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India-China Map Dispute: नक्शे में दिखाकर क्या कोई देश दूसरे की जमीन पर कर सकता है कब्जा? समझें क्या है Map Controversy

India-China Conflict: दुनिया में कितने ही ऐसे देश हैं, जिनका अपने पड़ोसी के साथ सीमा विवाद चल रहा है. कुछ नियमित अंतराल पर नया मैप जारी करते हैं और पड़ोसी के इलाके को अपना बता देते हैं. जानें मैप कंट्रोवर्सी क्या है.

India-China Map Dispute: नक्शे में दिखाकर क्या कोई देश दूसरे की जमीन पर कर सकता है कब्जा? समझें क्या है Map Controversy
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Rachit Kumar|Updated: Aug 31, 2023, 08:48 PM IST

India-China War: चीन ने पिछले दिनों एक नक्शा जारी किया, जिसमें उसने आधिकारिक रूप से अरुणाचल प्रदेश, अक्साई चिन, ताइवान और विवादित दक्षिण चीन सागर को अपना हिस्सा बताया है. यह नक्शा चीन की नेचुरल रिसोर्स मिनिस्ट्री ने जारी किया है. चीन की विस्तारवादी नीतियों पर दुनिया के कई देश भड़के हुए हैं. 

लेकिन अब सवाल उठता है कि क्या नया नक्शा निकालकर और अन्य देशों के इलाकों को अपना बताकर कोई देश दूसरे की जमीन पर कब्जा कर सकता है?

दरअसल दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जिनके बरसों से बॉर्डर पर विवाद चल रहे हैं. जमीन के टुकड़े पर दोनों ही देश दावा करते हैं. कई बार तो इन विवादित इलाकों में रहने वाले लोग अपने लिए अलग देश की मांग कर डालते हैं और वह इसमें कामयाब भी हो जाते हैं. बात अगर गूगल अर्थ की करें तो उसमें भी विवादित इलाकों को डैश वाली ग्रे लाइन के साथ दर्शाया जाता है ताकि किसी भी देश को आपत्ति न हो.

जगहों के नाम कौन रखता है

  • यूएस बोर्ड ऑन जियोग्राफिक नेम्स पिछले 130 साल से अपने राज्यों और वहां के इलाकों के नाम रख रहा है. यही ऑर्गनाइजेशन देखती है कि सरकारी मैप पर कोई भी गलती न जाए और किसी प्रकार की भ्रांति न रहे. इनके लिए लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस, गवर्नमेंट पब्लिशिंग, सीआईए और अमेरिकी पोस्टल सर्विस के अफसर काम करते हैं. 

  • ऐसा नहीं है कि यह कमेटी खुद ही नाम रख देती है. यह वहां के लोगों से नाम लेकर तय करती है और फिर एक मानक नक्शा बनाती है.

  • भारत में भी कमोबेश हाल ऐसा ही है. नक्शे में हर चीज परफेक्ट हो, इसको देखने का काम करती है नेशनल एटलस ऑर्गनाइजेशन. ये संस्था भारत का नक्शा स्थानीय भाषाओं में बनाती है. 

  • इसी कारण से थीमेटिक मैप तैयार करना पड़ता है. जैसे अगर एनवायरनमेंट पर कोई अनुसंधान हुआ, जिसमें अलग तरह से राज्यों को हाईलाइट करना है तो उसका जिम्मा भी इसी संस्था पर होगा.

  • वहीं 1767 से सर्वे ऑफ इंडिया भी भारत की मैपिंग करने में जुटी है. यूं तो इसका काम मिलिट्री मैपिंग से जुड़ा रहा लेकिन जब देश स्वतंत्र हुआ तो इस पर काम का बोझ ज्यादा पड़ा. सर्वे ऑफ इंडिया ने 60 के दशक में भारत की एक एरियल तस्वीर निकाली थी.

  • आज से 15 साल पहले SOI ने हर तरह के नक्शे देखे ताकि किसी प्रकार का कोई भ्रम न रहे. अगर दो देशों के बीच सीमा विवाद है तो जो केंद्र से उसको आदेश मिलता है वह उसी का पालन करती है. इसके अलावा भारत के पास नेशनल मैप पॉलिसी भी है, जो हर चीज में पारदर्शिता रखती है.

नक्शे रिवाइज करने पर क्या होता है?

  • अगर कोई देश थोड़े वर्ष के अंतराल पर अपने मैप्स को रिवाइज करता है तो उसको मैपिंग साइकल के नाम से जाना जाता है.

  • इसी प्रक्रिया के कई देश जानबूझकर गड़बड़ियां करते हैं. हाल ही में ऐसा चीन ने किया. उसने भारत के कुछ हिस्सों को अपने इलाके का हिस्सा बताया.

  • मौजूदा दौर में ऐसी कोई संस्था नहीं है, जो मैपिंग साइकल में होने वाली गड़बड़ियों को रोक सके.

  • मामला अगर यूनाइटेड नेशन्स पहुंचता है तो वहां बातचीत हो सकती है लेकिन अंत में इस मसले को दोनों देशों को ही हल करना पड़ता है. 

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