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ऐमो कोइवुनेन: दूसरे विश्‍व युद्ध का पहला सिपाही जिसकी जान मेथ ओवरडोज ने बचाई, नशे में सैकड़ों मील भागता रहा

Aimo Koivunen Story In Hindi: दूसरे विश्‍व युद्ध में एक सैनिक ऐसा था जिसकी जिंदगी Pervitin टैबलेट्स यानी मेथमफेटामाइन के ओवरडोज ने बचाई थी. पढ़‍िए फिनलैंड के ऐमो कोइवुनेन की कहानी.

ऐमो कोइवुनेन: दूसरे विश्‍व युद्ध का पहला सिपाही जिसकी जान मेथ ओवरडोज ने बचाई, नशे में सैकड़ों मील भागता रहा
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Deepak Verma|Updated: Jun 15, 2024, 12:10 AM IST

Aimo Koivunen In World War 2: दूसरे विश्‍व युद्ध में फिनलैंड की भूमिका बार-बार बदलती रही. पहले उसने सोवियत यूनियन के आक्रमण को रोका. फिर जर्मनी के साथ मिलकर सोवियत यूनियन पर हमला बोल दिया. उसके बाद मित्र देशों के साथ मिलकर जर्मनी के खिलाफ लड़ा. लेकिन आज की कहानी फिनलैंड के बारे में नहीं, उसके एक सैनिक के बारे में है. वह सैनिक दूसरे विश्‍व युद्ध का इकलौता सिपाही रहा जो मेथमफेटामाइन के ओवरडोज के बावजूद जिंदा बच गया.

यह कहानी है ऐमो कोइवुनेन की. सोवियत सैनिकों ने घात लगाकर फिनलैंड की टुकड़ी पर हमला किया था. भागते समय, कोइवुनेन ने मेथमफेटामाइन की दो दर्जन से ज्यादा गोलियां गटक डालीं. भयानक नशे में कोइवुनेन ने सैकड़ों मील का सफर तय किया. वह भागता रहा... इतना भागा कि जान पर बन आई. ऐमो कोइवुनेन न सिर्फ सोवियत सैनिकों से बचने में कामयाब रहा, बल्कि युद्ध की विभीषिका से भी. जीवन में 70 से  ज्यादा वसंत देखने के बाद उसकी मौत हुई. पढ़‍िए ऐमो कोइवुनेन की कहानी.

जल्दबाजी में निगल गया नशे की दर्जनों गोलियां

मार्च , 1944 का वक्त था. फिनलैंड के सैनिकों को युद्ध लड़ते-लड़ते चार साल से ज्यादा हो चुके थे. लैपलैंड में भारी बर्फ जम चुकी थी. दुश्मन की सीमा के काफी पीछे, स्की से पैट्रोल कर रही फिनिश सैनिकों की एक टुकड़ी को सोवियत सैनिकों ने घेर लिया था. गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरा इलाका थर्रा उठा. घात लगाकर किए गए हमले ने संभलने का मौका नहीं दिया. फिनलैंड के सैनिक जान बचाने को भागे. उन स्कीयर्स की कमान ऐमो कोइवुनेन के हाथों में थी.

ऐमो कोइवुनेन गहरी बर्फ में जगह बनाते हुए सबसे आगे चल रहे थे. वह बर्फ काटते हुए रास्ता बनाते और बाकी सैनिक ग्लाइड करते हुए पीछे-पीछे आते. यह काम बड़ा थकाऊ था, जल्द ही कोइवुनेन की सांस उखड़ने लगी. अचानक उसे याद आया कि जेब में गोलियों का एक पैकेट पड़ा है. वह पैकेट था Pervitin नाम के स्टिमुलेंट का. ऐसी दवा जो गजब की ऊर्जा से भर देती थी. फिनलैंड के कमांडर्स को Pervitin टैबलेट्स की शीशियां दी गई थी.

Pervitin कुछ और नहीं, आज की क्रिस्टल मेथ का शुरुआती रूप थी. यह मेथमफेटामाइन पर आधारित दवा थी जो बिना प्रिस्क्रिप्शन के मिल जाती थी. Pervitin की गोली खाकर सैनिक कई दिन तक मोर्चे पर डटे रहते.

