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Ramayan Story: सती की इन बातों से आहत हो गए थे शिव जी, बिना कुछ बोले चले गए थे कैलाश पर्वत, जानें रोचक कथा

Ramayan Story in Hindi: वन में श्री राम अपने भाई लक्ष्मण जी के साथ सीता जी की खोज कर रहे थे तभी भगवान शंकर माता सती के साथ दूर से उनके दर्शन करने पहुंचे थे, सती जी ने उनकी परीक्षा लेने की ठानी और स्वयं सीता बन कर पहुंच गईं पर आश्चर्य चकित रह गईं कि जिधर देखो श्री राम सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ दिख रहे हैं, वापस आने पर उन्होंने शिव जी से झूठ बोल दिया जबकि शिव जी ने कहा था कि वहां जो कुछ भी हुआ उसका विस्तार से वर्णन करो. अब जानिए आगे क्या हुआ.  

 
फाइल फोटो
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Shashishekhar Tripathi|Updated: Jun 15, 2022, 09:53 AM IST

Sati was very Sad with her Act: जब सती ने श्री राम की परीक्षा लेने के लिए सीता का वेश धारण किया और लौट कर शंकर को असत्य जानकारी दी तो शिव जी को हृदय में बहुत विषाद हुआ, काफी देर चिंतन करने के बाद शिव जी ने श्री राम चंद्र जी के चरण कमलों में मन ही मन सिर नवाया और उनका स्मरण करते ही मन में विचार आया कि सती के इस शरीर से पति-पत्नी के रूप में भेंट नहीं हो सकती है. मन में यह संकल्प मजबूत करते हुए शिवजी कैलास की ओर चल पड़े तभी आकाशवाणी हुई कि हे महेश आपकी जय हो, आपमें भक्ति की अच्छी दृढ़ता है. आपको छोड़कर ऐसा दूसरा कौन है जो ऐसी प्रतिज्ञा कर सकता है. आप श्री रामचंद्र जी के भक्त हैं, समर्थ हैं और भगवान हैं. आकाशवाणी को सुन कर सती जी को चिंता हुई और उन्होंने पूछा हे प्रभो, बताइए आपने कौन सी प्रतिज्ञा की है. सती ने कई प्रकार से पूछने का प्रयास किया किंतु शिव जी तो बिना कुछ बोले आगे कैलास की ओर बढ़ने लगे. सती ने अनुमान लगाया कि शंकर जी सब कुछ जान गए हैं.

सती को पश्चाताप हुआ

सती को यह जानकर घोर दुख हुआ कि उन्होंने सत्य स्वरूप त्रिपुरारी से कपट किया है, वे तो दीन दयाल हैं फिर भी उन्होंने स्त्री स्वभाव वश मूर्खता और नासमझी की है. गोस्वामी तुलसीदास की कहते हैं कि दूध में मिल कर जल भी दूध के भाव में बिक जाता है किंतु कपट रूपी खटाई पड़ते हुए दूध फट जाता है और पानी अलग हो जाता है. वे कहते हैं कि सती को अपनी करनी याद कर इतना अधिक दुख हुआ कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है. शिव जी तो कृपा के अथाह सागर है तभी तो उन्होंने प्रकट में कुछ भी नहीं कहा. शिव जी का रुख देख कर सती ने जान लिया कि स्वामी ने उनका त्याग कर दिया है और वे हृदय में व्याकुल हो उठीं.

 

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कैलास पहुंच बड़ के पेड़ के नीचे शिव जी ने लगाई अखंड समाधि

इधर शिवजी ने सती को चिंतायुक्त जानकर उन्हें सुख देने के लिए कथाएं कहते हुए कैलास की ओर तेजी से चलने लगे और फिर कैलास में पहुंचते ही अपनी प्रतिज्ञा याद कर बड़ के पेड़ के नीचे पद्मासन लगा कर बैठ गए. शिवजी ने अपना स्वाभाविक रूप संभाला तो उनकी अखंड समाधि लग गई. तब सती जी भी कैलास पर रहने लगीं उनके मन में बड़ा दुख था किंतु इस रहस्य को कोई कुछ भी नहीं जानता था. उनका एक एक दिन एक एक युग के समान बीत रहा था.

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सती ने किया श्री रामचंद्र जी का स्मरण

सती जी के हृदय में अपार दुख था वे इस सोच में थीं कि आखिर इस दुख रूपी समुद्र से कब पार हो सकेंगी. उन्होंने विचार किया कि श्री राम चंद्र जी का अपमान किया और फिर पति के वचनों को भी झूठ समझा. उसका फल ही विधाता ने मुझको दिया है जो उचित था वही किया है. उन्होंने विधाता से प्रश्न किया कि अब यह उचित नहीं है कि जो शंकर जी से विमुख होने पर भी मुझे जीवित रखे है. सती जी ने मन ही मन श्री रामचंद्र जी का स्मरण किया और हाथ जोड़ कर विनती की कि आप तो दीनदयालु हैं, वेदों में आपका यश गाया गया है कि आप लोगों का दुख हरने वाले हैं. मैं विनती करती हूं कि मेरी यह देह जल्दी छूट जाए, मेरा प्रेम तो शिवजी के चरणों में है और यही मेरा व्रत, वचन और कर्म से सत्य है.  

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

 

 

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