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Japan Moon Mission: क्या भारत जैसा कमाल दिखा पाएगा जापान ? 'स्लिम' दूसरे मून मिशन से थोड़ा है अलग

Japan SLIM News:  जापान के लिए 18 जनवरी का दिन बेहद खास है. जाक्सा का स्लिम मिशन चांद की सतह पर उतरने के अंतिम चरण में है. स्लिम मिशन पहले के दूसरे अभियानों से इस वजह से अलग है क्योंकि इसे टारगेट से 100 मीटर के दायरे में उतारने की कोशिश होगी.

Japan Moon Mission: क्या भारत जैसा कमाल दिखा पाएगा जापान ? 'स्लिम' दूसरे मून मिशन से थोड़ा है अलग
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Lalit Rai|Updated: Jan 19, 2024, 12:58 PM IST

Japan Moon Mission News: अगर जापान का स्लिम मिशन कामयाब हुआ तो वो चांद की सतह पर उतरने वाला पांचवां देश बन जाएगा. शुक्रवार की रात करीब 8 बजकर 50 मिनट पर यह चांद की सतह से करीब 100 मीटर ऊपर होगा. 100 मीटर की ऊंचाई से यह धीरे धीरे सतह की तरफ आना शुरू कर देगा. सॉफ्ट लैंडिंग का समय करीब 9 बजकर 20 मिनट मुकर्रर है. इस मिशन की वैसे तो कई खासियत है. लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि जिस जगह को सॉफ्ट लैंडिंग के लिए तय किया गया है वहां उतारने की चुनौती है. अगर तय जगह पर सॉफ्ट लैंडिंग हुई तो यह स्पेस साइंस में बहुत बड़ी कामयाबी होगी. स्लिम मिशन की निगरानी कर रहे जाक्सा के मुताबिक कोशिश यही है कि टारगेट एरिया के 100 मीटर के दायरे में इसे उतारा जाए.

SLIM क्यों है अलग?

अगर बात अमेरिका के अपोलो 11 ईगल मिशन की करें तो उसमें सॉफ्ट लैंडिंग के लिए 20 गुने पांच किमी का घेरा तय किया गया था. हालांकि अंतिम समय में मैनुअली एस्ट्रोनॉट द्वारा एडजस्ट किया गया. स्लिम की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें फेसियल रिकॉगनिशन तकनीक का इस्तेमाल हुआ है जिससे इसके हर एक मूवमेंट के बारे में जानकारी हासिल होती है. जाक्सा के मुताबिक स्लिम को इसकी डिजाइनिंग बेहद खास है ताकि उसे पता चल सके कि वो खुद कहां पर है और सही से लैंडिंग के लिए कहां जाना है. इसे मून स्नाइपर नाम दिया गया है. स्लिम के पीछे सबसे बड़ा मकसद यही है कि हम तय जगह पर लैंडिंग चाहते हैं. ना कि उस जगह पर जहां हम कर सकते हैं. इसका अर्थ यह है कि जो जगह पहले से तय की गई ठीक उसी जगह पर लैंडिंग हो.  बता दें कि इस मिशन को पिछले साल सितंबर में लांच किया गया था. पिछले साल ही चांद के दक्षिणी ध्रुव पर इसरो ने चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग करा इतिहास रच दिया था. 

स्लिम से निकलेंगे दो रोवर

जाक्सा का कहना है कि अगर सब कुछ प्लान के हिसाब से चला तो स्लिम से दो रोवर निकलेंगे. पहला रोवर चांद की सतह पर उछल कूद करते हुए आगे बढ़ेगा. यह रोवर में हाइ क्वालिटी के कैमरे और कुछ पेलोड्स से लैस है. दूसरे रोवर का वजन महज 250 ग्राम है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि चांद पर जो भी तात्कालित हालात बनेंगे उसके हिसाब से यह अपने आकार में बदलाव कर लेगा. हालांकि चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग इतनी आसान नहीं. थोड़ी सी चूक का अर्थ यह है कि पूरा मिशन बर्बाद हो जाएगा. 

ये मिशन हो गए थे नाकाम

नवंबर 2022 में जाक्सा ने चांद की सतह पर पहुंचने के लिए ओमोटेनाशी मिशन लांच किया था. लेकिन चांद की सतह पर पहुंचने से पहले ही इसका संपर्क जाक्सा से टूट गया. यही नहीं अप्रैल 2023 में स्टार्टअप कंपनी ने चांद की सतह पर पहुंचने की कोशिश की थी. हालांकि कामयाबी नहीं मिली. आपने पिछले साल ही रूस के लूना 25 मिशन को नाकाम होते देखा होगा. रूस के मिशन में सुरक्षित धरती पर वापसी भी करनी थी. सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि लूना 25 जिस तरह से चांद की सतह से टकराया था उसकी वजह से सतह पर और क्रेटर बन गया जिसके बारे में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने ना सिर्फ जानकारी दी थी. बल्कि तस्वीर भी जारी किया था. इसी तरह से 18 जनवरी को अमेरिका का प्राइवेट मून मिशन पेराग्रीन भी चांद पर पहुंचने से पहले भस्म हो गया.

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