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जानिए पुरी के जगन्नाथ की ‘पुनर्जन्म’ की कहानी और परंपरा

Jagannath Rath Yatra 2024: क्या आपको भगवान जगन्नाथ के पुनर्जन्म का रहस्य पता है? क्या आप जानते हैं कि नवकलेवर परंपरा क्या होती है? आइए जानते हैं पुरी के जगन्नाथ के पुनर्जन्म की पूरी कहानी...

जानिए पुरी के जगन्नाथ की ‘पुनर्जन्म’ की कहानी और परंपरा
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Updated: Jul 09, 2024, 04:46 PM IST

Jagannath Rath Yatra 2024: ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर पुरे विश्व के फेमस मंदिरों में से एक है. श्री हरि का अवतार माने जाने वाले भगवान जगन्नाथ के लिए हर साल पुरी में रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है. इसमें भगवान जगन्नाथ के साथ उनकी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र भी शामिल होते हैं. इस बार की जगन्नाथ रथ यात्रा 07 जुलाई 2024 से हो चुकी है.

पुरी में वास करने वाले भगवान जगन्नाथ हर 14 से 19 साल मृत्यु में समाकर फिर जन्म लेते हैं. उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र भी इसी बदलाव से गुजरते है. इस परंपरा को नवकलेवर कहा जाता है. ये परंपरा पिछले 400 सालों से चलती आ रही है.

नवकलेवर परंपरा में क्या किया जाता है? 
जब हर 14 से 19 साल में धार्मिक कैलेंडर में एक महीना जुड़ता है तब नवकलेवर होता है. 2015 ऐसा ही वर्ष था. इसमें एक खास नीम के पेड़ को ढूंढा जाता है जिसे ‘दारू ब्रह्म’ कहते हैं. इन पेड़ों में घोसलें नहीं होते. बस चींटी का पहाड़ और पास में एक सांप होता है जो भगवान विष्णु का प्रतिक माना जाता है. इन पेड़ों को काटकर पुरी भेजा जाता है जहां इन्हें विधि अनुसार तराशा जाता है. 

पुरी में अंधकार की घोषणा 
इस प्रक्रिया के बाद एक विशेष रात को सरकार पुरी में अंधकार की घोषणा करती है. इस अंधकार के दौरान कुछ खास पुजारी अपनी आंखो पर पट्टी बांधकर कोई रहस्य्मय चीज पुरानी मूर्ति से नई मूर्ति तक पहुंचाते हैं. इस चीज को ‘ब्रह्म पदार्थ’ कहते हैं. 

आखिर क्या होता है ब्रह्म पदार्थ?
आज तक कोई ये नहीं जान पाया कि ब्रह्म पदार्थ होता क्या है! कई लोग इसे भगवान कृष्ण और बुद्ध का अवशेष मानते हैं, कोई इसे एक पवित्र आभूषण बताते है, कोई दुर्लभ पदार्थ, कोई तांत्रिक पदार्थ तो कोई इसे अलौकिक वस्तु का नाम देता है. 

मूर्ति को दफनाना 
इस पूरी विधि के बाद पुरी के जगन्नाथ की पुरानी मूर्ति को मंदिर के पास एक खास जगह पर दफना दिया जाता है.

ऋग्वेद में भी जिक्र 
जगन्नाथ मंदिर भारत का बहुत ही प्रसिद्ध और बहुमूल्य मंदिर है. ऋग्वेद में भी इसका जिक्र मिलता है. कई कहानियों में इस मंदिर को बौद्ध परंपरा से जोड़कर देखा जाता है. फिलहाल इन सब के बीच पुरी जगन्नाथ मंदिर में जिन देवताओं की पूजा होती है वो शैव और शाक्त नामक परम्पराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं.

अलग अलग मान्यताएं

  1. पुरी के दैत्यपति मंदिर में पूजा करने वाला पुजारी ब्राह्मण नहीं है.
  2. जिन मजदूरों ने जगन्नाथ की मूर्ति बनाई वो शिल्पकार समुदाय के लोग थे उन्हें ‘महाराणा’ कहा जाता है.
  3. इस मंदिर में गैर हिन्दुओं का आना बिल्कुल मना है.

 

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