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Ram Katha: हनुमान जी को वाटिका में देख छलक पड़े माता सीता के आंसू, सुनाई अपनी विरह वेदना

Ramayan Story in Hindi: अशोक वाटिका में हनुमान जी के पहुंचने पर जब सीता माता ने उन्हें श्री राम के दूत के रूप में पहचाना तो उनकी आंखों में आंसू छलक आए. वह अपने विरह वेदना बताते हुए कहने लगीं कि प्रभु श्री राम ने तो मुझे भुला ही दिया है जबकि वह तो जीव मात्र पर दया करने वाले कृपा के सागर हैं. इस हनुमान जी ने बताया कि श्रीराम में आपके प्रति दोगुना प्रेम है. हनुमान जी ने प्रभु श्री राम की विरह वेदना का वर्णन किया. 

 
फाइल फोटो
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Shashishekhar Tripathi|Updated: Aug 02, 2022, 07:24 PM IST

Ramayan Story : अशोक वाटिका में हनुमान जी ने जब सीता माता को विश्वास दिला दिया कि वह प्रभु श्री राम के दूत हैं और पहचान के रूप में ही उनकी अंगूठी लेकर आए हैं तो माता सीता का उनके प्रति स्नेह जागा. सीता माता की आंखों में जल भर गया और उन्होंने कहा कि वह तो आशा ही छोड़ चुकी थीं किंतु अब तुमने मेरे सामने उपस्थित हो कर फिर से आस जगा दी है. उन्होंने कहा कि तुम तो मेरे लिए तिनके का सहारा के समान हो. सीता माता ने प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी की कुशलक्षेम पूछने के बाद कहा आखिर रघुनाथ जी ने मुझे भुला क्यों दिया जबकि वह तो जीव मात्र पर कृपा करने वाले हैं. हनुमान जी ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा कि हे माता आप अपना दिल छोटा न करें. क्योंकि उनके मन में आपके प्रति स्नेह दोगुना है.

हनुमान जी ने सीता माता को सुनाया श्री रघुनाथ का संदेश

हनुमान जी ने सीता माता को आश्वस्त करने के बाद श्री रघुनाथ जी का संदेश सुनाते हुए कहा कि हे सीते, तुम्हारे वियोग में अब मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है, सभी अनुकूल पदार्थ अब प्रतिकूल लगने लगे हैं. पेड़ों के नए नए पत्ते भी अब अग्नि के समान, शांति देने वाली रात्रि अब कालरात्रि के समान कष्ट देने वाली और सबको शीतलता प्रदान करने वाला चन्द्रमा सूर्य के समान तपन देता लग रहा है. 

श्री राम ने सीता माता को भेजे संदेश में बतायी विरह पीड़ा

हनुमान जी ने प्रभु श्री राम का संदेश सुनाते हुए आगे कहा कि इतना ही नहीं कमलों के वन अब भालों के समान चुभने लगे हैं. शीतल बारिश करने वाले बादल अब खौलता तेल बरसाते दिखते हैं. जो लोग हमरा हित करने वाले थे, अब वही पीड़ा देने लगे हैं. शीतल मंद और सुगंधित वायु अब सांप के समान जहरीली हो गई है. मन का दुख दूसरे से कह डालने से कुछ कम हो जाता है किंतु यहां पर मैं अपना दुख कहूं भी तो किससे.  मेरा यह दुख कोई भी नहीं जानता है. हे प्रिये मेरे और तुम्हारे प्रेम का रहस्य एक मेरा मन ही है जो जानता है. और मेरा मन तो सदा ही तुम्हारे पास रहता है. बस मेरे प्रेम का सार इतने में ही समझ लो. श्री राम का संदेश सुनते ही जानकी जी उनके प्रेम में मग्न हो गईं और उन्हें अपने शरीर की भी सुध नहीं रही.
  
 
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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