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Wooden Satellite: एल्यूमिनियम-टाइटेनियम अब बीते जमाने की बात, स्पेस में अब लकड़ी के सैटेलाइट, जानें यह कैसे मुमकिन है

क्या लकड़ी से बने सैटेलाइट को स्पेस में भेजा सकता है. आप का जवाब होगा नहीं, लेकिन ऐसा नहीं है. कई प्रयोगों के बाद जापान और नासा 2024 में वूडेन सैटेलाइट भेजने की योजना पर काम कर रहे हैं. इसके लिए लकड़ियों के नमूने को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर अलग अलग परिस्थितियों में टेस्ट किया गया.

Wooden Satellite: एल्यूमिनियम-टाइटेनियम अब बीते जमाने की बात, स्पेस में अब लकड़ी के सैटेलाइट, जानें यह कैसे मुमकिन है
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Lalit Rai|Updated: Nov 16, 2023, 09:36 AM IST

Wooden Satellite News: सैटेलाइट ने दुनिया की तस्वीर बदल दी है. लेकिन इसके साथ ही स्पेस जंक एक बड़ा मुद्दा है.अब इस दिशा में नासा और जापान एयरोस्पेस एक्स्प्लोरेशन एजेंसी यानी जाक्सा एक प्रयोग करने जा रहे हैं. अगर सब कुछ सही रहा तो अब लकड़ी के बने सैटेलाइट भेजे जाएंगे. पारंपरिक सैटेलाइट(एल्यूमिनियम-टाइटेनियम और केवलर का इस्तेमाल) की जगह वूडेन सैटेलाइट पर क्यों जोर दिया जा रहा है. उसके फायदे क्या हैं. यह जानना जरूरी है. नासा और जाक्सा के मुताबिक साल 2024 में वो लिग्नोसैट नाम के सैटेलाइट को लांच करेंगे. 

2024 में लिग्नोसैट लांच करने की योजना

लिग्नोसैट, मंगोलिया वूड का बना हुआ है. सैटेलाइट की दुनिया से जुड़े जानकार बताते हैं कि वैक्यूम में ये ना तो जलते या सड़ते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि जब ये धरती का वातावरण में दाखिल होते हैं उस समय ये जलकर राख में तब्दील हो जाएंगे. इस तरह से धरती स्पेस जंक से निजात मिल जाएगी. इसके बारे में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर वूड सैंपल की टेस्टिंग हुई थी और नतीजे उत्साह बढ़ाने वाले थे. वैज्ञानिक मान रहे हैं कि वूडेन सैटेलाइट को कामयाबी के साथ लांच किया जा सकता है.धातु से बने अंतरिक्ष यान महंगे होने के साथ साथ आईएसएस और धरती पर भी लोगों के लिए भी खतरा पैदा करते हैं. लिहाजा लकड़ी के सैटेलाइट इन खतरों को कम करने में सक्षम हैं.

लकड़ी के तीन सैंपल पर प्रयोग

लकड़ी के तीन नमूनों को स्पेस स्टेशन पर अलग अलग वातावरण में टेस्ट किया गया था. इन सैंपल्स को अत्यधिक तापमान और कॉस्मिक रे के एक्सपोजर में टेस्ट किया गया और उनमें किसी तरह की विकृति या खराबी नहीं हुई. खास बात ये सैंपल्स खराब नहीं हुए. सैटेलाइट बनाने के लिए कौन सी लकड़ी का इस्तेमाल होना चाहिए उसके लिए मंगोलिया, चेरी या बर्च को स्पेस स्टेशन पर भेजा गया था. तीनों सैंपल में मंगोलिया वूड को इस्तेमाल के लिए बेहतर पाया गया क्योंकि इनके टूटने का खतरा बेहद कम है. फिलहाल स्पेस में 9300 टन कचरा, धरती की कक्षा में घूम रहे हैं. यही नहीं सैटेलाइट में इस्तेमाल किए जाने वाले टाइटेनियम और एल्यूनियम की वजह से लाइट पॉल्यूशन बढ़ गया है. इसे देखते हुए लकड़ी को विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है.

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