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Premanand Ji: प्रेमानंद जी महाराज से जानें घर का मंदिर या बाहर का मंदिर दोनों में से कौन-सा है श्रेष्ठ, देखें VIDEO

Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन इन दिनों लोगों के जीवन में पथ प्रदर्शक का काम कर रही है. हाल ही में एक सत्संग के दौरान जब एक व्यक्ति ने पूछा कि घर के मंदिर और बाहर के मंदिर में श्रेष्ठ कौन सा है, तो प्रेमानंद जी ने बड़ी ही सरलता से इसका जवाब दिया.

 
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shilpa jain|Updated: Apr 30, 2024, 01:21 PM IST

Latest Video of Premanand Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज के वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहे हैं. उनका एक वीडियो लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है. जिसमें वह अपने एक सत्संग के दौरान व्यक्ति द्वारा पूछे गए एक सवाल का जवाब देते नजर आ रहे हैं. व्यक्ति ने सत्संग के दौरान पूछा कि घर के मंदिर और बाहर के मंदिर में श्रेष्ठ कौन सा है, जिस पर आइए विस्तार में प्रेमानंद जी महाराज का जवाब जानें.

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घर और बाहर के अलावा है एक और मंदिर

प्रेमानंद जी का कहना है कि हम तो कह रहे हैं कि घर के मंदिर और बाहर के मंदिर के अलावा क्या आपको पता है कि आपके अंदर भी एक मंदिर है! और वह कोई और नहीं बल्कि आप ही का हृदय का मंदिर है. तीन मंदिर जोड़ो दो मंदिर नहीं.

गुरु कराते हैं हृदय के मंदिर की पहचान

प्रेमानंद जी का मानना है कि अगर हृदय के मंदिर में पूजा हो जाए तो समझ जाए कि घर के मंदिर और बाहर के मंदिर दोनों ही जगह पूजा हो जाएगी. और हृदय के मंदिर का परिचय गुरु से ही मिलता है. हृदय के मंदिर का पट कोई और नहीं बल्कि गुरु ही खोलते हैं. आपके हृदय में ही बैठे हैं प्रभु और यही पर वह हमेशा विराजमान रहते हैं.

 

 

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हृदय के मंदिर में ही बसते हैं ठाकुर

प्रेमानंद जी कहते हैं कि बाहर के मंदिर की पूजा तो 10 मिनट, 20 मिनट या फिर 40 मिनट कर आए. यहां की पूजा में मग्न रहें और हृदय की पूजा के द्वार खोलो कहीं नहीं बल्कि आपके हृदय के मंदिर में ही ठाकुर जी विराजमान हैं.

मंदिर में ना करें भेद

प्रेमानंद जी आगे कहते हैं कि तीन जगह मंदिर की पूजा का भार उठाओ. हृदय मंदिर, घर का मंदिर और बाहर का मंदिर. ध्यान रखें कि प्राथमिकता हृदय के मंदिर को ही दें. दूसरे घर के मंदिर में वही विराजमान होते हैं जो बाहर के मंदिर में विराजमान होते हैं. अगर घर के मंदिर और बाहर के मंदिर में कुछ भी भेद रखोगे और बाहर जाकर केवल पूजा करोगे तो इनमें और बाहर के मंदिर में कोई भी अंतर नहीं है, इस बात का ध्यान रखें. भेद नहीं करना, जो घर के मंदिर में विराजमान हैं वहीं यहां विराजमान है और बाहर के मंदिर में भी विराजमान हैं.

हृदय के मंदिर के आप खुद हो पुजारी

प्रेमानंद जी आगे कहते हैं कि अगर हम यह सोचे कि घर के मंदिर में तो हल्के ठाकुर हैं तो गड़बड़ हो गया, जो घर में हैं वहीं बाहर के मंदिर भी में हैं. और जो घर और बाहर के मंदिर में विराजमान हैं वहीं आपके हृदय में भी विराजमान हैं. कितने लोगों दो दिन या फिर उससे भी ज्यादा यात्रा के दौरान बाहर रहते हैं ऐसे में हृदय के मंदिर में ठाकुर की पूजा कर लें. पानी लें और पीलें समझ लें उनको आप भोग लगा रहे हैं. समय मिला तो नहा लिया तो समझ लें हमने अपने मन मंदिर को पोछा लगा दिया. यही मंदिर है और मैं खुद इस मंदिर का पुजारी हूं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

 

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