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Shani Upay: शनिवार की शाम शनि देव के सामने खड़े होकर कर लें ये काम, हर संकट से बचाएंगे न्याय के देवता

Shanidev Remedies: शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित होता है. शनिवार के दिन जो जातक शनिदेव की पूजा करते हैं, कठिन उपवास रखते हैं, उन्हें न्याय के देवता मनचाहा वरदान प्रदान करते हैं. इसके साथ ही कुंडली से शनि दोष का प्रभाव भी कम होता है. शनिवार की शाम शनि कवच का पाठ करना शुभ माना गया है. 

 
shani kavach path
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shilpa jain|Updated: Apr 20, 2024, 12:22 PM IST

Shani Kavach Path: शनि देव को न्याय के देवता और कर्म फलदाता के नाम से जाना जाता है. शनिवार दिन शनि देव को समर्पित है. इस दिन शनि देव की विधिपूर्वक पूजा करने और व्रत आदि करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो भक्त शनि देव की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करता है, उन्हें कर्मफल दाता की कृपा से मनचाहा वरदान मिलता है. साथ ही, कुंडली से शनि दोष का प्रभाव कम होता है. 

इतना ही नहीं, शनिवार की शाम शनि कवच का पाठ करना भी विशेष फलदायी बताया गया है. मान्यता है कि शनि देव की सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद करन विशेष फलदायी रहती है. ऐसे में शाम को सूर्यास्त के बाद शनि देव की पूजा करते समय ये रहस्मयी पाठ करने से भक्तों के सभी सकंट दूर होते हैं. ज्योतिष शास्त्र में शनि कवच पाठ को बहुत लाभकारी बताया गया है. 

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शनि कवच

श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,

शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः

नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।

चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।

श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।

कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।

शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।

ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।

नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।

नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।

स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।

स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।

वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।

नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।

ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।

पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।

अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।

न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।

कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।

कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।

जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।। 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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