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Ramayan Story: अशोक के पेड़ से माता सीता की विनती सुन हनुमान जी कर दिया था ये काम, जानें ये रोचक कथा

Ramayan Story in Hindi:  त्रिजटा ने अपना सपना सुनाते हुए राक्षसियों से कहा कि यह जल्द ही सत्य सिद्ध होने वाला है तो सभी राक्षसियां डर गईं और सीता माता के चरणों में गिर पड़ीं. इसके बाद सीता जी ने त्रिजटा से विनयपूर्वक कहा कि वह कहीं से लकड़ियां एकत्र कर चिता बना दे ताकि वह अपना शरीर खत्म कर लें. सीता जी विरह पीड़ा देख अशोक के पेड़ में पत्तों के बीच छिपे बैठे हनुमान जी ने प्रभु  श्री राम अंगूठी गिरा दी.     

 
फाइल फोटो
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Shashishekhar Tripathi|Updated: Jul 05, 2022, 02:29 PM IST

Hanuman ji dropped ring in front of Sita ji: लंका पहुंच कर हनुमान जी अशोक वाटिका में गए और वहां पर जानकी जी की स्थिति देख कर दुखी हुए. इसी बीच रावण ने वहां पहुंच कर तरह तरह का लालच देते हुए विवाह करने पर पटरानी बनाने का वादा तक किए किंतु दृढ़ प्रतिज्ञ सीता जी ने उसे फटकार  दिया कि वह ऐसा सोचना भी बंद कर दे क्योंकि वह तो श्री रघुनाथ जी के अलावा अन्य किसी पुरुष के बारे में मन में विचार भी नहीं ला सकती हैं. उसने वहां की सुरक्षा में तैनात राक्षसियों को एक माह में राजी कराने का आदेश दिया और चला गया. इसी बीच त्रिजटा नाम की रक्षसी ने अन्य राक्षसियों  को अपना सपना बताया जिसमें एक बंदर ने लंका को जला दिया है लंका का शासन विभीषण के हाथों में आने के साथ ही रावण यमपुरी को चला गया. त्रिजटा ने विश्वासपूर्वक कहा कि उसका सपना कुछ ही दिनों में सच होकर रहेगा. त्रिजटा के सपने की बातें सुन कर सभी राक्षसियां डर गयी और जानकी जी के चरणों में गिर पड़ीं.

सीता जी ने त्रिजटा से लकड़ी एकत्र कर चिता बनाने को कहा

इसके  बाद सभी राक्षसियां अपने अपने स्थान को चली गईं और सीता जी रावण की धमकी के बारे में सोचने लगीं कि एक माह के बाद नीच राक्षस रावण उन्हें मार डालेगा. इस बात का विचार आते ही सीता जी ने त्रिजटा के सामने हाथ जोड़कर विनती की कि हे माता,  आप तो मेरी विपत्ति की संगिनी हैं. जल्द ही कोई ऐसा उपाय करिए जिससे मैं अपना यह शरीर छोड़ सकूं. अब यह दुख सहा नहीं जाता है. कुछ लकड़ी इकट्ठा करके चिता बना दो और फिर उसमें आग लगा दो ताकि मैं समाप्त हो जाऊं, तुम तो बहुत समझदार हो, रावण की दुख देने वाली वाणी अब इन कानों से सुनी नहीं जाती है. 

त्रिजटा ने सीता माता को समझाने का प्रयास किया

सीता माता के चिता बनाने के आग्रह को सुनकर त्रिजटा को बहुत दुख हुआ और उसने उन्हें समझाने का प्रयास किया. सीता माता के चरण पकड़ते हुए प्रभु श्री राम के प्रताप,बल और सुयश के बारे  में बताया  कि, हे सुकुमारी सुनों रात के समय आग नहीं मिलेगी और ऐसा कहते हुए वह अपने घर को चली गयी. सीता जी मन ही मन कहने लगीं कि हे विधाता मैं क्या करूं,  न आग मिलेगी और न ही पीड़ा मिटेगी. 

सीता जी की विरह पीड़ा देख हनुमान जी ने अंगूठी गिरा दी

सीता जी मन ही मन सोचने लगीं कि आकाश में तो अंगारे दिख रहे हैं पर एक भी तारा नीचे नहीं आ रहा है. चंद्रमा अग्निमय है किंतु वह भी मानो मुझे हतभागिनी जानकर आग नहीं बरसाता है. इसके बाद उन्होंने अशोक के पेड़ को संबोधित करते हुए कहा कि हे वृक्ष तुम ही मेरी विनती सुनो, मेरा शोक हर कर अपना नाम सत्य करो. सीता की विरह पीड़ा पेड़ के पत्तों के बीच छिपकर बैठे हनुमान जी से भी नहीं देखी गई और उन्होंने वहीं से अंगूठी गिरा दी. 

 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

 

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