trendingNow11430469
Hindi News >>विज्ञान
Advertisement

Lab grown Blood to Humans: दुनिया में पहली बार इंसानों को चढ़ा लैब में बना खून, नतीजों पर टिकी ये उम्मीद

Artificial Blood: लैब में खून बनाना आसान नहीं है. बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन जटिल और बेहद खर्चीला है. इसके प्रोडक्शन में वित्तीय और तकनीकी चुनौतियां दोनों हैं. हालांकि खर्च को लेकर ट्रायल और इस ब्लड को बनाने वाली टीम ने कोई अधिकारिक जानकारी नहीं दी है.

फाइल
Stop
Zee News Desk|Updated: Nov 08, 2022, 06:39 AM IST

Scientists created blood in Lab: रक्त या खून (Blood) वो अनमोल चीज है, जिसकी पर्याप्त उपलब्धता का इंतजाम अभी तक नहीं हो सका है. दुनिया के किसी भी देश की तरह भारत के मेडिकल सेक्टर में भी स्वस्थ लोगों के रक्त की लगातार जरूरत रहती है, ताकि जरूरतमंदों की जान बचाई जा सके. अब इस समस्या के समाधान की दिशा में एक उम्मीद जगी है. दरअसल ब्रिटेन (UK) में दुनिया में पहली बार लैब में विकसित किए गए खून (Lab-grown Blood) को लोगों को चढ़ाया गया है. ब्रिटेन (UK) में हुए एक क्लिनिकल परीक्षण के तहत प्रयोगशाला में विकसित किए गए रक्त को लोगों में चढ़ाया गया. 

इस ट्रायल से क्या हासिल होगा?

इस प्रयोग के बाद ब्रिटेन के शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने कहा, 'लैब में विकसित इस खून को बेहद कम मात्रा में इंसानों के शरीर में चढ़ाया गया है, ताकि ये पता लगाया जा सके कि यह शरीर के अंदर कैसा प्रदर्शन करता है.' इस क्लिनिकल ट्रायल के नतीजे उन लोगों की जिंदगी का कुछ समय बढ़ा सकते हैं जो थैलीसीमिया और एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी जैसी बीमारी से जीतने के लिए पूरी तरह से नियमित रूप से रक्तदान करने वालों पर निर्भर हैं.

'बीबीसी' में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक इस रिसर्च का आखिरी लक्ष्य प्रयोग में लाए जा सकने वाले उस विरले ब्लड-ग्रुप वाले खून को विकसित करना है जो अक्सर मिलना मुश्किल होता है. यह उन लोगों के लिए बेहद आवश्यक है जो सिकल सेल एनीमिया जैसी स्थितियों के लिए नियमित तौर पर खून चढ़ाए जाने पर निर्भर हैं. क्योंकि अगर खून के नमूने का सही मिलान नहीं होता है तो पीड़ित व्यक्ति का शरीर उस खून को अस्वीकार करना शुरू कर देता है और इलाज कामयाब नहीं हो पाता है. टिस्यू मैचिंग का यह स्तर प्रसिद्ध A, B, AB और O रक्त समूहों से अलग है.


(Red Blood Cell photo: NHSBT)

ट्रायल से जुड़े दिग्गज

क्लीनिकल ट्रॉयल से जुड़े ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एशले टोए ने कहा कि कुछ रक्त समूह दुर्लभ हैं और ब्रिटेन में केवल 10 लोग ही इस तरह का ब्लड लगातार डोनेट करने में सक्षम हो सकते हैं.' रिपोर्ट के मुताबिक पहली बार भारत में पहचान की गई ‘बॉम्बे' रक्त समूह की इस समय केवल तीन यूनिट ब्लड मौजूद है. इस रिसर्च ट्रायल को ब्रिस्टल, कैम्ब्रिज, लंदन और एनएचएस ब्लड एंड ट्रांसप्लांट की टीमें मिलकर अंजाम दे रही हैं. यह लाल रक्त कोशिकाओं (red blood cells) पर केंद्रित है जो फेफड़ों से ऑक्सीजन (Oxygen) को शरीर के बाकी हिस्सों में ले जाती है.

'यूं आगे बढ़ेगा शोध'

इस पहले और शुरुआती परीक्षण में दो लोगों ने हिस्सा लिया है. आगे इन वैज्ञानिकों की तैयारी है कि कम से कम 10 स्वस्थ वॉलंटियर्स में इस खून का परीक्षण किया जाए. इन लोगों को पांच से दस एमएल (ml) खून चढ़ाया जाएगा. इस ट्रायल में शामिल लोगों को कम से कम चार महीने के अंतराल में दो बार खून चढ़ाया जाएगा. इनमें एक सामान्य रक्त होगा और दूसरा प्रयोगशाला में विकसित रक्त उन्हें चढ़ाया जाएगा. लैब में बनाए ब्लड को एक रेडियोधर्मी पदार्थ के साथ टैग किया गया है, जिसका इस्तेमाल चिकित्सा प्रक्रियाओं में किया जाता है. इसके नतीजों के अगले अध्यन में वैज्ञानिक यह पता लगा पाएंगे कि लैब में बना खून कितने समय तक शरीर में बना रहता है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि लैब में विकसित रक्त सामान्य खून से कहीं अधिक शक्तिशाली होगा. 

'लैब में खून बनाना मुश्किल और खर्चीला'

लैब में खून बनाना आसान नहीं है. बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करना मुश्किल यानी एक जटिल और बेहद खर्चीला काम है. जिसमें वित्तीय और तकनीकी चुनौतियां हैं. रिपोर्ट के मुताबिक लैब में इस खून को विकसित करने में बहुत अधिक खर्च आएगा, हालांकि वैज्ञानिकों की टीम ने इसको लेकर कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी है. एनएचएस ब्लड एंड ट्रांसप्लांट में ट्रांसफ्यूजन के मेडिकल डायरेक्टर डॉ फारुख शाह ने कहा, 'इस रिसर्च में लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए आधारभूत कार्य किया जा रहा है. लैब वाले खून को मानव शरीर ने स्वीकार कर लिया तो सिकल सेल जैसे विकारों वाले लोगों की जान बचाने में आसानी होगी.'

रक्तदान-महादान

कहते हैं कि रक्तदान महादान. आपको बताते चलें कि ब्रिटेन की तरह कई साल पहले जापान के वैज्ञानिकों ने भी लैब में खून बनाने का दावा किया था लेकिन उसका परीक्षण उन्होंने किया या नहीं किया, और अगर किया तो उसके नतीजे क्या रहे, जैसी जानकारी जनता से साझा नहीं की गई थी. हालांकि तब ये जरूर कहा गया था कि जापान के वैज्ञानिकों ने लैब में एक ऐसा रक्त बनाया है, जिसे किसी भी ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति को चढ़ाया जा सकता है. इस आर्टिफिशियल ब्लड में लाल रक्त कोशिकाएं हैं, जो अपने साथ ऑक्सीजन और प्लेटलेट्स ले जा सकती हैं. 

(ये खबर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर)

 

Read More
{}{}