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Sawan: यूं ही नहीं कहा जाता है भगवान शिव को देवों का देव, जानें त्रिशूल और शनि देव का संबंध

Sawan 2023: शिवजी को समर्पित सावन माह का प्रत्येक दिन इन्हीं कारणों से त्योहार की तरह मनाना चाहिए. सावन माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज मनाई जाती है. इसका संबंध पारिवारिक एकता का प्रतीक है.

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Shilpa Rana|Updated: Aug 02, 2023, 02:11 PM IST

Lord Shiva Family: जिस तरह शिव परिवार नवग्रह का प्रतीक है, उसी तरह इस परिवार में सभी तत्वों का समावेश भी है. गहरी बात यह है कि सूर्य का रूप हैं महादेव, चंद्रमा उनके शीष पर विराजित हैं. कार्तिकेय स्वयं मंगल और बुध राजकुमार गणेश हैं. गुरु के रूप में नंदी, शुक्र माता पार्वती तो न्याय के देवता शनि शिव जी का त्रिशूल हैं, जिससे वह दंड देते हैं. राहु सर्प का मुख और केतु सर्प की पूंछ है, जिसे शिव जी आभूषण के रूप में धारण करते हैं. 

अब तत्वों की बात भी समझ लीजिए. गंगा और चंद्र जिस स्थान पर हैं, वह जल तत्व है. त्रिशूल और डमरू का संबंध वायु तत्व से है, क्योंकि डमरू ध्वनि देता है और ध्वनि वायु तत्व है, साथ ही त्रिशूल भी संधान के बाद वायु तत्व में ही अपना लक्ष्य साधते हैं. मंगल का प्रतिनिधित्व करने वाले बलवान भगवान कार्तिकेय जी अग्नि तत्व हैं. नंदी यानी वृष पृथ्वी तत्व हैं और स्वयं महाकाल यानी महादेव आकाश तत्व हैं, जो कि सभी तत्वों को समेटे हुए हैं, इसलिए कहा जाता है कि विधि का विधान बदलने की क्षमता केवल महादेव में है.

इस बारे में तुलसी बाबा ने भी कहा, “जो तप करे कुमारी तुम्हारी, भावी मेटी सकही त्रिपुरारी” यानी विधि के विधान बदलने की यदि कोई दम रखता है तो वह महादेव ही हैं. काल को भी टालने वाले स्वयं महाकाल ही हैं. तभी तो मार्कंडेय ऋषि ने शिव जी की उपासना कर महामृत्युंजय महामंत्र जनमानस को प्राणों की रक्षा के लिए समर्पित किया.   

शिव जी को समर्पित सावन माह का प्रत्येक दिन इन्हीं कारणों से त्योहार की तरह मनाना चाहिए. सावन माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज मनाई जाती है. इसका संबंध पारिवारिक एकता का प्रतीक है. यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है. सभी लोगों को इस दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की भावपूर्ण तरीके से पूजन करना चाहिए. कन्याएं योग्य वर की कामना हेतु शिव जी का पूजन करती हैं. सावन में सोमवार को व्रत रखने का भी विशेष महत्व है. मान्यता है कि माता सती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए सावन के सभी सोमवार का व्रत रखा था. 

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