कोइवुनेन पहले तो हिचका लेकिन अपने सैनिकों की हालत देखकर उसने जेब में हाथ डाला और शीशी बाहर निकाली. किस्मत देखिए, कोइवुनेन के पास पूरी टुकड़ी के लिए Pervitin की गोलियां मौजूद थीं. बर्फ को चीरते हुए आगे बढ़ रहे कोइवुनेन ने बड़ी कोशिश की मगर एक गोली तक मुंह के भीतर नहीं जा पाई. आर्कटिक की भयानक ठंड से बचने के लिए उसने बहुत मोटी वर्दी पहन रखी थी.

एक जगह रुक कर शीशी से एक-दो गोली निकालकर खाने के बजाय, कोइवुनेन ने पूरी शीशी ही गटक डाली. उसमें विशुद्ध मेथमफेटामाइन की 30 गोलियां थीं. बस फिर क्या था! फौरन ही कोइवुनेन के शरीर में 'सुपरमैन' जैसी ताकत आ गई. उसकी स्कीइंग की रफ्तार बढ़ने लगी. पहले साथियों ने रफ्तार से रफ्तार मिलाने की कोशिश की, लेकिन फिर कोइवुनेन उनकी आंखों से ओझल हो गया. सोवियत सैनिक भी कहीं पिछड़ गए थे.

कोइवुनेन की नजर धुंधली होने लगी, वह बेहोश हो चुका था. इसके बावजूद उसने स्कीइंग जारी रखी. ब्लैकआउट के दौरान भी कोइवुनेन लगातार बर्फ को चीरते हुए आगे बढ़ता गया. अगले दिन जब उसे होश आया तो पता लगा कि वह 100 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर निकल आया. वह एकदम अकेला था.

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दुर्गम परिस्थितियों के बावजूद बच गई जान

ऐमो कोइवुनेन अब भी मेथमफेटामाइन के नशे में था. उसकी टुकड़ी पीछे छूट चुकी थी. उसके पास कोई हथियार नहीं था, खाने को भी कुछ नहीं बचा था. लेकिन कोइवुनेन ने स्की करना जारी रखा. जल्द ही उसे पता चला कि सोवियत सैनिकों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा है. बीच-बीच में कई बार उसका सामना सोवियत सैनिकों से हुआ. एक बार तो वह लैंडमाइन के ऊपर से स्की करता हुआ निकला. धमाके से आग लग गई. किसी तरह कोइवुनेन धमाके से भी बच गया और आग से भी, लेकिन वह जख्‍मी हो चुका था.

कोइवुनेन निढाल होकर वहीं लेट गया. बीच-बीच में वह बेहोश हो जाता, उठता तो मदद का इंतजार करता. जल्दी ही बर्फीले तापमान में उसकी जान चली जानी थी. मेथ के नशे में, कोइवुनेन ने फिर अपनी स्की उठाई और चल पड़ा. कई दिन यूं ही गुजर गए. धीरे-धीरे उसकी भूख लौटने लगी. मेथमफेटामाइन के नशे ने उसकी भूख मार दी थी, लेकिन बीच-बीच में भयानक दर्द उठता.

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लैपलैंड की सर्दियों में कोइवुनेन के पास ज्यादा विकल्प भी नहीं थे. एक दिन, उसने साइबेरियाई नीलकंठ को दबोचा और उसे जिंदा खा गया. किसी तरह बचते-बचाते आखिरकार कोइवुनेन फिनलैंड के इलाके में पहुंच गया. वहां उसके साथियों ने कोइवुनेन को अस्पताल तक पहुंचाया. तब तक कोइवुनेन 400 किलोमीटर से ज्यादा दूर आ चुका था. उसका वजन घटकर सिर्फ 94 पाउंड (करीब 42 किलो) रह गया था. कोइवुनेन के दिल की धड़कन एक मिनट में 200 बार धड़क रहा था.

ऐमो कोइवुनेन की तरह, दूसरे विश्‍व युद्ध में लाखों सैनिकों ने Pervitin का सेवन किया था. लेकिन ऐमो कोइवुनेन इकलौता सिपाही था जो दुश्‍मन के इलाके में भी मेथमफेटामाइन के ओवरडोज के बावजूद बच गया. दूसरा विश्‍व युद्ध खत्म होने के बाद, कोइवुनेन ने बड़ी सामान्य जिंदगी जी. 70 साल से ज्यादा की उम्र में उसकी मौत हुई.

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