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Ekadashi 2024: वरुथिनी एकादशी कब है, 3 या 4 मई? जानें पूजा की विधि, मुहूर्त और पारण समय

Varuthini Ekadashi 2024 kab hai: हिंदू धर्म में सारी एकादशी तिथि भगवान विष्‍णु को समर्पित हैं. वैशाख महीने के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते हैं. यह व्रत अपार सुख-सौभाग्‍य देने वाला है. 

Ekadashi 2024: वरुथिनी एकादशी कब है, 3 या 4 मई? जानें पूजा की विधि, मुहूर्त और पारण समय
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Shraddha Jain|Updated: Apr 28, 2024, 01:13 PM IST

Ekadashi 2024 May: एकादशी का व्रत करना भगवान विष्‍णु की कृपा पाने का सबसे अच्‍छा तरीका है. इसलिए लोग हर महीने पड़ने वाले दोनों एकादशी व्रत करते हैं, साथ ही भगवान विष्‍णु और मां लक्ष्‍मी की पूजा करते हैं. एकादशी की व्रत-पूजा करने से जीवन में सुख-सौभाग्‍य बढ़ता है. कभी आर्थिक तंगी नहीं होती है. यह पापों को नष्‍ट करने वाला और बेहद पुण्‍यदायी व्रत माना गया है. वहीं इनमें से कुछ एकादशी व्रत तो बहुत ही खास माने गए हैं. इनमें से एक है वरुथिनी एकादशी. वैशाख कृष्‍ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी कहते हैं. 

40 किलो स्‍वर्णदान करने जितना फल 

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार वरुथिनी एकादशी के दिन श्रीहरि विष्‍णु की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है. इस व्रत-पूजा को करने से कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन (40 किलो) स्वर्णदान करने से जो फल मनुष्य को मिलता उतना फल वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है. इसलिए वरुथिनी एकादशी का व्रत-पूजा करने का बड़ा महत्‍व है. 

वरुथिनी एकादशी 2024 तारीख 

पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि की शुरुआत 3 मई, शुक्रवार को रात 11 बजकर 24 मिनट से शुरू होगी और 4 मई, शनिवार को रात 8 बजकर 38 मिनट पर समाप्‍त होगी. उदया तिथि के अनुसार वरुथिनी एकादशी 4 मई  को मानी जाएगी. 4 मई को वरुथिनी एकादशी व्रत रखा जाएगा और श्रीहरि की पूजा की जाएगी. वहीं वरुथिनी एकादशी व्रत का पारण समय 5 मई को सुबह 5 बजकर 37 मिनट से लेकर 8 बजकर 17 मिनट तक होगा. 

वरुथिनी एकादशी पूजन विधि 

एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. संभव हो तो पीले रंग के कपड़े पहनें. फिर भगवान का स्‍मरण करके व्रत का संकल्‍प लें. इसके बाद पूजा स्‍थल को पवित्र करें. भगवान विष्‍णु की पूजा करें. उन्‍हें पीले फूल, हल्‍दी, कुमकुम, अक्षत, फल, मिठाई, पंचामृत अर्पित करें. धूप-दीप करें. विष्‍णु जी को तुलसी दल जरूर चढ़ाएं. वहीं मां लक्ष्‍मी की भी पूजा करें. इसके बाद वरुथिनी एकादशी की व्रत कथा पढ़ें. विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. आखिर में आरती करें. फिर अगले दिन द्वादशी तिथि प्रारंभ होने के बाद एकादशी व्रत का पारण करें. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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