Basoda kab hai 2024: होली के 7 दिन बाद शीतला सप्तमी मनाई जाती है और फिर इसके अगले दिन शीतला अष्टमी बासोड़ा मनाते हैं. शीतला सप्तमी और अष्टमी को शीतला माता की पूजा की जाती है. चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी यानी कि शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता को बासी खाने का भोग लगाया जाता है. इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है. इस साल 1 अप्रैल को शीतला सप्तमी और 2 अप्रैल को शीतला अष्टमी बासोड़ा पर्व मनाया जाएगा. भोजन से जुड़ा बासोड़ा पर्व राजस्थान में सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है.
बासोड़ा पर्व का महत्व
होली के बाद से गर्मी तेज होने लगती है. वहीं शीतला माता ठंडक प्रदान करने वाली देवी है. शीतला माता की पूजा करने से चेचक, त्वचा संबंधी बीमारियां नहीं होती हैं. इसलिए शीतला माता की विधिवत पूजा करने और व्रत रखने से अच्छी सेहत मिलती है. साथ ही इस दिन शीतला माता को बासी ठंडे भोजन का भोग लगाया जाता है और प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाने की परंपरा है. साथ ही शीतला अष्टमी का दिन बासी खाना खाने का आखिरी दिन होता है. इसके बाद से गर्मी तेज होने के कारण बासी खाना नहीं खाना चाहिए. गर्मी में ताजा और सुपाच्य भोजन ही खाना चाहिए.
शीतला सप्तमी-अष्टमी और बासोड़ा पूजन विधि
शीतला सप्तमी के दिन सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें. फिर शीतला माता की पूजा करें और भोजन बनाएं. इसमें खीर, पूड़ी, हलवा जैसे पकवान बनाए जाते हैं. अगले दिन यानी कि शीतला अष्टमी पर अगर आप सूर्य निकलने से पहले बासोड़ा पूज लेते हैं, तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है.
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें. इसके बाद माता शीतला के मंदिर में जाकर विधि-विधान के साथ पूजा करें. माता शीतला को जल चढ़ाएं. उन्हें गुलाल, कुमकुम अर्पित करें. फिर बासी भोजन जैसे पूडे, मीठे चावल, खीर, मिठाई का भोग माता शीतला को लगाएं. ध्यान रहे कि शीतला माता की पूजा में ना तो दीपक जलाएं और ना ही धूप या अगरबत्ती. शीतला माता की पूजा में अग्नि का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. फिर अपने घर के बाहर रोली से स्वास्तिक बनाएं. इससे घर में हमेशा सुख-समृद्धि रहती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)