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मान नहीं रहा नेपाल, पहले नक्‍शा, अब नोट में भारत के हिस्‍सों को छापा, जानें दोनों देशों के बीच क्या है विवाद

India–Nepal border Dispute: भारत और नेपाल के बीच लगभग 372 वर्ग किलोमीटर को लेकर सीमा विवाद है. विवादित क्षेत्रों में भारत-नेपाल-चीन सीमा पर स्थित लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी शामिल है. नेपाल लंबे समय से यह दावा करता रहा है कि ये क्षेत्र ऐतिहासिक और स्पष्ट रूप से उसके हैं.

मान नहीं रहा नेपाल, पहले नक्‍शा, अब नोट में भारत के हिस्‍सों को छापा, जानें दोनों देशों के बीच क्या है विवाद
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Sudeep Kumar|Updated: May 10, 2024, 01:23 PM IST

Inida Nepal Border News: पड़ोसी देश नेपाल ने एक बार फिर भारत के तीन हिस्सों पर अपना दावा किया है. नेपाल की 'प्रचंड' सरकार ने हाल ही में नेपाल राष्ट्र बैंक को देश के नए नक्शे के साथ 100 रुपये के नोट छापने की मंजूरी दी है. इस नए नक्शे में नेपाल ने भारत के कुछ क्षेत्रों को भी अपने क्षेत्र के हिस्से के रूप में दिखाया है. 

नेपाल की कैबिनेट ने 100 रुपये के नोट पर जिस नक्शे के इस्तेमाल की मंजूरी दी है उस नक्शे में उत्तराखंड के पिथौरागढ जिले में भारत-नेपाल-चीन सीमा पर स्थित लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को नेपाल का हिस्सा बताया गया है. नेपाल के इस कदम पर भारत सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. 

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि नेपाल के साथ सीमा विवाद को सुलझाने के लिए हम एक स्थापित मंच से बातचीत कर रहे हैं. लेकिन इस तरह के एकतरफा फैसलों का वास्तविक स्थिति पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि नेपाल इस प्रक्रिया की गति और तात्कालिकता से खुश नहीं है.

इससे पहले साल 2020 में नेपाल ने अपना आधिकारिक नक्शा जारी किया था. इस नक्शा में भी नेपाल ने इन तीनों जगह को अपना बताया था. ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि नेपाल और भारत के बीच क्या सीमा विवाद है और नेपाल बार-बार क्यों भारत के कुछ हिस्सों को अपना बताता है.

दोनों देशों के बीच सीमा विवाद क्या है?

भारत और नेपाल के बीच लगभग 372 वर्ग किलोमीटर को लेकर सीमा विवाद है. विवादित क्षेत्रों में भारत-नेपाल-चीन सीमा पर स्थित लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी शामिल है. नेपाल लंबे समय से यह दावा करता रहा है कि ये क्षेत्र ऐतिहासिक और स्पष्ट रूप से उसके हैं.

भारत-नेपाल सीमा विवाद की वजह 

1814-16 तक चले एंग्लो-नेपाली युद्ध के बाद नेपाल और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच एक समझौता हुआ. इसे सुगौली की संधि भी कहा जाता है. इस संधि के कारण नेपाल को अपना एक बड़ा हिस्सा ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों खोना पड़ा. संधि के अनुच्छेद 5 के तहत कंपनी ने काली नदी के पूर्व की भूमि पर नेपाल के शासकों के अधिकार क्षेत्र को छीन लिया. 

रिपोर्ट के मुताबिक, 1819, 1821, 1827 और 1856 में भारत के ब्रिटिश सर्वेयर जनरल की ओर से जो नक्शा जारी किया गया उसमें काली नदी का उद्गम स्थल लिम्पियाधुरा दिखाया गया. वहीं, 1879 में जारी नक्शा में नदी का नाम बदलकर स्थानीय भाषा में कुंटी यांगती कर दिया गया. 1920-22 में जारी मानचित्र में भी काली नदी को कुंटी यांगती के नाम से ही दर्शाया गया. लेकिन नदी का उद्गम स्थल लिम्पियाधुरा से लगभग एक किलोमीटर नीचे एक मंदिर स्थल से दिखाया गया. हालांकि, 1947 में भारत छोड़ने से पहले अंग्रेजों ने जो नक्शा जारी किया उसमें काली नदी का उद्गम स्थल फिर से लिम्पियाधुरा ही दिखाया गया.

इस क्षेत्र के गांव गुंजी, नाभी, कुटी और कालापानी 1962 तक नेपाल सरकार के अधीन थे. 1962 तक लोग नेपाल सरकार को भूमि राजस्व का भुगतान करते थे. लेकिन उसी साल हुए भारत-चीन युद्ध के बाद स्थिति बदल गई.

नेपाल के पूर्व गृह मंत्री विश्वबंधु थापा का कहना है कि 1962 में चीन से युद्ध के दौरान भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने नेपाल के राजा महेंद्र से कालापानी का इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी थी. कालापानी भारत-चीन-नेपाल बॉर्डर पर एक ट्राइजंक्शन के रूप में था. इस जगह को इंडियन आर्मी ने एक बेस के रूप में इस्तेमाल किया.

वहीं, नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री भेख बहादुर थापा का कहना है कि बाद में भारतीय अधिकारियों ने द्विपक्षीय वार्ता में दावा किया कि राजा महेंद्र ने इस क्षेत्र को भारत को उपहार के रूप में दिया था. उसके बाद से ही दोनों देशों के बीच इस मुद्दे को हल नहीं किया जा सका है. 

सीमा विवाद सुलझाने के लिए हो चुकी है कई राउंड की बातचीत 

दोनों देशों के बीच हुए द्विपक्षीय वार्ता में शामिल रहे नेपाल के प्रतिनिधि का दावा है कि 1997-1998 के बीच भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री आईके गुजराल ने वादा किया था कि अगर नेपाल अपने दावे को लेकर सबूत पेश करता है तो वे इन क्षेत्रों को छोड़ देंगे.

इसके अलावा जुलाई 2020 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी नेपाल के प्रधानमंत्री जेपी कोइराला को कहा था कि भारत को नेपाली क्षेत्र के एक इंच में भी कोई दिलचस्पी नहीं है. 

साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल की यात्रा की. इस दौरान नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री सुशील प्रसाद कोइराला के साथ हुए बातचीत में सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक वर्किंग ग्रुप बनाने पर सहमति बनी. इसके बावजूद अभी तक दोनों देशों के बीच सीमा विवाद नहीं सुलझ पाया है. 

इसके बाद जून 2023 में नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने भारत का दौरा किया. इसके बाद प्रचंड ने दावा किया था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि सीमा विवाद मुद्दे को जल्द से जल्द सुलझा लिया जाएगा.

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