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Science News: अब पृथ्वी के अलावा इस ग्रह पर भी बसेगा इंसान! वैज्ञानिकों ने दिया ये बड़ा संकेत

Water on Mars: यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency) ने एक नक्शा शेयर किया है, जिसे बनाने में लगभग एक दशक से भी ज्यादा का समय लग गया. इसमें दिलचस्प बात है कि ये नक्शा मंगल ग्रह पर पानी की स्थिति को दर्शाता है.  

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा जारी मंगल ग्रह का नक्शा
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Zee News Desk|Updated: Aug 24, 2022, 11:56 AM IST

Water Map of Mars: हम सभी जानते है कि मानव सभ्यता ने अपने बसने के लिए के उन स्थानों का चुनाव सबसे पहले किया जहां पर पानी का अच्छा स्रोत था. पानी के बिना जीवन की कल्पना कर पाना भी मुश्किल है. ऐसे में वैज्ञानिकों की रिसर्च एक नई दिशा में आगे बढ़ी और उन्होंने धरती के छोड़कर अन्य ग्रहों पर पानी की तलाश शुरू की. वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता तब हासिल हुई जब उन्हें मंगल ग्रह पर पानी मौजूद होने का सबूत मिला. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने करीब एक दशक से ज्यादा लंबी रिसर्च के बाद मंगल ग्रह का नक्शा जारी किया है, जो मंगल ग्रह पर पानी की स्थिति को दर्शाता है.

मंगल ग्रह पर है जीवन की संभावना

दुनियाभर के वैज्ञानिक जीवन की संभावना तलाशने के लिए लगातार रिसर्च कर रहे हैं. ऐसे में उनको किसी ग्रह पर जीवन की संभावना दिखती है तो वो लाल ग्रह यानी मंगल ग्रह है. ऐसा माना जा रहा है कि भविष्य में मानव बस्तियां मंगल ग्रह पर देखने को मिल सकती हैं. वैज्ञानिक मानते है कि मंगल ग्रह पर कभी बहने वाली नदियां और झीलें भी थी. इस क्रम में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए मंगल का पहला पानी का नक्शा दिखाया है. नक्शे में संभावित स्थानों को दिखाया गया है जहां मानव उतर सके.

मार्स एक्सप्रेस ऑब्जर्वेटरी और मार्स रिकोनिसेंस ऑर्बिटर रिसर्च में थे शामिल   

यूरोप के मार्स एक्सप्रेस ऑब्जर्वेटरी और अमेरिका के मार्स रिकोनिसेंस ऑर्बिटर के सहयोग से ये नक्शा जारी हुआ है. इंस्टीट्यूट डी एस्ट्रोफिजिक स्पैटियल (आईएएस) के जॉन कार्टर ने कहा कि रिसर्च में जो बात सामने आई है, उससे यही पता चलता है कि लाल ग्रह पर पानी किसी सीमित हिस्से में ही नहीं बल्कि ग्रह के बड़े हिस्से में फैला हुआ था. आपको बता दें कि भूवैज्ञानिकों ने ग्रह का सर्वे करने के लिए मार्स एक्सप्रेस पर ओमेगा उपकरण और मार्स रिकोनिसेंस ऑर्बिटर पर कॉम्पैक्ट रिकॅानिस्‌न्‍स इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर (CRISM) से मिले डेटा का इस्तेमाल किया है.

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