका बाद में फॉलोअप भी नहीं हुआ कि वह जिंदा बचीं या नहीं. या क्या वे रेडियोधर्मी तत्वों के सीधे संपर्क में आने के बाद कैंसर या किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो गईं? या उनकी संतानें किसी बर्थ डिफेक्ट का शिकार तो नहीं हुईं? इन सवालों के जवाब आज भी सार्वजनिक नहीं किए गए हैं.

1969 में ब्रिटेन कथित तौर पर दक्षिण एशियाई आबादी की हेल्थ पर प्रयोग कर रहा था. इन महिलाओं के घर पर रेडियोधर्मी रोटियां भेजी गईं. लगातार कई दिनों तक उन्हें ये रोटियां खिलाई गईं. जो उनके इलाज का हिस्सा थीं.

प्रयोग के बाद महिलाओं को ऑक्सफोर्डशायर में एटॉमिक एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट ले जाया गया. यहां उनके शरीर में रेडिएशन के स्तर की जांच हुई, ताकि ये देखा जा सके कि उनका शरीर कितना आयरन पचा सका है. 

अब ब्रिटिश सांसद ताइवो ओवाटेमी ने संसद में इस मामले को उठाते हुए पीड़ितों के लिए इंसाफ की मांग की है. ओवाटेमी ने ये भी कहा कि उन महिलाओं को खोजकर ये देखा जाए कि उनके या उनके परिवार की सेहत कैसी है?

डॉक्यूमेंट्री पर मचा बवाल

प्रयोगकर्ताओं का कहना था कि रोटियों में आयरन-59 था. यह रेडियोएक्टिव आइसोटोप है, जिससे गामा और बीटा विकिरणें निकलती हैं. इसका सीधा एक्सपोजर शरीर में कैंसर की आशंका को बढ़ा सकता है. बीटा पार्टिकल से मानव त्वचा पर फौरन असर दिखता है. स्किन जलने लगती है. शरीर में फफोले पड़ जाते हैं. इस प्रयोग पर एक डॉक्यूमेंट्री बनीं तब ये सच्चाई दुनिया के सामने आई. 

जांच कमेटी ने छिपाए राज

हंगामे के बाद 1998 में एक इंक्वायरी कमेटी बैठी. कमेटी ने दावा किया कि स्टडी में शामिल महिलाओं से कुछ भी छिपाया नहीं गया था. उन्हें सबकुछ अच्छी तरह से समझाया गया था. हालांकि कमेटी ने यह भी माना कि शायद बहुत समझाने के बाद भी उन्हें समझ न आया हो कि उनके शरीर पर क्या प्रयोग हो रहा है? वहीं कमेटी के काम काज पर सवाल उठाते हुए ब्रिटिश सांसद ने कहा कि अगर सबकुछ पारदर्शी था तो महिलाओं की आगे जांच क्यों नहीं हुई. प्रयोग के नतीजे क्यों सार्वजनिक नहीं किए गए? यहां तक कि प्रयोग में शामिल किसी भी महिला का कुछ अतापता क्यों नहीं लगने दिया गया.

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